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बाबरी मस्जिद के मुस्लिम पक्षकार सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में, जिलानी-धवन में हुई ये बात?
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट के गठन की घोषणा कर दी गई है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में इस फैसले को पढ़कर सुनाया। इसके बाद ही प्रदेश की योगी सरकार ने भी अयोध्या जिले के रौनाही में मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन का आवंटन कर दी। लेकिन मस्जिद के लिए राज्य सरकार की ओर से अलॉट की गई पांच एकड़ भूमि से मुस्लिम पक्ष संतुष्ट नहीं है।
वही अब बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी अगले सप्ताह बाबरी मस्जिद के अवशेष पर दावा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करने वाली है मुस्लिम पक्ष उस जगह से 1992 में गिराई गई बाबरी मस्जिद के अवशेष हटवाना चाहता है। कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने कहा कि हमने अपने वकील राजीव धवन के साथ चर्चा की है और उनका भी विचार है कि हमें मस्जिद के अवशेष पर दावा करना चाहिए। लिहाजा हम अगले सप्ताह दिल्ली में बैठक कर प्रक्रिया को आगे बढ़ाएंगे।
उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने बुधवार को पत्रकारों को बताया था कि राज्य सरकार ने लखनऊ राजमार्ग पर अयोध्या में सोहावाल तहसील के धन्नीपुर गांव में जमीन का आवंटन पत्र सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया है।
मुस्लिम पक्षकारों ने रामकोट स्थित श्रीरामजन्मभूमि से 25 किमी दूर रौनाही थाने के पीछे दी गई भूमि को मस्जिद के लिए अनुपयुक्त बताया है आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए आदेश के मुताबिक मस्जिद निर्माण के लिए भूमि उपयुक्त जगह पर नहीं दी गई है। वहां अयोध्या के लोग नमाज पढ़ने नहीं जा सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने श्रीरामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर अंतिम फैसला नौ नवंबर 2019 में सुनाया। विराजमान रामलला को उनका जन्मस्थान मानते हुए संपूर्ण अधिग्रहीत भूमि केंद्र सरकार को ट्रस्ट बनाकर सौंपने का आदेश दिया। जबकि सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अयोध्या में उपयुक्त स्थान पर पांच एकड़ भूमि मस्जिद के लिए देने को कहा था।
बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा कि उनकी ओर से बिजली शहीद मस्जिद के पास भूमि देने का सुझाव दिया गया था। लेकिन सरकार ने अयोध्या से 25 किमी. दूर जमीन देकर न्याय नहीं किया है। जिस मस्जिद के एवज में फैसला आया, इसके लिए आसपास ही भूमि मिलनी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसला का अनुपालन नहीं हुआ है। उतनी दूर अयोध्या के लोग नमाज कैसे पढ़ेंगे।
बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब ने कहा कि राज्य सरकार ने मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन जिस स्थान पर दी है वहां मस्जिद बनाने का कोई औचित्य नहीं होगा। हमने तो पंचकोसी और चौदहकोसी के बाहर उदया कॉलेज के पास चक्रतीर्थ इलाके में पांच एकड़ भूमि देने का सुझाव दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट जाकर उपयुक्त स्थान देने के लिए न्याय मांगने का ही रास्ता बचा है। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड यह जमीन स्वीकार करेगा तो किसके लिए।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारी सदस्य और वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि शहर का नाम बदलने और उसकी नगरपालिका की सीमा का विस्तार करने का मतलब यह नहीं है कि जिस जमीन की पेशकश की गई है, वह अयोध्या में ही है।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले साल दिवाली के दौरान फैज़ाबाद जिले का नाम बदल कर अयोध्या कर दिया था। मुकदमे से संबंधित सभी दस्तावेज़ों में अयोध्या एक छोटा शहर है, फैज़ाबाद का शहर है। अब सरकार द्वारा बनाए गए नए जिले में इस अयोध्या की बराबरी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी गई है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत मुस्लिम संगठनों ने बाबरी मस्जिद के बदले में दूसरी जगह जमीन स्वीकार करने की निंदा की है।