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पर्यावरण संरक्षण आज की महती आवश्यकता है, पर्यावरण नहीं बचा तो हम भी नहीं बचेंगे - ज्ञानेन्द्र रावत

Special Coverage News
10 Aug 2019 12:21 PM GMT
पर्यावरण संरक्षण आज की महती आवश्यकता है, पर्यावरण नहीं बचा तो हम भी नहीं बचेंगे - ज्ञानेन्द्र रावत
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एटा। गत दिवस जनपद के कासगंज रोड स्थित आदर्श जनता महाविद्यालय के सभागार में पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मेलन में आयोजक राष्ट्रीय युवा शक्ति प्रमुख प्रदीप रघुनंदन, प्रभागीय वनाधिकारी ओ. पी. पाण्डेय, कालेज के प्राचार्य सुरेन्द्र सिंह बघेल, प्रोफेसर प्रियंका यादव, डौली चौहान, जयवीर सिंह यादव, विनय कुमार, शिक्षाविद एवं समाजसेवी सत्यपाल वर्मा, ललित मोहन, बी. एड, बीटीसीत्र सहित सैकड़ों स्नातकोत्तर छात्र -छात्राओं के अलावा प्रमुख सामाजिक एवं पर्यावरण कार्यकर्ताओं की उपस्थिति उल्लेखनीय थी।

अगस्त क्रांति के ऐतिहासिक स्मरणीय दिवस पर आयोजित इस पर्यावरण सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, पर्यावरणविद एवं राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति के अध्यक्ष ज्ञानेन्द्र रावत ने अपने सम्बोधन में कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि धरती के पास मानव की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी कुछ है। लेकिन उसके लोभ को पूरा करने के लिए कुछ भी नहीं है। आज धरती और मानवता के बीच टकराव उसी मानवीय लोभ का परिणाम है। उसके चलते प्रकृति की अनदेखी का दुष्परिणाम धरती का असंतुलन सबसे बड़े खतरनाक मोड़ के पर आ पहुंचा है। बढ़ती आबादी, नित नयी वैज्ञानिक सोच, असंतुलित विकास, सुख सुविधाओं की चाहत की अंधी दौड़ और हमारी स्वार्थपरक सोच ने धरती को विनाश के कगार पर पहुंचा दिया है। नतीजतन उसका दुष्परिणाम प्रकृति प्रदत्त संसाधनों पर अत्याधिक दबाव और जीव जंतुओं की, वनस्पतियों की हजारों हजार प्रजातियों की विलुप्ति के रूप में हमारे सामने है। दुख इस बात का है कि इसके बावजूद धरती जो हम सबका घर है, की बेहतरी की बावत हम नहीं सोच रहे। अब यह जगजाहिर है कि इसके लिए प्राकृतिक कारण नहीं, मानवीय गतिविधियां ही जिम्मेदार हैं। विडम्बना यह कि यह जानते समझते हुए भी मानवीय लोभ के चलते धरती के संसाधनों का क्षय,क्षरण और दोहन बेतहाशा जारी है। नदियों का प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जंगलों का कटान,हरित संपदा का बढ़ता ह्वास, क्षरण, हर साल 3300 करोड़टन कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन ,कृषि भूमि का दैनंदिन कर होते चला जाना इसका जीता जागता सबूत है। यह गर्व की बात नहीं है कि हर साल एक करोड़ तीस लाख वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र नष्ट कर दिया जाता है। इसका परिणाम यह हुआ कि आज समूची दुनिया में केवल चौंतीस फीसदी ही वन क्षेत्र बचा है। पूरी दुनिया में 5500 करोड़ टन से ज्यादा हम हर साल प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं। यह सिलसिला कब थमेगा। चिंता का विषय असल में यही है।


