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अमरोहा: दीवाने ग़ालिब नुस्खा अमरोहा और तौफीक़ अहमद कादरी की अदबी खिदमात
✍️ साहिल फारुकी अमरोहवी
इसमें कोई शक नहीं कि अमरोहा की सरज़मीन को बुज़ुर्गों की सरपरस्ती हासिल रही इसी वजह से अमरोहा ने दुनिया को क़ीमती जवाहरात दिए उन में से एक जनाब तौफीक़ अहमद क़ादरी चिश्ती भी हैं।
तौफीक़ अहमद क़ादरी साहब 1940 को अमरोहा में पैदा हुए।आपके वालिद का नाम धन्ना व दादा का नाम चंदा था।आपकी तालीम व परवरिश आपकी वालिदा ने की।इब्तिदाई तालीम मरकज़-ए-तालीम स्कूल और इमामुल मदारिस से हासिल की।अमरोहा बाज़ार गुज़री में नेशनल बुक डिपो नाम से एक दुकान चलाते थे जो कि अब उनके बेटे अनवार समदानी चला रहे हैं।तौफ़ीक़ साहब इब्तिदा से ही तारीखी काम करते रहे।देश के काफी म्यूजियम और पुस्तकालय को सजाया है।तौफ़ीक़ साहब वाहिद ऐसे शख्स हैं जिन्होंने ग़ालिब का रिश्ता अमरोहा से जोड़ा जिसे दुनिया दीवाने ग़ालिब नुस्खा अमरोहा नाम से जानती है।
राजा नाग भट 828 की तांबे पर लिखी हुई दस्तावेज़ की खोज संभल से की।इसी दस्तावेज़ के ज़रिए संभल का प्राचीन नाम शम्भू पल्लिका और ज़िला बदायूँ के गिन्नौर का प्राचीन नाम गुड़पुर सामने आया।अब यह प्लेट इलाहबाद संग्रालय में महफूज़ है।
आपने गुर्जर समाज को उनकी तारीख से आगाह कराया गुर्जर समाज ने गुर्जर रत्न अवार्ड,साहस डिग्री कॉलेज ने मीनार ए इल्म अवार्ड व अमरोहा गौरव के सम्मान से नवाज़ा।
आपको जामे नवादरात के ऐज़ाज़ से भी नवाजा गया।
1998 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर के हाथों से सबकी आवाज़ "क़ौमी अवार्ड" (पारेख खोजी)से नवाज़ा।
इनके अलावा दीगर ऐज़ाज़ात इन्हें हासिल हुई।
इनके अलग-अलग अखबारात और रसाईल में मज़हबी और अदबी मज़ामीन भी छप चुके हैं।
इनकी दो किताबें मंज़र-ए-आम पर आ चुकी हैं
1.हज़रत शाह विलायत का मज़हबे सुन्नी शिया सुन्नी दस्तावेज़ की रौशनी में (1984)
2. क़ाज़ी नुरुल्लाह शोस्त्री का तजाहुले आरफीन
सरवर का नुस्खा:- 19 जून 2008 को कानपुर से सरवर का चौथा नुस्खा हासिल किया।ये नुस्खा पूरी तरह मुकम्मल व सबसे कदीम था।सरवर का इंतेक़ाल 1250 हिजरी में हुआ था।अब यह नुस्खा रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में महफूज़ है।
दीवान-ए-ग़ालिब नुस्खा अमरोहा:-1969 में तमाम मिर्ज़ा ग़ालिब के चाहने वाले ग़ालिब की 100 साला सदी मना रहे थे। एक तरफ अमरोहा से तौफ़ीक़ अहमद क़ादरी साहब 5 अप्रैल 1969 को भोपाल पहुंचे वहां शफ़ीक़-उल-हसन नामी शख्स से दीवाने ग़ालिब मख्तूता( अनपब्लिश्ड) ग़ालिब के अपने कलम से लिखा हुआ 11 रुपये में खरीदा। 7 अप्रैल को 1969 को अल-जमीयत नाम से एक मशहूर अखबार निकलता था उसमें इश्तिहार दिया कि मेरे पास ग़ालिब का अपने कलम से लिखा हुआ नुस्खा मौजूद है। जो साहब इसे खरीदना चाहते हैं वो मुझसे राब्ता करें इश्तिहार के आखिर में लिखा कि दीवान की कीमत 6 हज़ार रुपये होगी।क्योंकि उस वक़्त ग़ालिब की 100 साला सदी मनाई जा रही थी तो लोगों ने इसको एक जाल साज़ी समझा।इसलिए हकीम अब्दुल हमीद साहब को इस दीवान से आगाह कराया क्योंकि इसी साल उन्होंने हज़रत निज़ामउद्दीन बस्ती में 10 लाख के खर्चे से ग़ालिब एकेडमी बनवाई थी।मगर किसी ने राब्ता नहीं किया। 14 अप्रैल 1969 को प्रो०निसार अहमद फ़ारूक़ी साहब ने तौफ़ीक़ साहब को खत लिख कर कहा कि आप मुझसे दिल्ली आकर मिलिए या मुझे कोई तारीख और वक़्त बताइये ताकि मैं खुद आपसे आकर मुलाकात करूं और ग़ालिब का ये नुस्खा देख कर इसकी पहचान कर सकूं।मगर उनके खत पहुंचने से पहले अल्लाहाबाद (प्रयागराज) से एक साहब ग़ालिब का नुस्खा देखने आए और उसके खतूत की शनाख्त कर दी और प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया को एक मुख्तसर सी खबर भेज दी।अंग्रेज़ी अखबारों में खबर इस तरह छपी।
"LUCKNOW, April 16 ( PTI)
A rare collection of ghalib's gazal written in his own hand has been found with a dealer in old manuscript,Taufeeq Ahmed of Amroha."
