आगरा

आगरा में दुनियां का पहला अनोखा कैफे जो एसिड अटैक सर्वाइवर्स द्वारा संचालित है

Shiv Kumar Mishra
13 Aug 2020 10:57 AM IST
आगरा में दुनियां का पहला अनोखा कैफे जो एसिड अटैक सर्वाइवर्स द्वारा संचालित है
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आगरा में दुनियां का पहला अनोखा कैफे शुरू कर दिया गया जो एसिड अटैक सर्वाइवर्स द्वारा संचालित पे एज यू विश के पैटर्न पर आधारित है.

रामभरत उपाध्याय

सतह की कठोरता व् वातावरण में छाई उमस ने नींद में खलबली मचा रखी थी. सपाट चिकनी मेज व् नये स्थान पर सोने की जद्दोजहद ने मेरी नींद को किसी सरकारी योजना की तरह मुझसे ( लाभार्थी ) से दूर भगा ही दिया.

रोज की आदतानुसार आँख खोलने से पहले ही मेरा हाथ अपने घनिष्ठ साथी ( मोबाइल ) की तलाश में लग गया. कुछ एक घंटे पहले हमारे सम्मुख चिकने चुपड़े ( प्लाई )के फ्रेम में विराजमान महारानी ( टेलीविजन ) पर सनी देओल का कातिया पर बरपाया कहर समाप्त हुआ था'.

ईश्वर के इस अमूल्य तोहफे( मस्तिक )की जबरदस्त खासियत ये है कि पलक झपकते ( एक क्षण में ) ही समझ जाता है कि शरीर कहां किस स्थिति में है ? मेरे बायीं ओर दो गज की दूरी पर ज्ञानी भाई गद्देदार कुर्सियों की आपस में सुलह कराके बिस्तर का रूप देकर उन पर तीन का अक्षर बन कर नींद के आगोश में थे. मेरे दायीं तरफ लगभग तीन गज की दूरी पर जमीन में बिछे लकड़ी के चोकोर बॉक्स पर अपनी मटमैली रजाई का तकिया बनाकर कानों में मोबाईल से कनेक्टेड लीड लगाये शिवनरायन सिंह उर्फ़ शिब्बू पेट के भर रात की रानी के स्वप्नों में लीन था.

ऐसा सोचते सोचते मैंने हाथ को सिर की दिशा में खींचा और लगभग तीन फीट दूर काचं की मेज से अपना मोबाईल उठाया. मोबाईल को उठाने के साथ ही मेज से किसी बस्तु के गिरने की कर्कश ध्वनि ने रात के सन्नाटे को चीर दिया. में थोडा घबराते हुए जल्दी खड़ा हुआ और बत्ती जलाने के लिए दांये गेट के पास विधुत बोर्ड की तरफ कूच किया | रास्ते में मेने दो मेजों के साथ गलबहियां करती छह कुर्सियों से भरा दुरूह रास्ता पार किया तो बोर्ड तक पहुचने से पहले मेरा सामना पीने के पानी को ठंडा-गर्म करने वाले वाटर डिस्पेंसर से हुआ अंत में लड़खड़ाते हुए मेरा हाथ बोर्ड की चटकनियों ( स्विच ) पर जा पहुंचा. दसियों चटकनियों के आपसी कार्यवितरण का मुझे कोई ज्ञान नही था इसलिए काली रात के झुटपुटे अधेरें के दरम्यान जल्दबाजी में मैंने सभी स्विच ऑन कर दिए.

तत्क्षण पूरा कैफे परिसर धवल रोशनी में नहा गया. मैंने राहत की साँस ली और दो घूँट पानी पीकर गले को ठंडक पहुंचाई. अब नींद और मुझमें उतना ही फासला हो गया जितना पूंजीवाद के दौर में गरीब व् अमीर में हो गया है. अब मैं थोड़ा चैतन्य होकर खाने की चार टेबिलों का गठबंधन करके बनाये मचानरूपी बिस्तर पर आकर बैठ गया.

लो जनाब अब बता ही दूं यह दुनिया का वही इकलौता कैफे है जिसको मानवीय सरोकारों से जुड़े हुये प्यारे लोग "शीरोज हैंगआउट" के नाम से जानते पहचानते हैं. यह कैफे छांव फाउंडेशन की "स्टॉप ऐसिड अटैक" मुहिम के तहत एसिड अटैक सर्वाइवर्स द्वारा संचालित किया जाता है | यहाँ देश-दुनियां के अनेकानेक व्यक्तित्व केवल चाय, कॉफ़ी, ब्रेकफास्ट,लंच-डिनर के लिये ही नहीं आते वरन उनका उद्देश यहाँ कार्यरत एसिड अटैक सर्वाइवर्स के जीवन के दर्द व् संघर्ष को समझकर उनके खुशमय जीवन की दिशा में अपनी तरफ से एक संबल प्रदान करना भी होता है.

