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यूपी में दलित महिला के बलात्कार केस के आरोपियों को क्यों बचा रही है पुलिस?
औरतों से बलात्कार के बाद उनका अंग-भंग करने का चलन इधर बीच बहुत तेजी से बढ़ा है। शहरों से शुरू हुआ यह सिलसिला अब गांवों तक पहुंच चुका है। पिछले महीने बांदा में एक दलित औरत के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उसका सिर और हाथ काट दिया गया था। आरोपित भारतीय जनता पार्टी से संबद्ध तीन सवर्ण पुरुष थे। पुलिस की जांच में इसे हादसा बता दिया गया। आंदोलन के दबाव में महज एक गिरफ्तारी हुई, लेकिन धाराएं हलकी कर दी गईं। पतौरा गांव में 31 अक्टूबर को हुई जघन्य घटना की अविकल फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट
रमाशंकर ‘विद्रोही’ ने अपनी कविता ‘मोहनजोदड़ो’ में कभी पूछा था कि आखिर प्राचीन सभ्यताओं के मुहाने पर एक औरत की जली हुई लाश क्यों मिलती है। तमाम सभ्यताएं मुहाने से अपने दहाने तक आ गईं, लेकिन यह सवाल अब भी मौजूं है जबकि औरतों से बलात्कार के बाद उनका अंग-भंग करना अब चलन बनता जा रहा है- बाराबंकी से लेकर जोधपुर और इटावा से लेकर हैदराबाद तक।
औरतों की सिरकटी लाशों की इस फेहरिस्त में एक भयावह मामला बांदा का है। आज से महीने भर पहले 31 अक्टूबर 2023 को बांदा के पतौरा गांव में 40 वर्षीय एक दलित औरत (‘स’) के साथ पहले कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया, फिर और बेरहमी से उसकी हत्या के बाद उसका सिर और बायां हाथ काट दिया गया था। इस घटना के कथित अपराधी (राजकुमार शुक्ला, बउवा शुक्ला और राम कृष्ण शुक्ला) सत्तारूढ़ राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं। मृतका (‘स’) और उनके पति सोहन वर्मा ग्राम पतौरा, जिला बांदा, उत्तर प्रदेश के निवासी हैं और चमार (अनुसूचित) जाति से हैं। उनके तीन बच्चे हैं- प्रियंका (18), नीरज (15) और रोहित (10)।
प्रथमदृष्टया यह जातिगत अत्याचार, सामूहिक बलात्कार और हत्या का एक क्रूर कृत्य है, जिसे एक सवर्ण परिवार ने अंजाम दिया है, जहां ‘स’ और उनके पति काम करते थे। इस घटना की जांच प्रक्रिया में भी कई खामियां दिखाई देती हैं और जांच को गुमराह करने की कोशिश प्रतीत होती है क्योंकि कथित आरोपित सामाजिक-राजनीतिक स्तर पर बहुत प्रभावशाली हैं और सत्ताधारी दल से करीबी संबंध रखते हैं। उन्हें बचाने के लिए कानून अनुपालक द्वारा दुर्भावनापूर्ण इरादे और जान-बूझ कर तथ्यों की उपेक्षा करने की आशंका पैदा होती है।
फैक्ट फाइन्डिंग
नवंबर के आखिरी सप्ताह में बांदा में घटनास्थल का दौरा करने गई एक तथ्यान्वेषी टीम ने यह आशंकाएं जाहिर करते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है। इस तथ्यान्वेषी रिपोर्ट के लिए 23-26 नवंबर 2023 तक क्षेत्र का दौरा किया गया जिसमें मृतका का गांव, घर और बांदा कोर्ट आदि का दौरा शामिल था। रिपोर्ट में मृतका का नाम गोपनीय रखा गया है (‘स’)।
