गाजियाबाद

गाजियाबाद धर्मांतरण केस का मुख्य आरोपी शहनवाज उर्फ बद्दो गिरफ्तार

Shiv Kumar Mishra
11 Jun 2023 9:03 PM IST
गाजियाबाद धर्मांतरण केस का मुख्य आरोपी शहनवाज उर्फ बद्दो गिरफ्तार
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ऑनलाइन गेमिंग के जरिए धर्मांतरण का आरोप में महाराष्ट्र के अलीबाग से हुई गिरफ्तारी

अरुण चंद्रा

गाजियाबाद। धर्मांतरण मामले के सामने आने के बाद एनसीआर के अभिभावक काफी डरे हुए हैं। खासकर बच्चों को लेकर उनकी चिंता बढ़ गई है। हमने अपनी रिपोर्ट में बच्चों के अभिभावकों से बात करके यह जानने का प्रयास किया कि उनका बच्चा कितनी देर मोबाइल इस्तेमाल करता है। वहीं माता-पिता इस समय किस तरह से अपने बच्चों को मोबाइल के इस्तेमाल से दूर रखने की कोशिश में जुटे हैं। यह बात सामने आई कि अधिकतर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा मोबाइल का इस्तेमाल कम से कम करे। हालांकि ऑनलाइन स्टडी की वजह से मोबाइल एक मजबूरी जरूर बना है। मगर फिर भी अभिभावकों के लिए ऑनलाइन गेमिंग के जरिए धर्मांतरण का मामला सामने आने के बाद बड़ी चुनौती आ गई है। वहीं हमने मनोचिकित्सक से भी जानने की कोशिश की है कि अभिभावकों को ऐसा क्या करना चाहिए जिससे बच्चा, मोबाइल या अपनी जिंदगी में जो कुछ कर रहा है उसके बारे में अपने परिवार को बताए। आइए इस रिपोर्ट में जानते हैं।

मोबाइल बना अभिभावकों का सिरदर्द

गाजियाबाद में कई पॉश इलाके हैं। इन्हीं में हमने वसुंधरा और इंदिरापुरम में अभिभावकों की राय जानने की कोशिश की। कुल मिलाकर यह समझ आया कि अभिभावकों का सिरदर्द मोबाइल की वजह से बढ़ा हुआ है। मोबाइल एक तरफ जहां कम्युनिकेशन का साधन है और कई जरूरी बातें जानने के लिए मोबाइल का इस्तेमाल होता है, तो वही ऑनलाइन गेमिंग भी बच्चों के अभिभावकों की चिंता बढ़ाती है। इसके अलावा कई ऐसे चैट प्लेटफार्म है जो बच्चों के अभिभावकों के मन में एक डर पैदा कर रहे हैं। आमतौर पर बात करने पर पता चलता है कि इन दिनों बच्चों का स्क्रीन टाइम पिछले कुछ सालों की तुलना में बढ़ चुका है। बच्चे अकेले में भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं और कई बार वह अपने अभिभावकों से अलग-थलग रहकर मोबाइल में लगे रहते हैं। लेकिन यह सबसे ज्यादा खतरनाक हो सकता है। इसी पर हमने कुछ महिला अभिभावकों से जानने की कोशिश की है, की मोबाइल पर होने वाली खतरनाक गतिविधियों से बच्चों को बचाने के लिए उन्होंने क्या कुछ किया है। जानकार भी बताते हैं कि बच्चों का ज्यादा देर चैट प्लेटफार्म या ऑनलाइन गेमिंग के प्लेटफार्म पर लगा रहना, उनके लिए इसलिए खतरनाक हो सकता है क्योंकि उनको टारगेट करने वाले बच्चों के संपर्क में आ सकते हैं।


