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देश की पहली महिला होगी यूपी की शबनम, जिसे दी जा सकती है फांसी
शबनम यानी कि वह पार्क चीज जिसे देख हर किसी को मोहब्बत हो जाती है जी हां शबनम को हिंदी में ओस या तुषार कहते हैं. उर्दू में उसको शबनम कहते हैं. लेकिन ऐसे खूबसूरत नाम को आज अमरोहा के बावन खेड़ी गांव में कोई याद करना नहीं चाहता है जब शबनम का नाम जेहन में आता है एक-एक कर साथ लाते हैं सामने खड़ी नजर आती हैं.
अमरोहा के बावन खेड़ी गांव में अब किसी बेटी का नाम शबनम नहीं रखा जाता वह यूं ही नहीं इसका एक बहुत बड़ा कारण है इस कारण के पीछे 10 साल पहले प्रेम में अंधी हो चुकी इसी गांव की शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर परिवार के 7 लोगों का गला रेत दिया इन सब की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस घटना की चर्चा उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में हुई थी एक दशक पुराने हत्याकांड को याद कर आज भी गांव के लोग सिहर उठते हैं इसलिए अब कोई भी अपनी बेटी का नाम इस गांव में शबनम नहीं रखता है जिन्होंने रखा भी था. उन्होंने अब अपनी बेटी का नाम बदल लिया है.
जिला मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर दूर हसनपुर थाना क्षेत्र के बावन खेड़ी गांव में 14 15 अप्रैल की रात उस समय हड़कंप मच गया जब एक ही परिवार के 7 लोगों की गला रेत कर हत्या कर दी गई इस घर में सिर्फ एक 25 वर्षीय लड़की बची थी जिसका नाम था शबनम. घटना का अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती अगले ही दिन गांव पहुंच गई थी और जल्द ही अधिकारियों को इस घटना के खुलासे करने के निर्देश जारी किए थे.
शबनम ने सलीम के साथ मिलकर अपने पूरे परिवार का सफाया कर दिया उस समय शबनम 7 सप्ताह की गर्भवती भी थी. शुरूआत में उसने यह दलील देकर खुद को बचाने की कोशिश की कि लुटेरों ने उसके परिवार पर हमला कर दिया था और बाथरूम में होने की वजह से वह बच निकलने में कामयाब रही लेकिन परिवार में सुख वही एकमात्र जिंदा बची थी. इसलिए पुलिस का शक उस पर गहरा गया और उसकी कॉल डिटेल खंगाल ई गई तो सारा सच सामने आ गया.
शबनम और सलीम को 2 साल बाद अमरोहा की सत्र अदालत ने मौत की सजा सुनाई निचली अदालत के फैसले के बाद इस मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी मोहर लगा दिए सब नम पिछले करीब 10 साल से 8 माह के बच्चे सहित सात लोगों की हत्या के मामले में मुरादाबाद जेल में बंद है. जब उसका प्रेमी सलीम आगरा सेंट्रल जेल में बंद है.
शबनम और सलीम का बेटा अब करीब 10 साल का हो चुका है जिसका लालन-पालन बुलंदशहर के पत्रकार उस्मान सैफी और उनकी पत्नी वंदना करती हैं. उस्मान शबनम के कॉलेज में ही पढ़ते थे और उनसे 2 साल जूनियर थे उन्हें जब इस घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने बच्चे की जिम्मेदारी लेने का फैसला किया. उस्मान का कहना है कि वह और शबनम अक्सर एक साथ बस में जाते थे एक बार फीस भरने के लिए जब उनके पास पैसे नहीं थे तो शबनम ने उनकी फीस भरने में मदद की थी.
शबनम की उम्र अब 35 साल हो गई है और घटना को 10 साल से अधिक समय गुजर चुका है. लेकिन लोग आज भी खौफनाक वारदात को भूले नहीं है शबनम के घर के सामने रहने वाले इंतजार अली कहते हैं उस घटना के बाद बावन खेड़ी के किसी भी घर में शबनम नाम की लड़की ने जन्म नहीं दिया आज भी अपनी बेटियों को शबनम नाम देने से डरते हैं कि कहीं घटना की पुनरावृत्ति ना हो जाए फिलहाल शबनम और सलीम को फांसी दी जाएगी या नहीं इस पर इसी महीने सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने वाला है. दोनों ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल की थी लेकिन इस जघन्य अपराध को देखते हुए राष्ट्रपति ने उनकी दया याचिका खारिज कर दी थी. अब एक बार फिर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है. इसी महीने सुनवाई होनी है इस घटना पर फांसी की सजा बरकरार रहती है. तो शबनम देश की पहली महिला होगी जिसे फांसी की दी जाएगी अब सबकी इस मामले पर निगाह टिकी हुई है. आखिर 7 लोगों को जान से मारने वाली शबनम को सरकार फांसी कब देगी और इस गांव को शबनम नाम से कब निजात मिलेगी.