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राम मंदिर भूमि पूजन: पीएम मोदी ने क्यों कहा- जय सियाराम, जय श्रीराम क्यों नहीं...
अयोध्या में भूमि पूजन के समय पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रसिद्ध नारे 'जय श्रीराम' की जगह 'जय सियाराम' का उद्घोष किया। मोदी ने वर्षों से राम मंदिर आंदोलन में इस्तेमाल होने वाले नारे का इस्तेमाल क्यों नहीं किया... इसे लेकर लोगों के मन में जिज्ञासा है।
मोदी ने अपने भाषण में कहा, 'सबसे पहले हम भगवान राम और माता जानकी को स्मरण करें... सियावर राम चंद्र की जय... जय सिया राम।' 1984 के राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत के साथ ही हिंदूवादी विचारधारा में 'जय श्रीराम' सर्वप्रिय नारा रहा है। मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा तो इसने युद्धघोष का रूप ले लिया।
'जय सियाराम में सौम्यता'
हालांकि, 'जय सियाराम' के समर्थक मानते हैं कि 'जय श्रीराम' अभिवादन का उग्र रूप है। जय सियाराम में जो सौम्यता और सर्वहितकारी भाव है वह इसमें नहीं समझ आता। इसके अलावा यह सीता जी के महत्व को भी कहीं न कहीं कम करता है। उन्हें लगता है कि 'जय सियाराम' मर्यादापुरुषोत्तम राम के सौम्य व्यक्तित्व और कोमलता का ज्यादा बेहतर तरीके से प्रतिनिधित्व करता है।
'जय श्रीराम में उग्रता है'
तिवारी मंदिर के महंत गिरीश पति त्रिपाठी कहते हैं, 'जय श्रीराम में निर्भीकता और आक्रामतकता की झलक है जहां जय सियराम में औरों के लिए सम्मान का भाव रहता है। भगवान राम के पारंपरिक भक्त आक्रामकता स्वीकार नहीं करते।'
'जाकी रही भावना जैसी...'
वहीं 'जय श्रीराम' के समर्थक कहते हैं कि दोनों में कोई अंतर नहीं है। दोनों ही भगवान को याद करने के दो तरीके हैं। यूपी विधानसभा के स्पीकर हृदय नारायण दीक्षित कहते हैं, 'जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी...'
'लक्ष्य पूरा हुआ तो फिर से सौम्य'
इस पूरे विषय पर अवध यूनिवर्सिटी, अयोध्या के पूर्व वीसी, मनोज दीक्षित का कहना है,'किसी भी शब्द या वाक्य के मायने उसका इस्तेमाल करने वाले या संदर्भ के हिसाब से बदल जाती है। साल 1984 से पहले जय सियाराम और जयश्रीराम, दोनों में ही कोई अंतर नहीं था। लेकिन बाद में, जय श्रीराम एक आंदोलन का पर्याय बन गया और उसके साथ लोगों की भावनाएं जुड़ गईं। अब चूंकि उद्देश्य की पूर्ति हो चुकी है इसलिए प्रधानमंत्री ने प्रतीकात्मक तरीके से संकेत दिया है कि अब फिर से सौम्य होने का समय आ गया है।'