बदायूं

बदायूं की जामा मस्जिद को मंदिर बताने वाली याचिका का स्वीकार किया जाना अवैधानिक- शाहनवाज़ आलम

Desk Editor
6 Sep 2022 11:16 AM GMT
बदायूं की जामा मस्जिद को मंदिर बताने वाली याचिका का स्वीकार किया जाना अवैधानिक- शाहनवाज़ आलम
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अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने बदायूं की 800 साल पुरानी जामा मस्जिद के मंदिर होने का दावा करने वाली हिंदुत्ववादी संगठनों की अर्जी को बदायूं सिविल जज सीनियर डिविजन विजय कुमार गुप्ता द्वारा मंजूर कर लेने के निर्णय को अवैधानिक बताया है। उन्होंने इसे पूजा स्थल क़ानून 1991 का उल्लंघन बताते हुए उनके खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए विधिक कार्यवाई की मांग की है।

कांग्रेस मुख्यालय से जारी प्रेस विज्ञप्ति में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि बदायूं की जामा मस्जिद देश की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है जो 1223 इस्वी में बनी थी। जिसे गुलाम वंश के शासक शम्सुद्दीन अल्तमश ने बनवाया था। मस्जिद में तब से ले कर आज तक रोज़ पांचों वक़्त विधिवत नमाज़ अदा की जाती है। आज तक कभी भी इसके मस्जिद न होने या इसके किसी मंदिर के स्थान पर बने होने का दावा किसी ने नहीं किया था। लेकिन एक साज़िश के तहत सांप्रदायिक संगठनों द्वारा इसे मंदिर होने का दावा करते हुए ज़िला कोर्ट में अर्ज़ी डाल दी गयी। जिसे आश्चर्यजनक तरीके से जज ने स्वीकार कर इसकी सुनवाई के लिए मुसलमानों से जवाब भी तलब कर लिया।

जबकि विधिक तौर पर इसे नियम 11 CPC के तहत अदालत को प्रथम दृष्टया ही ख़ारिज कर देना चाहिए था क्योंकि यह वाद चलने योग्य ही नहीं था। दूसरे, चूंकि पूजा स्थल क़ानून 1991 स्पष्ट करता है कि 15 अगस्त 1947 के दिन तक धार्मिक स्थलों का जो भी चरित्र रहा है वह बदला नहीं जा सकता (सिवाय बाबरी मस्जिद-रामजन्म भूमि के)। इसे चुनौती देने वाले किसी भी प्रतिवेदन या अपील को किसी न्यायपालिका, किसी न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) या प्राधिकरण (ऑथोरिटी) के समक्ष स्वीकार ही नहीं किया जा सकता। इसलिए भी इस अर्जी को क़ानूनन स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

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