गाजियाबाद

पुलिस की कार्य प्रणाली से असंतुष्ट होकर कैसे बने नीरज जादौन आईपीएस अधिकारी!

Shiv Kumar Mishra
9 April 2021 10:08 AM GMT
पुलिस की कार्य प्रणाली से असंतुष्ट होकर कैसे बने नीरज जादौन आईपीएस अधिकारी!
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आईपीएस नीरज जादौन कैसे बने आईपीएस

गाजियाबाद. आप हमेशा एक अनुभव करते है जब कोई भी व्यक्ति किसी बात से आहत हो तो वो ऊंचाई जरुर चढ़ता है, आइपीएस नवनीत सिकेरा पर बनी वेब सीरीज भौकाल भी देखी होगी, जिसमें वह पिता के साथ हुए दुर्व्यवहार से आहत हो आइपीएस बनने की ठान लेते हैं। पुलिस से मिले कटु अनुभवों से निराश होने के बजाए सिस्टम को बदलने और इंसाफ पाने की एक और कहानी है, जो संघर्ष और मुश्किलों से भरी है। यह कहानी आपको फिल्मी जरूर लग सकती है, लेकिन इसके सभी किरदार वास्तविक हैं।

कहानी है गाजियाबाद में एसपी ग्रामीण के रूप में तैनात 2015 बैच के आइपीएस नीरज कुमार जादौन की है। 2008 में उनके पिता की हत्या कर दी गई थी। केस की पैरवी में नीरज को पुलिस से मदद नहीं मिली, जिससे नाराज होकर अपने पिता को इंसाफ दिलाने के लिए उन्होंने आइपीएस बनने की ठान ली थी। कभी निराशा मिली तो कभी हताशा हुई, लेकिन इरादे के पक्के नीरज ने हार नहीं मानी और आइपीएस बन गए। बस फिर क्या था, आरोपियों की हेकड़ी भी ढीली हो गई और स्थानीय पुलिस ने भी नियमानुसार कार्रवाई की।

जालौन के नौरेजपुर गांव के मूलनिवासी नीरज कुमार जादौन का जन्म कानपुर में हुआ। यहीं स्कूलिंग और फिर आइआइटी, बीएचयू से कंप्यूटर साइंस में बीटेक की डिग्री लेकर एमएनसी ज्वॉइन कर ली। नोएडा व बेंगलुरू से लेकर यूके तक नौकरी की। पिता की हत्या के समय वह बेंगलुरू में थे। केस की पैरवी शुरू की तो पुलिस का रवैय्या देख दुखी हुए। पीड़ित की मदद करने को बनी पुलिस आरोपितों का साथ दे रही थी। मगर पिता को इंसाफ दिलाना था तो नीरज ने आइपीएस बनने की ठान ली। 2010 में नौकरी के साथ ही तैयारी शुरू कर दी और 2011 में पहले ही प्रयास में इंटरव्यू तक पहुंच गए, जिसमें सफलता नहीं मिली। दूसरे प्रयास में रैंक कम रह गई और तीसरे प्रयास के लिए आवेदन करने तक उम्र अधिक हो चुकी थी।

छोड़ दिया 22 लाख का पैकेज

पिता की हत्या के बाद परिवार में सबसे बड़े नीरज चार भाई-बहनों के इकलौते सहारा थे। भाई-बहनों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए वह नौकरी नहीं छोड़ सकते थे। इसीलिए नौकरी के साथ कोशिश की। उम्र पूरी होने के कारण नीरज काफी निराश हुए, लेकिन तभी एक अच्छी खबर आई कि अब 32 साल की आयु तक के अभ्यर्थी आवेदन कर सकते हैं। नीरज ने इसे अंतिम मौका मानते हुए 22 लाख रुपये सालाना का पैकेज छोड़ दिया और तन-मन से तैयारी शुरू कर दी। अगले ही प्रयास में 140वीं रैंक हासिल कर नीरज आइपीएस बन गए। नीरज जादौन के भाई पंकज व रोहित सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं तो राहुल व बहन उपासना हाईकोर्ट में वकालत करते हैं।

गाजियाबाद से भी जुड़ी जड़ें

एसपी देहात नीरज कुमार जादौन की जड़ें पहले से ही गाजियाबाद से जुड़ी रही हैं। दादा कम्मोद मोदी मिल में मजदूर थे। 1967-69 तक दादा कम्मोद मोदीनगर ही रहे। मगर बॉयलर फटने के बाद वह परिवार समेत कानपुर चले गए। इसी वजह से नीरज जादौन गाजियाबाद से खास लगाव भी रखते हैं।

