बाराबंकी

झूठ फरेब से दूर रहे छात्र तरक्की कदम चूमेगी - ज्ञानमती माता

Special Coverage News
23 Nov 2019 12:20 PM GMT
झूठ फरेब से दूर रहे छात्र तरक्की कदम चूमेगी - ज्ञानमती माता
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बाराबंकी- हिमांस वर्मा

जैन धर्म की सबसे बड़ी गणिनी प्रमुख आर्यिका ज्ञानमती माता अतिशय क्षेत्र त्रिलोकपुर मंदिर पहुची अपने दो दिवसीय विहार के पहले दिन स्थानीय बीपी शुक्ला इंटर कालेज के सैकड़ो बच्चो प्रवचन दिया सवालों के सही जवाब देने पर उन्हें पुरुस्कृत किया। कहा बच्चो हिंसा,झूठ, फरेब से दूर रहकर पशु, पक्षियों की सेवा करना लक्ष्य में शामिल करो तरक्की आपके कदमो को चूम लेगी। इससे पूर्व सुबह बैंड बाजे आतिशबाजी के साथ उनके आगमन का भव्य स्वागत हुआ।

अहिंसा से पर्यावरण शुद्ध होगा

अहिंसा से पर्यवरण में शुद्धि और विश्व मे शांति होगी पीड़ादायक चीख पुकार से पर्यावरण दूषित होता है। इस लिए किसी को कष्ट न दे। मांसाहार से जीवन नरक में जाता है। इससे बचे प्रावचन में बच्चो से कहा कभी किसी जीव को न सताना सुखी रहोगे झूठ फरेब से बचो बहुत ऊंचाइयां पाओगे।




साधु एक छायादार पेड़ की तरह

जैन धर्म की दूसरी सबसे बड़ी चंदनामती माता जी ने साधु एक पेड़ की तरह होता है उसकी छाया सबको मिलती है। कहा जब हम दुख से डर लगता है तो हम दूसरो को दुख देने वाले कार्य क्यों करते है। सुख बाजारू चीज नही जो पैसों से मिला जाए इसके लिए हमे अच्छे कार्य करने होंगे बच्चो से कहा आज्ञाकारी बनो। विद्या पुण्य के साथ करना विनय है

माता जी ने कहा शेर अजगर से नही मानव को मानव से डर है । आतंकवाद, दानव से मानवता को सबसे बड़ा खतरा है। बताया कि त्रिलोकपुर में चमत्कारी भगवान है। यह एक बड़ा तीर्थ स्थान है। कहा जिसके अंदर मानवता वह भगवान का रूप है । जीवन एक उपहार है। संघर्षों से भरा जीवन है इससे भागे न सामना करे । इस मौके पर दिए गए प्रवचन के सम्बंध में पूछे गये सवाल के सही जवाब देने पर जैन समाज के अध्यक्ष रामगोपाल, प्रबंधक सुनील जैन, प्रिंसीपल नन्हे सिंह ने बच्चो को पुरस्कृत किया।




णमोकार मन्त्र का अर्थ समझाया

णमोकार मन्त्र जैन धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मन्त्र है। इसे 'नवकार मन्त्र', 'नमस्कार मन्त्र' इस मन्त्र में अरिहन्तों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों और साधुओं का नमस्कार किया गया है।

णमोकार महामंत्र' एक लोकोत्तर मंत्र है। इस मंत्र को जैन धर्म का परम पवित्र और अनादि मूल मंत्र माना जाता है। इसमें किसी व्यक्ति का नहीं, किंतु संपूर्ण रूप से विकसित और विकासमान विशुद्ध आत्मस्वरूप का ही दर्शन, स्मरण, चिंतन, ध्यान एवं अनुभव किया जाता है। इसलिए यह अनादि और अक्षयस्वरूपी मंत्र है।

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