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उपन्यास मदारीपुर जंक्शन ने लिख दिए नए आयाम, कई बड़े सम्मान, अवार्ड आये उनकी झोली में
बाराबंकी (स्पेशल कवरेज न्यूज)
पसीने की स्याही से जो लिखते हैं इरादें को, उसके मुक्कद्दर के सफ़ेद पन्ने कभी कोरे नही होते… जी हां हम बात कर रहे है। लखनऊ के जिला अल्पशंख्यक कल्याण अधिकारी बालेंदु द्विवेदी की जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार की सेवा में रहकर बड़ी प्रशासनिक जिम्मेदारियो को बखूबी निभाते हुए बचे वक्त की स्याही से समाज की गहराइयों में जाकर अपने इरादों को मदारीपुर जंक्शन नामक उपन्न्यास को लिख कर उकेरा। जिसकी लोकप्रियता को ऐसे पंख मिले की आज सम्मान, अवार्ड खुद चलकर उसके कदमो को चूम रहे है। सूबे के राज्यपाल से लेकर कई संस्थानों ने सम्मान से नवाजा है।
सारस्वत सम्मान से नवाजे गए बालेंदु द्विवेदी
भारतीय साहित्य परिषद,उत्तर प्रदेश की ओर से वर्ष 2017 का "सारस्वत सम्मान" दिया गया। उनको यह सम्मान 13 मार्च,2019 को लखनऊ के प्रेस क्लब में एक सार्वजनिक समारोह में दियागया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष प्रोफेसर सदानंद प्रसाद गुप्त ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर राष्ट्रीय विश्विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संजय सिंह थे।
अमृतलाल नागर सर्जना सम्मान भी मिला
बालेन्दु द्विवेदी के उपन्यास मदारीपुर जंक्शन को,इसके पूर्व उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का वर्ष 2017 का "अमृतलाल नागर सर्जना सम्मान" मिल चुका है।ज्ञातव्य हो कि "उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान" की ओर से भी बालेन्दु के उपन्यास मदारीपुर जंक्शन को वर्ष 2017 का अमृतलाल नागर पुरस्कार देने की घोषणा हो चुकी है। यह भी एक आकस्मिक संयोग ही है कि एक ही कृति पर दो अलग-अलग संस्थानों द्वारा एक नाम के पुरस्कार इस कृति को मिलेंगे। यही से ये बात तस्दीक होती है कि "मदारीपुर जंक्शन" नामक उपन्यास कितनी शिद्दत से लिखी गयी होगी । गज़ब की स्टोरी को अपनी आगोश में समेटे इस किताब को "स्पेशल न्यूज़ कवरेज चैनल की तरफ से ढेरो शुभकामनाये"
मदारीपुर जंक्शन" एक सामाजिक-राजनीतिक व्यंग्यात्मक उपन्यास है
बताते चलें कि बालेन्दु लिखित "मदारीपुर जंक्शन" एक सामाजिक-राजनीतिक व्यंग्यात्मक उपन्यास है और बहुत कम समय में ही यह बहुपठित और बहुसमीक्षित उपन्यास साबित हुआ है।अभी तक वाणी प्रकाशन से इसके तीन संस्करण आ चुके हैं।उपन्यास के प्रकाशन के आरंभ से लेकर अभी तक इसकी समीक्षाएं देश की कई बड़ी पत्रिकाओं में छप चुकी हैं।
अबकई भाषाओं में मिलेगा उपन्यास
शीघ्र अवधि में अपनी लोकप्रियता और पाठक वर्ग के विस्तार के चलते मदारीपुर जंक्शन केवल हिंदी भाषा तक ही सीमित नहीं रही है। बल्कि इसके अंग्रेज़ी,उर्दू और उड़िया आदि विविध भाषाओं में अनुवाद का कार्य आरंभ हुआ है और अंग्रेजी भाषा की सबसे बड़ी प्रकाशन कंपनी हार्पर एंड कॉलिन्स ने इसके अंग्रेजी अनुवाद के प्रकाशन में अपनी रुचि दिखाई है।
जल्द ही वाया फुरसतगंज उपन्यास आएगी
बालेन्दु वर्तमान में अपने नए उपन्यास वाया फुरसतगंज के लेखन में व्यस्त हैं,जो इलाहबाद की पृष्ठभूमि पर केंद्रित है।बालेन्दु बताते हैं कि ''इलाहाबाद में मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण समय गुज़रा है।मैंने वहां रहकर न केवल जीवन का बल्कि साहित्य का भी ककहरा सीखा है।साहित्य के लिहाज से यहां की ज़मीन अत्यंत उर्वर रही है।फिर भी मैने देखा है कि यहां का परिवेश,यहां का वैभव और यहाँ का सुख-दुख और जीवनानुभव साहित्य से लगभग नदारद है।मुझे यह बात बहुत कचोटती आई है।मैं यहां की ज़मीन की वैविध्यता को व्यंग्यात्मक तरीके से उकेरने की कोशिश में हूँ।कोशिश कर रहा हूँ कि वर्ष 2019 में यह उपन्यास पाठकों के सामने हो।''
प्रिय कथाकार की अमर कहानियां के संकलन पर भी वर्क
इसके अतिरिक्त बालेन्दु ने "प्रिय कथाकार की अमर कहानियां" नामक यह संकलन प्रसिद्ध उपन्यासकार एवं कहानीकार मुंशी प्रेमचंद को श्रद्धांजलि स्वरूप तैयार किया है।इसमें प्रेमचंद की कुल 21 अमर कहानियां संकलित की गई हैं। बालेन्दु के लेखन पर प्रेमचंद का गहरा प्रभाव रहा है और वे मानते हैं कि यदि उन्होंने प्रेमचंद को न पढ़ा होता तो शायद साहित्य में कभी हाथ न आज़माते..!तब शायद उनके जीवन की दिशा कुछ और ही होती।
विषय और भाषा की सहजता और स्वाभाविकता ने आकर्षित किया
लेखक बालेन्दु के अनुसार प्रेमचंद के लेखन की सबसे बड़ी चीज जो उन्हें आकर्षित करती है वह है-उनके विषय और भाषा की सहजता और स्वाभाविकता..!यह अन्यत्र दुर्लभ है।देखा जाय तो यही चीज़ प्रेमचंद और उनके लेखन को कालजयी बनाती है।
बालेन्दु का मानना है कि प्रेमचंद की प्रत्येक कहानी मानव मन के अनेक दृश्यों चेतना के अनेक छोरों सामाजिक कुरीतियों तथा आर्थिक उत्पीड़न के विविध आयामों को अपनी संपूर्ण कलात्मकता के साथ अनावृत करती है। कफन, नमक का दारोगा, शतरंज के खिलाड़ी आदि उनकी सैकड़ों कहानियां ऐसी हैं, जो विचार और अनुभूति दोनों स्तरों पर पाठकों को आज भी आंदोलित करती हैं। वे एक कालजयी रचनाकार की मानवीय गरिमा के पक्ष में दी गई उद्घोषणाएँ हैं। कहा जा सकता है कि समाज के दलित वर्गों,आर्थिक और सामाजिक यंत्रणा के शिकार मनुष्यों के अधिकारों के लिए जूझती मुंशी प्रेमचंद की कहानियाँ हमारे साहित्य की सबलतम निधि हैं।
बालेन्दु इसके अलावा मृत्युभोज नामक एक नाटक और रामचंद्र शुक्ल पर केंद्रित आलोचना की एक पुस्तक जातीय परंपरा की खोज पर काम कर रहे हैं।