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कब मिलेगी आगरा शहर को हाइकोर्ट की बेंच!

Shiv Kumar Mishra
11 March 2021 4:53 PM IST
कब मिलेगी आगरा शहर को हाइकोर्ट की बेंच!
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एक तरफ तो इलाहाबाद हाईकोर्ट की 150वीं वर्षगांठ के जश्न की तैयारी चल रही है। उधर आगरा में हाईकोर्ट बेंच की मांग और निराशा के अंधेरे में हैं।

मनीष कुमार गुप्ता

हम लोगों को शायद ही यह पता होगा कि आगरा में हाईकोर्ट बेंच का मुद्दा लगभग 150 साल पुराना है। हाईकोर्ट बेंच की मांग को लेकर आगरा और आस पास के वकीलों का आंदोलन जारी है। ये आंदोलन दस बीस साल नहीं बल्कि पूरे 150 साल से चला रहा है। इतने साल बीत जाने के बाद भी अब तक कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

ऐसे तो यह एक राजनीतिक मुद्दा है लेकिन वोटों के सौदागरों के लिए यह मात्र एक आश्वासन ही है। हाईकोर्ट बेंच की मांग को लेकर पिछले 50 वर्षों में सैकड़ों आंदोलन हुए पर इन आंदोलनों के बाद भी वकीलों को आश्वासन के अलावा कुछ भी नहीं मिला | लेकिन लगभग बीस बरस पहले एक जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया गया लेकिन क्रूर पुलिसिया कार्रवाई ने सभी रिकॉर्ड तोड दिए, सैंकड़ों आंदोलनकारी घायल हुए और कई कई महीनो तक बिस्तर से ना उठ सके।

उस दिन के बाद यह आन्दोलन आगे अधिक गति नहीं प्राप्त कर सका। राजनीतिक नेताओं से आश्वासन तो मिले लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात निकला। आज भी इसी आश्वासन के सहारे लोग होईकोर्ट बेंच की राह ताक रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि एक न एक दिन सपना जरूर पूरा होगा | एक तरफ तो इलाहाबाद हाईकोर्ट की 150वीं वर्षगांठ के जश्न की तैयारी चल रही है। उधर आगरा में हाईकोर्ट बेंच की मांग और निराशा के अंधेरे में हैं।

पहले आगरा में ही था हाईकोर्ट

हाईकोर्ट की स्थापना आगरा में ही हुई थी और दो वर्ष बाद इसे इलाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया। भारत के आजाद होने के बाद चीफ कोर्ट अवध और इलाहाबाद हाईकोर्ट का विलय कर के इलाहाबाद हाईकोर्ट में समाहित कर दिया गया। साथ ही अवध कोर्ट को लखनऊ खंडपीठ का दर्जा दे दिया गया। इस तरह अवध को तो उसका हिस्सा मिल गया लेकिन आगरा अपने हिस्से के लिए भटकने लगा |

आगरा शहर जिसका वैभव मुगल काल में चरम पर था, पूरे वृहत्तर भारत की सत्ता का केंद्र आगरा में था और जहां तत्कालीन रिवाज के अनुसार तो सुप्रीम कोर्ट होना चाहिए, न्याय के लिए जहां जहांगीर का घंटा लगा था वहां हाईकोर्ट तो क्या उसकी एक बेंच भी नसीब नहीं हुई।

हाईकोर्ट बेंच के नाम पर आगरा को हमेशा ठगा गया है। इस छल के बारे में अधिवक्ताओं को जानकारी 1966 में हुई जब हाईकोर्ट की 100 वीं वर्षगांठ मनाई गई। इस वर्षगांठ का प्रथम आयोजन आगरा में मनाया गया। तीन दिन तक आगरा इस जश्न में डूबा रहा। जश्न समाप्त होने के बाद होश आया तो पता चला कि आगरा के साथ बड़ा मजाक हुआ है।

आगरा के बुजुर्ग बताते हैं कि कांग्रेस के राज्य में किसी की हिम्मत न थी कि आनंद भवन ( प्रधानमंत्री नेहरू जी और इंदिरा गांधी जी के पैतृक आवास) के सामने से उनके हिस्से में कटौती हो जाए। कहीं ऐसा तो नहीं। कि इलाहाबाद के सत्ताधीशों का दबदबा कहीं कम न हो जाए, किसी दूसरे क्षेत्र को बराबरी का हक न मिल जाए, सिर्फ इसीलिए आगरा में हाईकोर्ट की ब्रांच नहीं दी गई।