यह फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट विभिन्न समूहों के वकीलों और मानवाधिकार रक्षकों की टीम द्वारा एकत्र किए गए तथ्यों पर आधारित है, जिन्होंने पीड़ित परिवार की गवाही और आख्यानों, गवाहों, गांव में पड़ोसियों के खातों, विभिन्न वैकल्पिक मीडिया स्रोतों और मामले से संबंधित कानूनी दस्तावेजों से तथ्यों को एकत्रित किया है।
रिपोर्ट में मौजूद तथ्य इस मामले की एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्वतंत्र, गहन और निष्पक्ष जांच की मांग करते हैं।
मुख्य पात्रों का विवरण
मृतका का नाम: रिपोर्ट में ‘एस’
उम्र: 40 साल
पति और शिकायतकर्ता का नाम: सोहन बाबू, उम्र 46 वर्ष
बच्चे और गवाह: प्रियंका (20), नीरज (16), रोहित (10)
मृतक की जाति: चमार (अनुसूचित जाति)
अभियुक्त/कथित अपराधियों के नाम: राजकुमार शुक्ला, बउवा शुक्ला, रामकृष्ण शुक्ला, 2 अज्ञात
कथित अपराधियों की जाति: ब्राह्मण
जांच अधिकारी: नितिन कुमार, डीएसपी, क्षेत्राधिकारी (सीओ), नरैनी।
रिपोर्टिंग अधिकारी: अंकुर अग्रवाल, एसपी बांदा
घटना का विवरण
31 अक्टूबर को सुबह लगभग 8 बजे मृतका और उसके पति सोहन बउवा शुक्ला की आटा चक्की पर प्लास्टर का काम करने गए थे। जहां मृतका और उसके पति रहते हैं वहां से आटा चक्की बमुश्किल 100-200 मीटर की दूरी पर है। वे दोपहर करीब 12 बजे वापस आए थे। दोपहर करीब एक बजे सोहन किसी काम से (सब्जी खरीदने) नरैनी गया था। दोपहर करीब दो से ढाई बजे के बीच बउवा शुक्ला ने मृतका के फोन पर कॉल कर के प्लास्टर का काम करने के लिए आने को कहा। लगभग एक घंटे के बाद एक ग्रामीण और आटा चक्की के करीब रहने वाले रामबहोरी बाबा प्रियंका के पास गए और उससे उसकी मां के बारे में पूछा कि वह कहां है।
जब प्रियंका ने जवाब दिया कि वह आटा चक्की पर गई है, तो रामबहोरी बाबा ने प्रियंका को तुरंत वहां जाने को कहा। जब वह पहुंची तो देखा कि मिल का दरवाजा बंद था। वह दरवाजा खोलने के लिए चिल्लाने लगी, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया। जब आख़िरकार दरवाजा खुला, तो उसने भीतर पांच-छह लोगों को देखा, जिनमें से दो तुरंत वहां से भाग गए। बाकी तीन थे राजकुमार शुक्ल, बउवा शुक्ल और रामकृष्ण शुक्ल। पहले तो उन्होंने उसे अंदर नहीं आने दिया और धक्का दे दिया जिससे वह गिर पड़ी। जब उसने दोबारा कोशिश की तो वह चौंक गई- उसे अपनी मां की सिरकटी निर्वस्त्र लाश फर्श पर दिखी।
उसका बायां हाथ काटकर उसकी छाती पर रख हुआ था। शुरू में उसे मां का सिर नहीं मिला। वह शरीर से कुछ दूरी पर था। यह सब देखने के बाद बाहर आकर वह रोने लगी। इतनी देर में घटनास्थल के आसपास और भी ग्रामीण जमा हो गए थे। उसने अपने पिता को फोन किया और उन्हें घटना के बारे में बताया। कुछ देर में घटनास्थल पर पुलिस पहुंच गई।
आटा चक्की का मुख्य दरवाजा जो सील नहीं किया गया
प्रियंका का कहना है कि उसने उनके साथ एक कुत्ते को भी देखा, लेकिन कुत्ते को नहीं छोड़ा गया और उसे पुलिस कार/वैन में रखा गया। उसने सर्कल ऑफिसर नितिन कुमार (जो पुलिस उपाधीक्षक हैं और एफआइआर में नामित जांच अधिकारी भी हैं) को यह कहते हुए सुना, “पंचनामा कराओ, जल्दी करो”। पुलिस के बाद उसके पिता मौके पर पहुंचे थे।
