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- शिक्षा ,चिकित्सा और...
शिक्षा ,चिकित्सा और रोजगार देश की प्रगति के स्रोत है - सीमा त्यागी
किसी भी देश की प्रगति उसकी शिक्षा , चिकित्सा और रोजगार देने की प्रणाली पर निर्भर करती है देश के प्रत्येक बच्चे को सस्ती और सुलभ शिक्षा ,देश के प्रत्येक नागरिक को बेहतर और सस्ती चिकित्सा सुविधा और देश के युवाओं को के लिये रोजगार की व्यवस्था करना पूरी तरीके से जनता द्वारा वोट देकर चुनी गई सरकार की जिम्मेदारी बनती है देश की जनता इन सुविधाओं को पाने के लिए अपनी गाड़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में सरकार को देती है लेकिन जब बात आती है इन सुविधाओं को जनता तक बेहतर तरीके से पहुचाने की तो धरातल पर सच्चाई कुछ और नजर आती है अगर हम बात करे शिक्षा की तो देश में पिछले 3 साल में सरकारी स्कूलों की संख्या लगभग 65 हजार से अधिक कम हो गई है.
इन स्कूलों को या तो दूसरे स्कूल में मर्ज कर दिया गया या फिर सीधे बंद कर दिए गया हैं. वहीं देश मे प्राइवेट स्कूलों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है. ये जानकारी यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (युडीआईएसई रिपोर्ट 2018-19) ने की तरफ से दी गई है थी यूडीआईएसई स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट की एक यूनिट है, जो हर वर्ष स्कूलों से संबंधित डेटा उपलब्ध कराती है. यूडीआईएसई के अनुसार, 2018-19 में सरकारी स्कूलों की संख्या 10 लाख 83 हजार 678 थी, जो साल 2019-20 में घटकर 10 लाख 32 हजार 570 रह गई है. यानी इस दौरान 51,108 स्कूल या तो बंद हुए या उन्हें किसी दूसरे स्कूल में मर्ज किया गया है यह दिखाता है कि सरकारों का झुकाव अपने सरकारी विद्यालयों को बंद कर निजी स्कूलों को बढ़ावा दिया जा रहा है जिसके कारण बहुत तेजी से देश मे शिक्षा का व्यापारीकरण बढ़ता जा रहा है शिक्षा के बढ़ते व्यवसाईकरण के दुष्प्रभाव सीधे सीधे देश के अभिभावकों और बच्चों पर पड़ रहा है शिक्षा मंहगी होने के कारण देश के लाखों बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे है वही चिकित्सा के क्षेत्र में शहरी जनता मौजूदा चिकित्सा सेवाओं से किसी तरह काम चला रही है।असली दिक्कत शरू होती हैं ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के सामने। गांवों में शहरों की तुलना में सरकारी चिकित्सा सेवाओं का कहीं बुरा हाल है।
पचास फीसदी गांवों में स्वास्थ्य केंद्र ही नहीं हैं। जिन गांवों में हेल्थ सब सेंटर खुले हुए हैं, वहां सुविधाएं नहीं हैं। न तो स्टाफ है और न ही दवाइयां हैं। इस स्थिति में ग्रामीण जनता जाए तो जाए कहां। प्राथमिक चिकित्सा के लिए सिर्फ झोलाछापों का सहारा है। गांवों की ज्यादातर आबादी झोलाछापों पर निर्भर होकर रह गई है। गांवों से दूर दराज इलाको में रहने वाले लोगों के सामने और भी बड़ा संकट है। रात के समय कोई बीमार पड़ जाए तो झोलाछापों के अलावा कोई रास्ता नहीं है। सरकारी अस्पताल भी डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे है अधिकतर सरकारी अस्पतालों में जरूरी सुविधाओ का भारी अभाव है जिसका फायदा सीधे तौर पर निजी चिकित्सा क्षेत्र को मिल रहा निजीअस्पताल महेगे दामों पर चिकित्सा सुविधाओं की बिक्री कर रहे है आम जनता को अपनी जान बचाने के लिए निजी अस्पतालो में मोटी रकम खर्च करनी पड़ रही है वही रोजगार व्यवस्था की बात करे तो आंकड़े कही ज्यादा डरावने है देश में बेरोजगारी, कर्ज, दिवालियापन के कारण हर साल बड़ी संख्या में लोग आत्महत्या कर रहे हैं. पिछले तीन साल के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. एनसीआरबी यानी राष्ट्रीय अपराध क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के आधार पर केंद्र सरकार ने संसद में जानकारी दी है.की साल 2018, 2019 और 2020 के दौरान 25,000 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की है. आत्महत्या के पीछे दिवालियापन, बेरोजगारी और कर्ज जैसे बड़े कारण सामने आए हैं. इन तीन वर्षों में सबसे ज्यादा खुदकुशी की घटनाएं 2020 में हुई हैं.
देश में बेरोजगारी, कर्ज, दिवालियापन के कारण हर साल बड़ी संख्या में लोग आत्महत्या कर रहे हैं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2021 तक भारत में बेरोजगार लोगों की संख्या 5.3 करोड़ रही. इनमें महिलाओं की संख्या 1.7 करोड़ है. घर बैठे लोगों में उनकी संख्या अधिक है, जो लगातार काम खोजने का प्रयास कर रहे हैं. सीएमआईई के अनुसार, लगातार काम की तलाश करने के बाद भी बेरोजगार बैठे लोगों का बड़ा आंकड़ा चिंताजनक है.अब समय आ गया है कि सरकार को देश की जनता को सस्ती और सुलभ शिक्षा , चिकित्सा देने के लिये गंभीरता से विचार कर बड़े कदम उठाने चाहिये साथ ही देश के पढ़े लिखे युवाओ को रोजगार देने के लिए चुनावी घोषणा न करके सार्थक प्रयास करने चाहिये । अगर समय रहते सरकार द्वारा शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में बढ़ते व्यवसायीकरण को नही रोका गया तो वो दिन दूर नही जब देश की जनता को अपना अधिकार लेने के लिए सड़क पर उतरना होगा ।