इस कोरोना महामारी से पूर्व के साधारण दिनों में सुबह दस बजे से रात दस बजे तक चहल-पहल से रौनक छायी रहती थी. सात समुन्दर पार के अनेकों भद्र महिला-पुरुषों के साथ साथ चहकने-महकने वाली सर्वाइवर्स से सराबोर रहने वाले कैफे को इस लॉकडाउन में वीरान देखकर मेरा दिल बैठ रहा था. कैफे की दीवारों पर उकेरी गयीं खूबसूरत पेंटिंग्स व् सर्वाइवर्स की मेहमानों के साथ लगी हुयी तश्वीरें सजीव सी प्रतीत हो रहीं थी.

कैफे के शुरुआती दिनों से ही मेरा इस कैफे में आना-जाना शुरू हो गया था. संचालकों के साथ बढती मित्रता के साथ सर्वा इवर्स के साथ भी मेरा सम्बन्ध अघोषित गुरु-शिष्य का बनता चला गया. कैफे में मौजूद लाइब्रेरी का मैं अपनी क्षमतानुसार भरपूर उपयोग करता रहा हूँ.

आलोक भाई, आशीष भाई, दुर्गा भाई व् उनकी टीम के अन्य साथियों ने सन २०१३ में तेजाब हमलों को रोकने के लिये व् तेजाब पीड़िताओं के हक-हुकूक की आवाज को सरकार तक पहुँचाने हेतु राजधानी दिल्ली के जन्तर मंतर व् अन्य स्थानों पर गोष्ठी, रैली, नुक्कड़ नाटक के जरिये एक आन्दोलन खड़ा किया. इन गतिविधियों में उनको कई बार पुलिस की लाठियों व् सलाखों से भी रूबरू होना पड़ा.

इस सब के बाद तेजाब पीड़िता लक्ष्मी जी की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने तेजाब पीड़िताओ के पक्ष में एतिहासिक फैसला सुनाया |तत्पश्चात आन्दोलनकारी अपने साथ जुड़ी देशभर की एसिड अटैक सर्वाइवर्स के साथ आगे की रणनीति में जुट गये. एक बड़ा काम अभी भी बांकी था कि किस प्रकार तेजाब पीड़िताओं को जीवन की मुख्यधारा से जोड़ा जाय , कैसे वे अपना चेहरा खोलकर उन्मुक्तता से खुलकर अपनी जिन्दगी जीयें.

इसके बाद सोसल मीडिया के अपने ज्ञान का भरपूर इस्तेमाल करते हुये युवा साथियों ने स्टॉप एसिड अटैक की मुहिम डिजीटल प्लेटफार्म पर शुरू कर दी. इस मुहिम को देश-दुनियां के अनेकों लोगों ने सराहा व् सहयोग दिया. आगे चलकर फेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम जैसे सोसल प्लेटफार्म के साथ-साथ मुहिम को संगठनात्मक रूप देते हुये दो सितम्बर २०१४ को छांव फाउंडेशन की नींव डाली.

तद्परान्तु २०१४ को विदा होते होते आगरा में दुनियां का पहला अनोखा कैफे शुरू कर दिया गया जो एसिड अटैक सर्वाइवर्स द्वारा संचालित पे एज यू विश के पैटर्न पर आधारित है. टीम की अपार मेहनत के फलस्वरूप कैफे आये दिन छोटे बड़े इवेंट्स से गुलजार होने लगा. पुस्तक प्रेमी पुस्तकों में डूबे नजर आते व् प्रेमी युगलों की बातें ख़त्म होने का नाम नहीं लेती. कैफे में आने वाला प्रत्येक मेहमान सर्वाइवर्स के हिम्मत, हौसले व् सघर्ष की कहानी उनकी जुबानी ही सुनता व् घंटो भाव विभोर की अवस्था में कैफे में अपना अमूल्य समय गुजारता.

शुरुआत में जुड़ने वाली प्रत्येक सर्वाइवर लज्जा व् संकोच की बेड़ियों में जकड़ी रहती उनके साथ हुयी अनहोनी के बाद ऐसा होना स्वाभाविक है लेकिन जल्द ही भाई लोगों के प्यार दुलार व् मार्गदर्शन में सर्वाइवर में हिम्मत हौसले का संचार होने लगता और रही सही कसर कैफे में आये आगंतुक माहौल में सकारात्मक उर्जा भरकर पूरी कर देते.

पिछले कुछेक सालों में शीरोज हैंगआउट कैफे व् स्टॉप एसिड अटैक की मुहिम ने स्थानीय स्तर से लेकर राज्य व् केंद्र सरकारों के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किये हैं. बौलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक अपने काम से प्रभावित किया.|दुनिया का ऐसा कोई बड़ा देश नहीं जिसके वासियों का सत्कार करने का गौरव कैफे को प्राप्त न हो.

इस गौरवशाली स्थित तक मुहिम को लाने में आलोक एंड कम्पनी ने कितना परिश्रम व् त्याग किया होगा वो स्वयं ही जानते होंगे.

फिर मैं अपनी कलम रखकर

आलोक दीक्षित की फेसबुक वॉल पर खो गया और कब नींद ने मुझे अपनी आगोश में ले लिया पता ही नहीं चला .

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