बाद में उसका भाई नीरज (जो हिंदी में लिख सकता है) और उसके मामा (मां का भाई) 31 तारीख की रात लगभग 10 बजे नरैनी गए जहां पुलिस को हस्तलिखित पत्र देकर एफआइआर दर्ज कराने की उन्होंने कोशिश की।
नीरज दसवीं में पढ़ता है और अपने मामा के साथ रहता है। चूंकि नीरज नाबालिग है और उसके पिता (मृतका का पति) उसके साथ नहीं थे, तो पुलिस ने उसे अगली सुबह पिता के साथ आने के लिए कहा। अगले दिन यानि 1 नवंबर को दोपहर 3:50 बजे एफआइआर दर्ज की गई।
1 नवंबर 2023 को गिरवां पुलिस थाना, ग्राम पतौरा, जिला बांदा, उत्तर प्रदेश द्वारा आइपीसी की धारा 302 (हत्या के लिए सजा) और 376 (बलात्कार के लिए सजा) और आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा) और एससी/एसटी पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v) (अनुसूचित जाति के सदस्यों के खिलाफ किए गए अपराधों के लिए आईपीसी के तहत 10 साल या उससे अधिक के कारावास की सजा) तहत एफआईआर संख्या 296/2023 दर्ज की गई थी।
पुलिस की जांच
जब ‘स’ का परिवार समर्थन जुटाने और पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए संघर्ष कर रहा था, तो मामले की जांच कर रहे डीएसपी, सीओ नरैनी नितिन कुमार कथित तौर पर गांव पहुंचे और ग्रामीणों को समझाया कि आटा चक्की में फंसने के कारण यह हादसा हुआ है। यहां तक कि उन्होंने मीडिया को भी इस बारे में यही जानकारी दी। ऐसा लगता है कि गवाहों के बयान/कहानी के इर्द-गिर्द जांच शुरू होने से पहले ही कथित अपराधियों को आसानी से बाहर निकालने के लिए “दुर्घटना” की असंभव कहानी को दोहराया जा रहा है।
दिनांक 2.11.2023 को पुलिस अधीक्षक अंकुर अग्रवाल ने बांदा पुलिस के ट्विटर हैंडल के माध्यम से जानकारी दी कि प्रारंभिक जांच के बाद यह पाया गया कि यह घटना दुर्घटनावश ‘स’ के आटा चक्की में फंस जाने के कारण हुई थी। ये मीडिया ब्रीफिंग न केवल जांच की निष्पक्षता के बारे में आशंकाएं पैदा करती है, बल्कि पीड़ित के लिए निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को नुकसान पहुंचाने के अलावा मीडिया को पुलिस ब्रीफिंग पर एमएचए की 2010 की सलाह की भी अवमानना करती है।
पुलिस की बाद की जांच में ये आशंकाएं भी जताई गई हैं। ग्रामीणों के मुताबिक, प्रशासन बिना पोस्टमार्टम कराए ही शव को ठिकाने लगाना चाहता था और लोगों के दबाव के कारण ही शव का पोस्टमार्टम अगले दिन कराया गया। जिस जल्दबाजी में शव का पोस्टमार्टम कराया गया, उसे लेकर परिजन और ग्रामीण संदेह में हैं। पोस्टमार्टम के तुरंत बाद पुलिस ने कथित अपराधियों द्वारा बताई गई कहानी को दोहराया, कि घटना एक दुर्घटना थी। इसके अलावा फैक्ट फाइंडिंग के दौरान एकत्र की गई गवाही के आधार पर पुलिस ने अपराधस्थल को घटना के तीन दिन बाद 3 नवंबर तक सील नहीं किया था, जबकि घटना 31 अक्टूबर को घटी थी।