छह बार हो चुका जानलेवा हमला

प्रयागराज में ट्रेनिंग के बाद अलीगढ़ में गभाना सर्किल के सीओ (एएसपी) बने। यहां गोतस्करों के खिलाफ नीरज जादौन ने बड़ी कार्रवाई की। रात भर गाड़ी लेकर घूमते और कई एनकाउंटर भी किए। इस कारण उन पर छह बार जानलेवा हमला भी हुआ। तस्करों के गिरोह ने ट्रक से टक्कर मरवाने से लेकर फायरिंग तक की। एक बार उनकी सरकारी गाड़ी भी पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गई। मगर 16 माह के कार्यकाल में वह कभी पीछे नहीं हटे और हजारों गोवंश तस्करों के चंगुल से मुक्त कराए।

बेटे के जन्म के दो दिन बाद पहुंचे

एएमयू में जिन्ना की फोटो लेकर हुए मई-2018 में हुए बवाल में भी हालात संभालने के लिए नीरज जादौन आगे रहे। फरवरी-2019 में छात्र राजनीति को लेकर विधायक के बेटे पर गोली चलाने के बाद पैदा हुए सांप्रदायिक तनाव के बाद वहां के सीओ को हटाकर नीरज जादौन को भेजा गया। इसी समय पत्नी प्रतीक्षा प्रसव पीड़ा के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया। पत्नी को अस्पताल में छोड़ वह बवालियों से लोहा ले रहे थे। इसी बीच 16 फरवरी को प्रमोशन के साथ उनका गाजियाबाद तबादला हो गया। अगले ही दिन छोटे बेटे राज्यवर्द्धन ने जन्म लिया, लेकिन नीरज जादौन अलीगढ़ में हालात शांत होने के बाद 18 फरवरी की रात को उसे देखने पहुंचे।"

दिल्ली में घुस दंगाइयों से बचाए थे परिवार

फरवरी-2019 से गाजियाबाद एसपी देहात के रूप में तैनात नीरज जादौन ने एनआरसी व सीएए के विरोध और फिर दिल्ली में हुई हिंसा के दौरान बॉर्डर पर हालात संभाले। लोनी क्षेत्र में दिल्ली बॉर्डर के 10 बेहद संवेदनशील प्वॉइंट थे, जहां से दंगाई बार-बार गाजियाबाद में घुसने का प्रयास कर रहे थे। नीरज जादौन ने एक तरफ दंगाइयों को रोका तो वहीं गाजियाबाद के निवासियों से लगातार संपर्क में रहे।

इसी कारण बॉर्डर पर आवाजाही ही नहीं बल्कि दंगों की आग को भी रोक दिया। लाल बाग सब्जी मंडी से 100 मीटर दूर दंगाई उत्पात करते हुए दुकान में लूट के बाद घर आग के हवाले करने का प्रयास कर रहे थे। छत पर महिला व बच्चे रो रहे थे। नीरज जादौन ने सीमा लांघी और दिल्ली में घुस सैकड़ों की संख्या में पेट्रोल बम व पत्थर हाथ में लिए दंगाइयों को चेतावनी देकर खदेड़ा। उन्होंने करीब तीन परिवारों को सकुशल बचाया।

क्राइम पर पकड़, कानून-व्यवस्था में भी माहिर

पुलिस विभाग में कोई क्राइम पर अच्छी पकड़ रखता है यानी पेचीदा केस खोलना तो कोई जनता से संवाद बना कानून-व्यवस्था बनाए रखना जानता है। नीरज जादौन के अंदर ये दोनों ही काबिलियत हैं। अपने कार्यकाल के दौरान देहात क्षेत्र में हत्या, लूट व डकैती के रिकॉर्ड ही नहीं बल्कि उनका घटनाक्रम और खोलने का तरीका तक उन्हें मुंहजुबानी याद है।

जनता से सीधा संवाद रखते हैं। पीड़ित यदि उन तक अपनी समस्या पहुंचा दे तो निदान की पूरी गारंटी देते हैं। यही वजह है कि लोग उन्हें देखने के बाद कानून हाथ में नहीं लेते। आइपीएस नीरज कुमार जादौन ने किसानों के खिलाफ गलत तरीके से दर्ज कई मुकदमे खत्म कराए ताकि उनका पुलिस में विश्वास बना रहे।

साभार


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