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राजा बलरामपुर धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह के निधन पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने किया गहरा शोक व्यक्त

राजा बलरामपुर धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह के निधन पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने किया गहरा शोक व्यक्त
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजा बलरामपुर धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है. उन्होंने कहा कि धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह सदैव लोगों की मदद के लिए तत्पर रहते थे. शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हुए उल्लेखनीय कार्य किए। जनता में लोकप्रिय धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह के निधन से समाज को अपूरणीय क्षति हुई है. दिवंगत आत्मा की शांति की कामना करते हुए शोक संतप्त परिजनों के प्रति अपनी संवेदना भी व्यक्त की है



कौन है राजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह

बलरामपुर के गौरवशाली राजवंश के वर्तमान उत्तराधिकारी महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह का जन्म 25 अगस्त 1958 को जनवार वंश के ही गंगवल राजकुल में हुआ। गंगवल रियासत में आपका नाम रघुवंश भूषण सिंह था। बलरामपुर आने पर आपका नया नाम धर्मेंन्द्र प्रसाद सिंह रखा गया। आपके पिता कुवंर भरत सिंह गंगवल रियासत के राजा बजरंग बहादुर सिंह के कनिष्ठ पुत्र हैं। कोसलेन्द्र भरत के सदृश्य सौम्य स्वभाव के शीलवान गृहस्थ सन्त हैं। महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह की माता जी मझगवाँ (गोण्डा) के भैया रामपाल सिंह की ज्येष्ठ पुत्री कुंवरानी माण्डवी देवी हैं। बालक धर्मेन्द्र में पिताश्री का पुण्य पुंज साकार हो उठा। बालक धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह की ओर बलरामपुर नरेश की दृष्टि गयी। बड़े धूमधाम और समारोह के बीच महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह और उनकी धर्म परायण महारानी ने 28 फरवरी 1963 ई0 को इन्हें गोद लिया। महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह का शुभ विवाह नेपाल के सुप्रतिष्ठित राज्य परिवार में कर्नल ईना शमशेर जंग बहादुर राणा की सुपुत्री महाराजकुमारी वन्दना सिंह के साथ 6 मार्च 1980 को सम्पन्न हुआ। सोने के साथ सुगन्धि के सुयोग से परिजन-पुरजन सभी आह्लादित हो उठे। 29 दिसम्बर 1980 को शुभ मुहूर्त में महारानी के पुत्र-रत्न महाराज कुमार जयेन्द्र प्रताप सिंह का जन्म हुआ। महाराज कुमार मेधावी तथा सौम्य प्रकृति के हैं। 21 अप्रैल 1984 को महारानी से एक कन्या-रत्न महाराजकुमारी विजयश्री ने जन्म पाया। महाराजा धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह जी ने मेयो कालेज, अजमेर से सीनियर कैम्ब्रिज की शिक्षा प्राप्त की। 26 अगस्त 1976 को वयस्कता प्राप्ति के साथ आपने विशाल राजवंश का गुरूतर भार ग्रहण किया। रियासत उस समय अव्यवस्था से गुजर रही थी। महाराजा साहब ने अपनी पूरी दिनचर्या इसे व्यवस्थित करने में लगा दी। रियासत के सभी मुकदमों को भी निपटाया। कई महीनों के अथक परिश्रम के बाद रियासत को व्यवस्थित करके अब अपना अधिकांश समय अध्य्यन में व्यतीत करते हैं। अल्पावस्था में ही आपने जिस सूझबूझ और विवेक का परिचय दिया उसे देख लोग चकित रह गये। किसी माध्यम अथवा सिफारिश के द्वारा रखी गई बात की अपेक्षा वे स्वयं अपनी समस्या सामने रखने का प्रोत्साहन देते हैं। बड़े धैर्य से पूरी बात सुनते तथा सहानुभूति पूर्वक विचार कर समुचित समाधान करते हैं। महाराजा साहब चाटुकारों दलालों से दूर और दुव्र्यसनों से परे हैं। विवेक, आत्मविश्वास, धैर्य, सहानुभूति उदारता और न्यायप्रियता के सदगुणों से उन्होंने लोगों का हृदय जीता है।

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