एफआइआर में तीन कथित अपराधियों पर भारतीय दंड संहिता 1860 (आइपीसी) की धारा 302 और 376 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी पीओए अधिनियम) की धारा 3(2)(v) के तहत मामला दर्ज किया गया है। एफआइआर की धाराओं में परिलक्षित अपराध की गंभीरता के बावजूद पुलिस ने कथित अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया, जो न केवल खुले घूम रहे थे बल्कि जांच प्रक्रिया को प्रभावित और गुमराह कर रहे थे। आरोपी राजकुमार शुक्ला पोस्टमार्टम हाउस में मौजूद थे और उन्होंने एक मीडिया रिपोर्टर को बयान दिया कि महिला और उसका पति उनके बटाईदार (बटाईदार/भूमिहीन किरायेदार) थे और यह घटना एक दुर्घटना का मामला थी5।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा निष्पक्ष जांच की जान-बूझ कर की गई उपेक्षा के कारण गांव और निचली अदालत पर निराशाजनक प्रभाव पड़ा है। आरोपियों और कानून अनुपालक एजेंसियों के दबाव के बावजूद अपराध की गंभीरता ने जनता को एकजुट होने के लिए मजबूर कर दिया जिसने तीनों आरोपितों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की।
परिवार और ग्रामीणों का आरोप है कि लगभग दो सप्ताह तक कोई कार्रवाई न होने के बाद सहानुभूतिपूर्ण सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन को बुलाने वालों को शांत करने के लिए एक आरोपी राजकुमार शुक्ला को 16.11.2023 को गिरफ्तार कर लिया गया।
गिरफ़्तारी की मांग में स्थानीय लोगों का विरोध प्रदर्शन
जैसा कि गिरफ्तारी ज्ञापन से पता चला है, एफआइआर में उल्लिखित धाराओं के तहत आरोपी को गिरफ्तार करने के बजाय आरोपों को कमजोर करने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से आरोपी को आइपीसी की धारा 304ए, 287, 201 (यानी लापरवाही के कारण मौत) और एससी/एसटी पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत गिरफ्तार किया गया था। एफआइआर के अपराधों को बदलते हुए हत्या और बलात्कार के मामले में सजा को न्यूनतम आजीवन कारावास से घटाकर लापरवाही के कारण मौत के मामले में अधिकतम दो साल की कैद कर दिया गया है और पूरे अपराध को जमानती बना दिया गया है।
अपराधों का निराकरण
जानकारी के अनुसार, एफआइआर में तीन लोगों पर ‘स’ के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है, लेकिन एफआइआर में सामूहिक बलात्कार की धारा (धारा 376डी) और पीड़िता की मौत के लिए सजा (धारा 376ए) का उल्लेख नहीं किया गया है। दोनों ही धाराओं 376ए और 376डी में 20 साल या उससे अधिक की कैद से लेकर मौत तक की सजा हो सकती है।
01.11.2023 को दो डॉक्टरों के पैनल द्वारा पोस्टमार्टम किया गया और पीएम रिपोर्ट के अनुसार इसकी वीडियोग्राफी की गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतका के कपड़े जब्त कर लिए गए हैं, जिसमें एक फटी हुई साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज का एक टुकड़ा (फटा हुआ) शामिल है। यौनांगों की जांच में कहा गया है-कोई असामान्यता नहीं पाई गई (एनएडी), और 2 योनि स्वैब स्लाइड को संरक्षित किया गया है। मृत्यु का कारण मृत्यु पूर्व चोटों के कारण सदमा और रक्तस्राव है।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दर्ज चोटें
शरीर 3 भागों में
गर्दन कुचली गई और कट गई (C2 स्तर पर)।
ठुड्डी के ठीक नीचे 8 सेमी x 3 सेमी आकार का फटा हुआ घाव, दोनों तरफ का निचला भाग दिखाई दे रहा है।
बाएं ऊपरी अंग को कुचल दिया गया और बाईं कोहनी के स्तर पर काट दिया गया, जिसमें पूरी बांह और हाथ शामिल है
