बाराबंकी

नम आंखों से रुख्शत हुए सैकड़ो हज यात्री , लोगो ने गले लगा कर फूल मालाएं पहनाई, भारी हुजूम रहा मौजूद

Special Coverage News
25 July 2019 5:07 PM IST
नम आंखों से रुख्शत हुए सैकड़ो हज यात्री , लोगो ने गले लगा कर फूल मालाएं पहनाई, भारी हुजूम रहा मौजूद
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कोई खुश था की उसका ख्वाब पूरा हो गया, कोई अफसोस में डूबा था की वह जिम्मेदारियों की वजह से नही जा सका, किसी के सीने में अरमान मचल रहे थे की काश अल्लाह ने हमे भी इस लायक बनाया होता। मौका था इस साल तकदीर वाले हज यात्रियों को विदा करने का लिहाजा जनपद के हर हिस्से से जुमेरात को भारी हुजूम ने उन्हें फूल मालाओं को पहना कर गले लगा कर रुख्शत किया । इस साल कुल 491 लोग हज के लिए जा रहे है। जिसमे 242 औरते सामिल है।

यंहा से गये सबसे ज्यादा हज यात्री

जैदपुर से 42, रामपुर से 24,शावपुर से 22 समेत तकरीबन हर जगहों से जुमेरात को हज के लिए लोग रवाना हुए । इन्हें रुख्शत करने के लिए हजारो लोग पहुचे कोई हाथ मिला कर दुआ करने को कह रहा तो कोई मुल्क में अमन चैन की दुआ करने को याद दिला रहा था । वही भीड़ हज यात्रियों से मुसाफा मिलाने की जद्दोजहद में लगी रही। इसी क्रम में रामपुर में हज यात्री के पास एक बुजुर्ग पहुचा और हाथ मिलाते हुए इस गीत को गुनगुनाया ....ना थी मेरी किस्मत के देखु मदीना मदीने वाले से मेरा सलाम कहना । गरीब के मुह से ऐसा सुनकर कुछ देर के लिए पूरा माहौल बदल गया।

45 दिन की है हज यात्रा

हज को मुकम्मल करने के लिए करीब 45 दिनों का लंबा वक्त लगता है इस दौरान हज में तीन बातें फर्ज हैं। अगर वे छूट जाएँ तो हज न होगा। हज का पूरा तरीका यह है कि पहले 'तवाफे वुकूफ' करते हैं। हजरे असवद (काला पत्थर) को चूमते हैं फिर सफा और मरवा दोनों पहाड़ियों के बीच दौड़ते हैं। 8 जिलहिज्जा को फज्र की नमाज पढ़कर मीना चल देते हैं। रात को मीना में रहते हैं। 9 जिलहिज्जा को गुस्ल करके अरफात के मैदान की तरफ रवाना होते हैं। वहाँ शाम तक ठहरते हैं। हज कमेटी के सदर हाजी इरफ़ान अंसारी बताते है कि

अरफात का मंजर बड़ा ही अद्भुत होता है। दूर-दूर से आए अल्लाह के बंदों का ठाठें मारता हुआ समुद्र दूर तक नजर आता है। कोई गोरा, कोई काला, कोई छोटा, कोई बड़ा। सबका एक ही लिबास, सबकी जुबानों पर एक ही अल्लाह की बढ़ाई। सब एक ही मुहब्बत में सरमस्त नजर आते हैं।

न कोई गरीब, न अमीर, न छोटा, न बड़ा, न कोई राजा है, न प्रजा। सब एक ही अल्लाह के बंदे हैं। सब एक के गुण गाते हैं। और सबका एक ही पैगाम है और एक ही पुकार। सब तारीफें अल्लाह ही के लिए हैं। सारी नेमतें उसी की हैं। उसका कोई साक्षी नहीं। हम सब उसी के बंदे हैं और उसी की पुकार पर उसके दर पर हाजिर हैं।

एहराम क्या है हज का खास सफेद लिबास पहनना, हज की निय्यत करना और हज की दुआ करना।

मीकात क्या है वह इलाका, जहाँ पहुँचकर हज करने का इहराम बाँधते हैं।

तल्बियह एहराम बाँधने के बाद से हज खत्म तक उठते-बैठते और हज के अरकान अदा करते वक्त जो दुआ पढ़ते हैं, उस को तल्बियह कहते हैं। तल्बियह यह है- 'ऐ अल्लाह! मैं तेरी पुकार पर तेरे दरबार में हाजिर हूँ। तेरा कोई साझी नहीं है। मैं तेरे दर पर हाजिर हूँ। बेशक, तमाम तारीफें और सारी नेअमतें तेरे लिए हैं। बादशाहत तेरे ही लिए है। तेरा कोई साझी नहीं।'

किसे कहते तहलील

ला इलाह इल्ललाहु मुहम्मर्दुरसूलुल्लाह पढ़ना।

तवाफ के दौरान काबा शरीफ के गिर्द चक्कर लगाना। और

"वुकूफ" के वक्त अरफात और मुज्दल्फा नामी जगह पर कुछ देर ठहरना। इसी तरह

"रमी" जमरा के पास कंकरियाँ मारने को रमी कहते हैं। व

"तहलीक" सिर के बाल मुँडवाना "तकसीर" सिर के बाल कटवाना और छोटे कराना। के अलावा "उमरा" एहराम बाँधकर काबा का तवाफ करना और सफा मरवा नामी पहाड़ियों के बीच दौड़ना,उमरा हज के दिनों के अलावा भी कर सकते हैं।

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