जसंवत सिंह आयोग का हुआ गठन

अधिवक्ताओं की मांग पर 1982 में जसवंत सिंह आयोग का गठन हुआ। 1984 में आयोग की रिपोर्ट आई जिसमें आगरा को होईकोर्ट बेंच के लिए उचित स्थान बताया गया। आगरा के दीवानी परिसर में आठ कोर्ट को हेरिटेज का दर्जा दिया गया है उसी अंदाज में उन्हें सजाया व संवारा गया है। आज जहां जिला जज बैठते का दर्जा दिया गया है उस जगह 1866 में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अदालत हुआ करती थी। सिर्फ ये आठ कोर्ट ही हेरिटेज हैं बाकी का परिसर क्या इस सीमा से बाहर आता है |

आगरा में जब हाईकोर्ट था, तो यहां से अवध, ब्रज, बुंदेलखंड, उत्तराखंड तक का प्रसार क्षेत्र था। इन क्षेत्रों से आगरा का मार्ग भी बेहद आसान था। आगरा में बेंच की स्थापना से पूरे ब्रज, बुंदेलखंड और समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश को फायदा होगा।

1985 में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और केरल में बेंच स्थापना के लिए गठित जसवंत सिंह आयोग की रिपोर्ट में भी आगरा में हाईकोर्ट बेंच स्थापना का पक्ष लिया गया, लेकिन उप्र में इस पर अमल नहीं किया गया। दूसरी तरफ महाराष्ट्र और केरल ने रिपोर्ट पर अमल किया और आगरा की बेंच की स्थापना नहीं की गई और इसका कारण आज तक अज्ञात है। एक तरफ जहां पड़ोसी उच्च न्यायालय जैसे ग्वालियर हाईकोर्ट बेंच की दूरी 119 किमी, दिल्ली हाईकोर्ट की दूरी 231 किमी, जयपुर हाईकोर्ट की दूरी 240 किमी, लखनऊ हाईकोर्ट बेंच की दूरी 336 किमी है जबकि आगरा से इलाहाबाद हाईकोर्ट की दूरी 475 किमी है जो की सरासर नाजायज है।

पश्चिमी उप्र में बेंच की स्थापना होने पर आगरा क्षेत्र के 4000 से अधिक अधिवक्ताओं को फायदा होगा, न्याय प्रक्रिया में तेजी आएगी क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 हजार प्रकरण लंबित हैं और इनमें से 75 फीसद पश्चिमी उप्र के प्रकरण हैं।

बेंच बनने से लगभग आधा दर्जन से अधिक जिलों के अधिवक्ताओं को हाईकोर्ट बेंच में वकालत करने का मौका मिलेगा। पश्चिमी उप्र में कानून के जानकार बढ़ेंगे और रोजगार में भारी मात्रा में बढ़ोत्तरी होगी।

आगरा के नेताओं की कमजोरी की वजह से आगरा में उच्च न्यायालय खंडपीठ की स्थापना नहीं हो पाई है। पहले भी केंद्र और राज्य में एक ही सरकार थी, लेकिन खंडपीठ के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया गया। आज जब भाजपा की डबल इंजन की सरकार है फिर भी इस दिशा में कोई कदम न उठाना एक विचारणीय प्रश्न है।

आगरा की तरह मेरठ भी हाइकोर्ट बेंच के लिए प्रयासरत है इस विवाद में गृह मंत्री राजनाथ सिंह को सुझाव भी दिया था कि दोनों ओर से अधिवक्ताओं को एक साथ बैठाकर यमुना एक्सप्रेस वे पर कहीं स्थापना करा दी जाए लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी।

कई मुख्यमंत्रियों ने आगरा आकर वादा किया, लेकिन लखनऊ जाते ही भूल गए। इलाहाबाद फीरोजाबाद से सैकड़ों किलोमीटर दूर है। यदि आगरा में बेंच होगी तो लोगों को सस्ता और सुलभ न्याय हासिल होगा। रोजगार भी बढ़ेगा।

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