बाईं ओर का फ्रैक्चर।
बाईं बांह के मध्य भाग पर 8 सेमी x 3 सेमी आकार का घर्षण मौजूद है।
1 सेमी x 0.5 सेमी आकार का क्षत-विक्षत घाव बायीं भौंह के पार्श्व के ठीक ऊपर मौजूद है।
जांच रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
फैक्ट फाइंडिंग के दौरान एकत्र की गई गवाही के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि दिनांक 02.11.2023 को पुलिस ‘स’ की बेटी प्रियंका, पति सोहन वर्मा और बेटे नीरज का बयान लेने आई थी (संभवतः दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 161 के तहत)।
2.11.2023 को बांदा पुलिस ने एक ट्वीट में कहा कि “प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि मौत आटा चक्की में फंसने के कारण हुई है। पोस्टमार्टम में शरीर पर कोई अंदरूनी चोट नहीं मिली है। जांच जारी है।”
घटना के महज 3 दिन और एफआइआर दर्ज करने के 2 दिन के भीतर ही पुलिस ने सार्वजनिक रूप से यह कह दिया कि यह एक दुर्घटना है, न कि सामूहिक बलात्कार और हत्या का मामला। यह स्पष्ट नहीं है कि इस बिंदु पर जांच की स्थिति क्या थी, कि पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची और यहां तक कि इन पंक्तियों पर एक सार्वजनिक बयान भी जारी कर दिया। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, ये मीडिया ब्रीफिंग न केवल जांच की निष्पक्षता के बारे में आशंकाएं पैदा करती है बल्कि मीडिया को पुलिस ब्रीफिंग पर एमएचए की 2010 की सलाह का भी खंडन करती है जिसमें कहा गया है कि पुलिस अधिकारियों को अपनी ब्रीफिंग आवश्यक तथ्यों तक ही सीमित रखनी चाहिए और चल रही जांच के बारे में आधी-अधूरी, अटकलबाजी या अपुष्ट जानकारी के साथ प्रेस में नहीं जाना चाहिए। पहले 48 घंटों में घटना के तथ्यों और जांच शुरू हो जाने के अलावा कोई अनावश्यक जानकारी जारी नहीं की जानी चाहिए।
दिनांक 09.11.2023 को सोहन वर्मा द्वारा पुलिस उपमहानिरीक्षक, उत्तर प्रदेश को एक पत्र लिखा गया था जिसमें पुलिस जांच में कमियों को सूचीबद्ध किया गया था। उनका कोई जवाब नहीं आया है।
दिनांक 17.11.2023 को घटना की सूचना मिलने के 17 दिन बाद पुलिस ने राजकुमार शुक्ला को गिरफ्तार कर लिया था। राजकुमार शुक्ला की गिरफ्तारी की जनरल डायरी में दर्ज है कि गिरफ्तारी आइपीसी की धारा 302, 376 जिस पर मूल रूप से एफआइआर दर्ज की गई थी, के बजाय आइपीसी की धारा 304ए, 287 और 201 और पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत की गई है। अन्य दो आरोपितों की अब तक गिरफ्तारी नहीं हो सकी है।
अपराध से दो अलग-अलग कहानियां सामने आ रही हैं- मृतक महिला के परिवार का आरोप है कि ‘स’ के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई, जबकि आरोपित व्यक्तियों का दावा है कि मृतक की मृत्यु आरोपितों की आटा चक्की में एक दुर्घटना के कारण हुई। वहीं, पुलिस की जांच में ऐसा प्रतीत होता है कि वह बिना निष्पक्ष और उचित जांच किए आरोपित व्यक्ति द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण पर आंख मूंदकर वह सहमत हो रही है।