क्या बोली महिला अभिभावक

इंदिरापुरम निवासी महिला करुणा त्यागी ने बताया कि यह बहुत ही गंभीर विषय है। ऑनलाइन धर्मांतरण की घटना सुनने के बाद हम काफी गंभीर हैं। बच्चों को लेकर इस समय डर की स्थिति है। कई बार हमारे बच्चे एकांत में मोबाइल अपने पास रखते हैं। यह खतरनाक साबित होता है। इससे बच्चा गलत लोगों के संपर्क में आ सकता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मोबाइल पर होने वाले प्रोपेगेंडा से अभिभावक काफी डर गए हैं। हम आम तौर पर अब ध्यान रखते हैं कि बच्चा कौन सा गेम खेल रहा है। वसुंधरा निवासी अभिभावक सुनैना भारद्वाज ने बताया कि जब से हमने यह मामला सुना है तब से काफी चिंता बढ़ गई है। बच्चे ऑनलाइन गेम खेल रहे हैं, और उस के माध्यम से चैट भी करते हैं। हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि हमारा बच्चा ऑनलाइन या ऑफलाइन काम कर रहा है, तो क्या कर रहा है। बच्चे को रूम में अकेले कभी भी मोबाइल इस्तेमाल करने के लिए नहीं दे रहे हैं। हमने यह भी सुना था कि मोबाइल देखकर बच्चे कई और खतरनाक कदम भी उठा चुके हैं। कई बार हम लोगों से भी गलती होती है, कि बच्चों को हम समय नहीं दे पाते। लेकिन यह मामला सुनने के बाद हमारी चिंता बढ़ी है। हमेशा अभिभावकों को इस बात का डर बना रहता है कि बच्चा कहीं कोई गलत कदम ना उठा ले। हमने खुद अपने बच्चों का टाइम शेड्यूल सेट किया हुआ है। बच्चों को कभी भी अकेले में मोबाइल इस्तेमाल करने के लिए नहीं देते हैं।

मनोचिकित्सक से जानिए क्या है सलूशन

मनोचिकित्सक आर चंद्रा बताते हैं कि इन मामलों को कई एंगल से देखा जाना चाहिए। खासकर जब हम गेमिंग की बात कर रहे हैं। कई गेम ऐसे होते हैं जिसमें आपस में लोगों का इंटरेक्शन होता है। कई गेमिंग एप ऐसे होते हैं जिनमें चैटिंग भी होती है। वह चैटिंग किसी और को भी नहीं पता चलती क्योंकि इसमें प्राइवेसी भी होती है। कई बार यह इलीगल तरीके से भी होता है। कई बच्चे ऐसे होते हैं जिनकी पर्सनैलिटी स्ट्रांग होती है वह किसी के बहकावे में नहीं आते हैं। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं वह बहुत जल्दी बहकावे में आ जाते हैं। जो दूसरी तरह की पर्सनैलिटी वाले बच्चे हैं वह बच्चे गुनाह का शिकार जल्दी हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि सभी तरह की समस्याओं के लिए परिवार को एक काम करना है। वह काम यह है कि बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करें। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चों से कह दे कि हम तुम्हारे दोस्त हैं। बल्कि बच्चे को अपने व्यवहार से महसूस करवाना होता है कि माता-पिता या करीबी लोग उसके दोस्त हैं जिससे वह उनकी बात माने और सभी बातें बताए। बच्चे कई बार सीधी बात के अलावा इशारों में भी बातें बताते हैं उन इशारों को समझना अभिभावकों के लिए बेहद जरूरी है। अगर समय रहते बच्चे के बारे में जान लिया जाए तो ऐसी घटनाएं नहीं होंगी।

बच्चों के दोस्त कौन हैं यह जरूर जाने

उन्होंने आगे बताया कि बच्चे अपने स्कूल दोस्त या फिर दूसरे दोस्तों को भी अपनी बातें बताते हैं। उन दोस्तों से भी अगर बच्चों के अभिभावक बात करें तो बच्चे के बारे में काफी जानकारी ली जा सकती है। यह भी पता लगाया जा सकता है कि बच्चा कहीं किसी अनजान व्यक्ति से बातचीत नहीं करता है। इस तरह कोशिश की जा सकती है कि बच्चे अपने अभिभावकों से हर बात खुलकर कर पाए।

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