दरअसल सही मायने में तथाकथित विकास के दुष्परिणाम के चलते हुए बदलावों से धरती पर आयेदिन बोझ बढ़ता जा रहा है। इसे जानने समझने और कम करने की बेहद जरूरत है। जलवायु परिवर्तन ने इसमें अहम भूमिका निबाही है। यह समूची दुनिया के लिए भीषण खतरा है। अब समय आ गया है कि हम अपनी जीवन शैली पर पुनर्विचार करें, उपभोग के स्तर को कम करें और स्वस्थ जीवन के लिए प्रकृति के करीब जाकर सीखें। यदि ऐसा नहीं किया तो जीवन मुश्किल हो जायेगा। सरकारों के लिए जरूरी है कि वह विकास को मात्र आर्थिक लाभ की दृष्टि से न देखें बल्कि पर्यावरण को विकास का आधार बनाये।

इसमें दो राय नहीं कि वृक्षारोपण धरती के बहुत सारे वर्तमान और भावी दुखों को दूर कर सकता है। ग्लोबल वार्मिंग से बचना है तो पेड़ लगाना होगा। कार्बन उत्सर्जन अवशोषित करने के लिए पेड़ लगाना बेहद जरूरी है।क्रोथर लैब और ईटीएच ज्यूरिख शोध संस्थानों का निष्कर्ष है कि हरित संपदा का हमने इतना दोहन किया है कि अब हमें अमेरिका जितने इलाके यानी नब्बे करोड़ हैक्टेयर में पेड़ लगाना जरूरी हो गया है। यह जान लो कि पेड़ केवल संसाधन नहीं हैं, वह जीवन का आधार हैं।यह जान लीजिए कि धरती पर पर्यावरणीय विनाश का भीषण खतरा मंगरा रहा है। धरती का पर्यावरण बचाना है तो पेड़ लगाना होगा। प्रदूषण से लड़ना है तो पेड़ लगाओ, तभी कल्याण संभव है। समाज को वृक्षों से जोड़ने की आपके ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। देश का भविष्य आपके ऊपर निर्भर है। आप लोग संकल्प लें कि वह चाहे बच्चे के जन्म का अवसर हो या जन्म दिन या विवाह का अवसर हो, एक पेड़ अवश्य लगायें। इसके लिए मानव की सोच बदलना बेहद जरूरी है। इसके बिना कामयाबी बेमानी होगी।

प्रभागीय विनाशकारी ओ पी पाण्डेय ने कहा कि हमें जीवन में वृक्षों का महत्व समझना होगा। इसके लिए जनजागृति परमावश्यक है। जन सहभागिता इसकी सफलता की कुंजी है। वृक्षों को समाज से जोड़ो अभियान के संयोजक और राष्ट्रीय युवा शक्ति के प्रमुख प्रदीप रघुनंदन ने आह्वान किया कि हम सब कंधे से कंधा मिलाकर जनसहभागिता के साथ इस चुनौती को पूरा करने का संकल्प लें तभी पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकेंगे। यह मानव सभ्यता की रक्षा हेतु हमारा सबसे बड़ा योगदान होगा। सम्मेलन में प्रोफेसर प्रियंका यादव, प्रोफेसर डौली चौहान, कुमारी मोहिनी सिंह, गरिमा यादव, सुरभि गुप्ता, कुमारी रश्मि, गौरी द्विवेदी, कुमारी मोहिनी ,कुमारी कंचना, कृष्णवीर सिंह, चंद्रकांत मिश्र आदि ने पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला और चिपको आंदोलन की चर्चा करते हुए वृक्षों के प्राणी से संबंध को ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर परिभाषित किया। अंत में प्राचार्य सुरेन्द्र सिंह बघेल व आयोजक प्रदीप रघुनंदन ने मुख्य अतिथि पर्यावरणविद ज्ञानेन्द्र रावत को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया व सम्मेलन की सफलता हेतु उपस्थित जनों, शिक्षाविदों, समाजसेवियों, अभिभावकों व छात्र-छात्राओं का आभार व्यक्त किया व आश्वासन दिया कि पर्यावरण रक्षा हेतु वह जीजान से भविष्य में भी तत्परता से सक्रिय रहेंगे। सम्मेलन के उपरांत समाज को वृक्षों से जोड़ो नामक अभियान के तहत एक मार्च निकाला गया जिसमें छात्र -छात्राओं सहित सभी उपस्थित जनों ने भाग लिया।

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