अपराधस्थल की तस्वीरें में जिस तरह से मृतका का शव पाया गया है और शव के आसपास खून का जमाव या खून के छींटे नहीं हैं, यह इस कहानी को ख़ारिज करता है कि मौत चक्की में फंसने से एक दुर्घटना में हुई थी।
एफआइआर में कथित अपराध की गंभीरता का प्रतिनिधित्व करने वाली अन्य महत्वपूर्ण धाराओं जैसे 376ए और 376डी का उल्लेख नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि एफआइआर दर्ज करते समय पुलिस ने जान-बूझ कर ऐसा किया है।
तीन नामजद आरोपितों में से दो अब तक गिरफ्तार नहीं हुए हैं और जांच को प्रभावित करने में सक्रिय रूप से शामिल दिख रहे हैं। चूंकि अपराधस्थल का स्वामित्व अभियुक्त के पास है और तथ्य-खोज टीम द्वारा ली गई तस्वीरों से यह प्रतीत होता है कि इसे पुलिस द्वारा ठीक से सील नहीं किया गया है, इसलिए अपराधस्थल के साथ छेड़छाड़ और सबूतों को नष्ट करने की आशंकाएं स्पष्ट हैं। ऐसा लगता है कि तीसरे आरोपी को कम आरोपों के तहत जनता को खुश करने, मामले को कमजोर करने और घटना से जुड़ी लोकप्रिय बातों की ओर और जनता का ध्यान आकर्षित करने के लिए गिरफ्तार किया गया है।
अब तक हुई जांच से ऐसा लगता है कि पुलिस ने कथित अपराधियों द्वारा बताई गई ‘दुर्घटना’ की कहानी में छेड़छाड़ की है और ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तव में अपराध की प्रकृति और कथित अपराधियों की भूमिका को कमजोर करने के लिए कथित अपराधियों और जांच निकाय के बीच मिलीभगत है।
विलंब
राजकुमार शुक्ला की गिरफ्तारी एफआइआर दर्ज होने के 17 दिन बाद हुई है और पुलिस द्वारा सौंपे गए दस्तावेजों में इस देरी के कारण के बारे में कोई स्पष्टीकरण उपलब्ध नहीं है। यह इस तथ्य के बावजूद है कि अपराध एक आटा मिल में हुआ था जो कि आरोपी के ही कब्जे और नियंत्रण में है। आरोपितों द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़/नष्ट करने की प्रबल आशंका के बावजूद पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए त्वरित कार्रवाई नहीं की।
अपराध की धाराओं को हल्का करना
दिनांक 17.11.2023 को दोपहर 12:11 बजे की जनरल डायरी प्रविष्टि में एफआइआर 296/2023 के अपराधों को आइपीसी की धारा 302, 376 जिसके तहत मूल रूप से एफआइआर दर्ज की गई थी, के बजाय आइपीसी की धारा 304ए, 287 और 201 और पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v) के रूप में दिखाया गया है।
कानूनी और प्रक्रियात्मक रूप से पुलिस को जांच पूरी करने और अपने निष्कर्ष पर पहुंचने की स्वतंत्रता है कि किसी घटना पर कौन सी धाराएं लागू होती हैं और एफआइआर में उल्लिखित धाराओं पर टिके रहने का कोई कानूनी आदेश नहीं है, लेकिन इसके लिए कोई विश्वसनीय स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि क्यों जांच की दिशा हत्या और बलात्कार से हटकर लापरवाही से मौत, मशीनरी के संबंध में लापरवाहीपूर्ण आचरण और अपराध के सबूतों को गायब करने के मामले में बदल गई। जनरल डायरी प्रविष्टि से ऐसा प्रतीत होता है कि जांच अधिकारी ने गिरफ्तारी के समय आरोपी व्यक्तियों द्वारा दी गई कहानी को आंख मूंदकर स्वीकार कर लिया है और तदनुसार अपराधों को बदल दिया है।
प्रकरण की जनरल डायरी प्रविष्टि
