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हार जीत का अंतर कम होगा, बीजेपी को सीट गंवाने का डर भी
बाराबंकी
मतदान प्रतिशत संतोषजनक रहा और बीते चुनाव से कुछ ज्यादा भी। कुछ दिन पहले जिस त्रिकोणीय लड़ाई की बात की जा रही थी वोट पड़ने के बाद हो रही चर्चाओं ने तस्वीर का अनसुना पहलू बयान करना शुरू कर दिया है।
वोटरों की इस चर्चा का निष्कर्ष यही निकल रहा है ज्यादातर मुस्लिम वोट गठबंधन ले गया बाकी कांग्रेस को गया। कुर्मी वोट का पलड़ा भी गठबंधन की ओर झुका दिखा। ऐसे में भाजपा के पक्ष में पड़ने वाले वोट उसकी जीत के अंतर को इतना कम कर सकते है कि उसे हार का सामना न करना पड़ जाए। यहां बता दे कि बीते चुनाव में भाजपा को दो लाख से ज्यादा वोटो से जीत मिली थी।
वोटर की चर्चा में भाजपा व गठबंधन के बीच कड़ी टक्कर दिखी। अब बात करे कांग्रेस की तो संगठन मजबूत न होने के बजाय कटिबद्घ समर्थकों की फौज मैदान में डटीं रही। पीस पार्टी के समर्थन ने भी गुल खिलाया। बुनकर बाहुल्य इलाको में तनुज सबको पीछे छोड़ गए। उन्हें कांग्रेस के परम्परागत मतों के अलावा मुस्लिम व पिछड़ी जाति के वोट भी मिले।
जनपदवासियों के सहयोग से हुआ 56.23 प्रतिशत मतदान: डीईओ
एक फैक्ट्री के मालिक ने तो यहां तक कहा कि जब हवा देखी तो गठबंधन को वोट देना मजबूरी बन गया वरना कांग्रेस से तो बेहतर कोई नही था। इन्होंने यह भी कहा लगभग 500 वोट गठबंधन को दिलाये।
कुर्मी वोट के बारे में लोगो का कहना था कि बाबू जी बुजुर्ग हो गए है उनकी बात मानी जायेगी क्योकि उनके अलावा कोई कुर्मी नेता नही है। हमारा प्रत्याशी भी सबसे ज्यादा अनुभव वाला है।
भाजपा प्रत्याशी की बात पर लोंगो ने कहा कि मोदी के जादू का इंतजार कर रहे संगठन ने कुछ किया ही नही। अंतर्विरोध ने अलग से कोढ़ में खाज का काम किया। बात तो धीरे धीरे ये भी खुल रही है कि चुनाव पर खर्च होने वाली रकम में भी घाल मेल किया गया। इसकी भनक पार्टी के बड़े नेताओं को हो गई तो चेतावनी यहां तक दे दी गई है कि नतीजे प्रभावित हुए तो खैर नही। इस चुनाव से प्रियंका रावत ने भी दूरी बनाए रखी। वो सिर्फ एक दिन पीएम की मीटिंग में पहुंची। विधायकों का रवैया इस तरह रहा कि गांव में वोटर कह बैठे कि इनका बीच से हटाओ हम तो वोट मोदी को देंगे।
इस तरह मतों के अप्रत्याशित विभाजन,संगठन के आलस और सक्रियता से हार जीत का अंतर तो कम करेगा ही कहीं सांसदी का ताज न फिसल जाए।