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जब कोई नहीं आया तो पत्नी को अकेले करना पड़ा पति का अंतिम संस्कार, जानिये क्यों करती रही मुखाग्नि देने से इंकार!
अलीगढ़. किडनी खराब होने के चलते पति की मौत हो गई. पत्नी सुलेखा आशा कार्यकत्री है. घर में तीन छोटी बच्चियां थीं. पति की लाश घर में रखी थी. मौत (Death) की खबर पाकर पड़ोस (Neighbor) से कोई नहीं आया. थोड़ी दूरी पर ही रहने वाला देवर भी नहीं आया. किन्ही कारणों के चलते लोगों ने इस घर से दूरी बना ली. पति का अंतिम संस्कार (funeral) कैसे हो यह सोचते-सोचते रात हो गई. फिर जब कोई नहीं आया तो उस डॉक्टर को फोन किया जिस स्वास्थ्य केन्द्र (Health Center) पर आशा कार्यकत्री थी. यह सुन डॉक्टर (Doctor) चंद लोगों को लेकर उसके घर पहुंच गई. सारे इंतज़ाम कराए. लेकिन पत्नी ने पति को मुखाग्नि देने से मना कर दिया.
पत्नी बोली- जिसने प्यार दिया उसे आग केसे दे दूं
स्वास्थ्य केन्द्र की डॉक्टर और एक संस्था की मदद से सुलेखा के पति का शव शमशान घाट आ गया. अंतिम संस्कार का जरूरी सामान भी इकट्ठा कर लिया गया. चिता सजा दी गई. अब बारी थी कि मुखाग्नि कौन देगा. सुलेखा के साथ न उसके रिश्तेदार थे और न ही पड़ोस से कोई आया था. सुलेखा का कोई बेटा भी नहीं है. सिर्फ तीन बेटियां ही हैं.
तब लोगों ने सुलेखा से कहा कि वो अपने पति की चिता को आग दे. लेकिन सुलेखा ने मना कर दिया. बोली जिस पति ने प्यार दिया. उसे आग कैसे दे दूं. जब वहां मौजूद लोगों ने उसे समझाया तो वो मुखाग्नि देने को तैयार हुई.
डॉक्टर ने सुलेखा की ऐसे करी मदद
सुलेखा ने जब फोन पर डॉक्टर को सारी बात बताई तो डॉ. आशु सक्सेना एक दूसरी आशा कार्यकत्री की मदद से सुलेखा के घर पहुंच गईं. पहले तो उसके पड़ोस वालों को जमकर खरी-खोटी सुनाई. उसके बाद एक संस्था उपकार के अध्यक्ष विष्णु कुमार बंटी को फोन पर सारी बात बताई. संस्था अध्यक्ष ने फौरन ही एक गाड़ी और कुछ लोगों को भेजा. गाड़ी से शव को शमशान घाट लाया गया. सभी सामान इकट्ठा कर सुलेखा के पति का अंतिम संस्कार कराया.