उल्लेखनीय है कि पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v) के साथ पठित हत्या और बलात्कार के अपराधों में कम से कम आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। वहीं लापरवाही से मौत का अपराध (एस 304ए आइपीसी) अधिकतम 2 साल की कैद की सजा है। इसके अलावा, धारा 287 आइपीसी (मशीनरी के साथ लापरवाहीपूर्ण आचरण) और धारा 201 आइपीसी (अपराध के सबूतों को गायब करना या स्क्रीन अपराधी को गलत जानकारी देना) दोनों गैर-संज्ञेय और जमानती अपराध हैं और अधिकतम 6 महीने की सजा के साथ दंडनीय हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अपराध की प्रकृति और गंभीरता को कम करने और आरोपियों को छोटे-मोटे अपराधों में फंसाने का प्रयास किया जा रहा है।
कहानी बदलना और जांच को गुमराह करना
25.11.2023 और 28.11.2023 को मामला सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था। अभियुक्त राजकुमार शुक्ला की ओर से दाखिल जमानत याचिका पर बांदा जिला न्यायालय की विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी, अत्याचार निवारण अधिनियम) अनु सक्सेना ने सुनवाई की। राज्य ने जमानत का विरोध करते हुए 28.11.2023 को जवाब दाखिल किया। ऐसा लगता है कि न केवल अपराध के आरोपों को कमजोर करने बल्कि “अपराध” को बदलने का प्रयास किया जा रहा है।
जमानत याचिका पर अपने जवाब के पैरा 2 और 3 में पुलिस ने तर्क दिया है कि “…उसने जांच के दौरान जुटाये गए साक्ष्यों के आधार पर अपराधों को हत्या और बलात्कार से बदलकर मशीनरी के साथ लापरवाही और लापरवाह आचरण से मौत का कारण बना दिया है।”
पुलिस का दावा है कि इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए उसने पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों के बयान, राज्य मेडिको-लीगल विशेषज्ञ की राय और स्लाइडों की जांच के आधार पर वैज्ञानिक साक्ष्य आदि पर भरोसा किया है जो अभियुक्त के हितों के अनुकूल है। हालांकि किसी और सबूत का उल्लेख नहीं किया गया है, ऐसा लगता है कि पुलिस ने आरोपित के बयानों को सतही स्तर पर स्वीकार कर लिया है। घटना के बारे में शिकायतकर्ता की कहानी की जांच करने के इरादे की स्पष्ट कमी है।
राज्य ने आगे तर्क दिया है कि जब पुलिस मौके पर पहुंची तो आटा चक्की चल रही थी और उन्होंने गिरफ्तार आरोपित को आटा चक्की के बाहर पाया।
आरोपितों की जमानत अर्जी की प्रति
राज्य सरकार का तर्क है कि आरोपित द्वारा आटा चक्की अवैध रूप से चलाई जाती है और इस कारण जिस क्षेत्र में मोटर और शाफ्ट रखे जाते हैं उसे जान-बूझ कर अंधेरे में रखा जाता है ताकि वहां कोई दृश्यता न हो सके। राज्य का मामला यह है कि इसके कारण आरोपी ने आटा चक्की और मशीनरी चलाने में लापरवाही बरती और इसी लापरवाही के परिणामस्वरूप मृतक की मौत हो गई। तदनुसार, एफआइआर को आइपीसी की धारा 302 और 376 को एक अनुभाग के अंतर्गत आईपीसी की धारा 304ए, 287 और 201 के साथ-साथ पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v) में बदल दिया गया है।