17 अप्रैल 1969 को ये खबर अंग्रेज़ी,उर्दू,हिंदी और दूसरी ज़ुबानों के अखबारों में छपी। ऑल इंडिया रेडियो ने अपने खबर नामे में आगे तक पहुंचाई।उसी दिन तौफ़ीक़ अहमद साहब ग़ालिब का नुस्खा लेकर प्रो० निसार अहमद फ़ारूक़ी साहब के पास दिल्ली आ पहुंचे।
प्रो०निसार अहमद फ़ारूक़ी साहब लिखते हैं कि "जब तौफ़ीक़ साहब ने अपने थैले से ग़ालिब का नुस्खा निकाल कर मेरे सामने रखा मेने उसे पहली ही निगाह में शनाख्त कर लिया कि वाक़ई ये ग़ालिब का खत है।तभी मैंने एक खत 'हमारी ज़ुबान'(अलीगढ़) को लिखा कि अखबारों में ग़ालिब के नुस्खे के हवाले से जो खबर है वो बिल्कुल सही है मैंने इसकी तस्दीक़ कर ली है।इसमें कोई शक़ नहीं कि ग़ालिब ही की कलम से लिखा हुआ है।"
1982 में रज़ा अली आब्दी (BBC LONDON) इंटरव्यू के लिए तौफ़ीक़ साहब की दुकान बाज़ार गुज़री में तशरीफ़ लाए।यह इंटरव्यू तीन बार नश्र किया गया।
प्रो०गुलाम रसूल दीवान बा खत-ए-ग़ालिब अमरोहा नुस्खा के हवाले से लिखते हैं कि "गोया जो नुस्खा पहले मालिक के पास महज़ एक पत्थर का टुकड़ा था।तौफ़ीक़ साहब के हाथ में पहुँचने के बाद वो कोहे तूर बन गया।(नुकूश-ए-ग़ालिब न०3 पेज 511)
असरारिया कशफ़े सूफ़िया:-आपको ये नुस्खा मोरादाबाद(मुरादाबाद) से हासिल हुआ था।ये क़ल्मी नुस्खा खुद मुसन्निफ़ के हाथों इस पर सैर हासिल थी।जामे मज़मून अमरोहा रोज़नामा 'बाज़गश्त' में छपा। यह नुस्खा अब राष्ट्रीय संग्रालय नई दिल्ली में महफूज़ है।
(माहनामा ज़िया ए वजीह दिसंबर 2016 पेज 54)
अमरोहा के मारूफ स्कॉलर्स में से जनाब मिस्बाह अहमद सिद्दीकी लिखते हैं कि अमरोहा की मारूफ शख़्सियात में तौफ़ीक़ अहमद क़ादरी साहब का नाम भी शोहरत-ए-आम व बकाये दवाम रखता है।
(ज़िया वजीह नामा अगस्त 1997 पेज 39)
National archives of india (नई दिल्ली) ने आपके नाम से चिश्ती कलेक्शन भी कायम किया।
10 अगस्त 2016 बरोज़ मंगल को आप इस दुनिया ए फानी से रुख्सत हुए। आपको कब्रिस्तान दरगाह शाह विलायत में दफ़्न किया गया।
अमरोहा और ये दुनिया आपकी तमाम खिदमात को हमेशा याद रखेगा अल्लाह आपके दरजात बुलंद करें अमीन।