गाजियाबाद

कश्मीर ऋषियों और मुनियों की तपोभूमि है, कश्मीर के पहले राजा थे महर्षि कश्यप- . नंदकिशोर गुर्जर

Special Coverage News
6 Aug 2019 11:16 AM GMT
कश्मीर ऋषियों और मुनियों की तपोभूमि है, कश्मीर के पहले राजा थे महर्षि कश्यप-  . नंदकिशोर गुर्जर
x

अनुच्छेद 370 और 35-A को नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में 70 साल के लंबे इंतजार के बाद केंद्र सरकार ने खत्म कर दिया है लेकिन भारत माता के मुकुट से इस 370 रूपी कलंक के हटने के बाद हमें कश्मीर के पौराणिक इतिहास और एवं सनातन धर्म से इसके गर्भ-नाल के सम्बंध को जानना आवश्यक है।

70 साल बाद एक नागों एवं महान ऋषियों का पैतृक देश "कश्मीर" नाग-पञ्चमी के दिन काले कानून से मुक्त हुआ है यह एक संयोग मात्र नहीं है। नागों के पिता कश्यप ऋषि कश्मीर के प्रथम राजा थे। इनके नाम से ही कश्मीर का नाम पड़ा था। इनकी एक पत्नी कद्रू के गर्भ से नागों

की उत्पत्ति यानि नाग-वंश की उत्पत्ति हुई जिसकी पुष्टि राज्य में नागों के नाम पर रखे गए स्थानों के नाम करते हैं जैसे अनन्त नाग, कमरू नाग, कोकर नाग, वेरी नाग,नारा नाग,कौसर नाग इतियादी। सोमवार के दिन 125 वर्ष बाद ऐसा संयोग हुआ कि अनुच्छेद 370 को समाप्त किया गया। सोमवार को नाग-पञ्चमी के दिन इस ऐतिहासिक कार्य को किया गया यह ऋषियों और मुनियों का प्रताप है। जब सोमवार को नाग-पञ्चमी में समस्त भारतवर्ष में नागों की पूजा होती है, इस दिन 370 और 35ए जैसे काले कानून का अंत हुआ। ऐसे में इस दिन का फल महज संयोग नहीं, ईश्वर कृपा है। लेकिन भारत की जन्नत और सनातन धर्म के तपोभूमि को, कश्मीर को, असली नागों के बजाय कुछ कपटी और जहरीले नागों ने अपने चंगुल में ले लिया था और आज मोदी जी की मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और अखण्ड भारत के निर्माण के लिए कश्मीर को विषेले और कपटी नागों के चंगुल से मुक्त किया गया।

हमें इतिहास का शुक्रिया करना चाहिए और कश्मीर के शासक रहे हिन्दू राजाओं का कि अब तलक इस क्षेत्र का नाम महर्षि कश्यप से संबद्ध होने का भान कराता है, अन्यथा जिस तरह के आक्रमणों के साये में ये रहा जरूर इसका नाम किसी इस्लामिक संस्कृति का बोध कराता। कालांतर में सनातन धर्म के सभी प्रतीक और चिन्हों का खात्मा कर दिया गया प्रसिद्ध और सनातन शैली से निर्मित अद्धभुत मार्तंड मंदिर के विध्वंस के बाद मौजूद खंडहर ही शेष है। लेकिन यह इस धरती या कहें उत्तर के स्वर्ग की धरती की तेजस्विता और पवित्रता है कि इतने आक्रमणों के बावजूद भी कश्मीर का नाम बदलने की हिम्मत और हिमाकत कोई नहीं कर सका। कश्यप ऋषि के वंशजों के कुल बढ़े तो स्थान का नाम काश्यप-मेरु हुआ फिर काश्यमेर, काश्मेर और वर्तमान में कश्मीर।

अंत में उन लोगों को यहीं कहना चाहता हूं जो माननीय मोदी जी के इस फैसले का विरोध कर रहे है और कश्मीरियत' की फिक्र का ढोंग कर रहे हैं। उन्हें राज्य में हुए समुदाय विशेष कश्मीरी पंडितों की हत्या पर अगर कोई अफसोस नहीं है तो ऐसी कश्मीरियत का क्या मतलब? जिस कश्मीरियत में विस्थापन का दर्द और हत्या का दर्द नहीं है जिस कश्मीरियत को बेघर हो चुके नागरिकों की याद तक नहीं है, जो अपनी ही मिट्टी में शरणार्थी बने हुए हैं कई एकड़ के मकानों में रहने वाले आज कश्मीरी पंडित 1 मकान के कमरे में रह रहे है जिनके हजारों बीघे में सेब के बाग थे आज बाजार से सेब खरीद रहे है, ऐसी धारणा का क्या मतलब? वास्तविक रूप से देखा जाए तो कश्मीरियत का निर्माण अखण्ड एवं सशक्त भारत के साथ मिलकर होगा, उससे दूर रहकर नहीं। भारत माता के उद्घोष में स्वर मिलाने से होगा अपितु मृत शैय्या पर पड़े पाकिस्तान से।

लेखक *डॉ. नंदकिशोर गुर्जर, विधायक लोनी

Tags
Special Coverage News

Special Coverage News

    Next Story