फैक्ट फाइंडिंग के दौरान एकत्र की गई गवाही के अनुसार जिस स्थान पर शव या सिर मिला था, उस स्थान के आसपास या दीवारों पर या आटा चक्की में परिवार ने उस तरह का खून या खून के छींटे नहीं देखे, जिससे कोई यह पता लगाने की उम्मीद कर सके कि क्या यह घटना दुर्घटना थी। परिवार द्वारा खींची गई घटना की तस्वीरें इस बात की पुष्टि करती हैं। उपरोक्त कथन पर गंभीर संदेह पैदा करता है कि यह घटना आटा चक्की में हुई एक दुर्घटना थी और आरोपी द्वारा अपराधस्थल को फर्जी बनाने का गंभीर संदेह पैदा करता है। उदाहरण के लिए, कटा हुआ बायां हाथ मृतक की छाती पर पाया गया था।
अभियुक्त की मेडिकल जांच
सीआरपीसी की धारा 53ए के अनुसार, साथ ही डीजीपी, उत्तर प्रदेश द्वारा दिनांक 17.01.2013 को जारी 2013 के परिपत्र संख्या 3, 8 पैरा 4(ix) के अनुसार, सीआरपीसी की धारा 53ए के अंतर्गत आरोपित को बलात्कार के अपराध में गिरफ्तार किए जाने के तुरंत बाद एक मेडिकल जांच की जानी चाहिए। चूंकि आरोपित को आइपीसी की धारा 376 के तहत गिरफ्तार नहीं किया गया है, इसलिए ऐसा लगता है कि उसके मेडिकल जांच करने की आवश्यकता को दरकिनार कर दिया गया है। यह स्पष्ट नहीं है कि पुलिस ने किसी आरोपित की मेडिकल जांच कराई है या नहीं।
पीड़िता की मेडिकल जांच
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि 2 योनि स्राव स्लाइड संरक्षित की गई हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि पुलिस ने फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट के आधार पर या केवल चिकित्सा विशेषज्ञों की राय के आधार पर बलात्कार के अपराध को खारिज कर दिया है। केवल एक निष्पक्ष जांच से ही पता चल सकता है कि क्या यह सामूहिक बलात्कार का मामला है, जैसा कि पीड़िता के परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया है।
अपराधस्थल और साक्ष्यों को सील करना और संरक्षित करना
जिस परिसर में अपराध हुआ है, उस परिसर की फैक्ट फाइंडिंग टीम द्वारा ली गईं तस्वीरें इस बात को उजागर करती हैं कि पुलिस ने किस तरह से उस क्षेत्र को सील कर दिया है और उसकी घेराबंदी कर दी है। हालांकि परिसर के मुख्य प्रवेश द्वार को पुलिस ने सील कर दिया है, लेकिन मुख्य दरवाजे को सील नहीं किया गया है।
अपराधस्थल का मुख्य प्रवेश द्वार सील है
वास्तव में, गवाहों की गवाही के आधार पर, जैसा कि तथ्य-खोज टीम को दिया गया था, पुलिस ने 03.11.2023 तक यानी 31.10.2023 को हुई घटना के 3 दिन बाद तक अपराधस्थल को सील नहीं किया था। इससे आरोपी व्यक्तियों द्वारा सबूतों से छेड़छाड़ और नष्ट करने की आशंका पैदा होती है, खासकर चूंकि आटा चक्की और परिसर आरोपी व्यक्तियों के स्वामित्व में हैं।
मूल अंग्रेजी में फैक्ट फाइन्डिंग रिपोर्ट के लिए नीचे पढिए
फैक्ट-फाइंडिंग टीम
एडवोकेट रश्मि वर्मा, दलित गरिमा एवं न्याय केंद्र
एडवोकेट कुलदीप बौद्ध, बुन्देलखण्ड दलित अधिकार मंच
राजा भैया, विद्या धाम समिति
मोबिना खातून, चिंगारी संगठन
एडवोकेट वंशिका मोहता, यूथ फॉर ह्यूमन राइट्स डॉक्यूमेंटेशन
विपुल कुमार, यूथ फॉर ह्यूमन राइट्स डॉक्यूमेंटेशन
बुन्देलखण्ड दलित अधिकार मंच, चिंगारी संगठन; दलित गरिमा एवं न्याय केंद्र, विद्या धाम समिति और यूथ फॉर ह्यूमन राइट्स डॉक्यूमेंटेशन द्वारा जारी