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नगर स्वास्थ्य अधिकारी सहित तीन के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में मुकदमा दर्ज
गाजियाबाद। नगर निगम के नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ मिथिलेश कुमार, पूर्व जोनल सेनेटरी ऑफिसर वीरेंद्र पाल शर्मा और पूर्व स्टोर इंचार्ज मोहन कुमार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में एफआईआर दर्ज कराई गई है। नगर निगम के सीसीटीवी, बायोमेट्रिक मशीनें और आई कार्ड की आपूर्ति करने वाली एक फर्म के संचालक ने इन पर भुगतान की एवज में पैसा मांगने का आरोप लगाकर शिकायत की थी। प्राथमिक जांच में दोषी पाए जाने पर सतर्कता अधिष्ठान विभाग के इस्पेक्टर ने तीनों के खिलाफ मेरठ स्थित सतर्कता अधिष्ठान थाने में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत रिपोर्ट दर्ज कराई है।
इस संबंध में विजिलेंस विभाग के प्रभारी निरीक्षक होती सिंह की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर के मुताबिक़ मैसर्स जितिन प्रसाद आनंद कंप्यूटर दिल्ली की ओर से नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ मिथिलेश कुमार, पूर्व स्टोर इंचार्ज मोहन कुमार और पूर्व जोनल कंट्री ऑफिसर व तत्कालीन प्रभारी नगर स्वास्थ्य अधिकारी विरेंद्र पाल शर्मा खिलाफ शिकायत की थी। इसके बाद खुली जांच में पाया गया कि स्वच्छ भारत मिशन अभियान के अंतर्गत नगर निगम के पांचों जोन में डलाबघरों की निगरानी के लिए 115 सीसीटीवी कैमरे,कर्मचारियों की हाजिरी के लिए 50 बायोमेट्रिक मशीनें और आईएफ़आईडी कार्ड,बाजार 4 हज़ार कर्मचारियों के परिचय पत्र बनाने के लिए इस फर्म को कार्यादेश दिया गया था।
मैसर्स जितिन प्रसाद आनंद कंप्यूटर की ओर से कार्य पूरा करने के बाद पांचों उनके सेनेटरी इंस्पेक्टरों से कार्य पूर्णता प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिए गए थे। जियो टैगिंग के साथ फोटो बिलों के साथ संलग्न कर भुगतान के लिए स्वास्थ्य विभाग के कार्यालय में प्रस्तुत किए गए थे। वहीं इससे पहले संबंधित फर्म ने डेढ़ लाख रुपए से ज्यादा की रकम जीएसटी के रूप में सरकार को भुगतान भी कर दी थी। जांच में पाया गया कि अवैध धन अर्जन करने के लिए बिल भुगतान के लिए तैयार की गई पत्रावली में से वर्क कंपलीशन प्रमाण पत्र को हटा दिया गया और बिलों का भुगतान नहीं किया गया। प्राथमिक जांच में दोनों अधिकारियों और लिपिक के दोषी पाए जाने पर उनके खिलाफ यह कार्रवाई की गई है।
गौरतलब है कि नगर निगम के अधिकारियों पर विभिन्न संगठनों द्वारा लगातार भ्रष्टाचार एवं अनियमितता के आरोप लगाए जाते रहे हैं ऐसे में इस बार मुकदमा दर्ज होने पर जांच का दायरा बढ़ सकता है जिसमें कई अन्य सरकारी कर्मचारी एवं अधिकारी भी जांच के दायरे में आ सकते हैं।