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राकेश टिकैत ने उठाया सवाल, 'रोजाना बढ रही महंगाई पर चार साल से गन्ने पर नहीं बढी एक पाई'
गाजियाबाद : उत्तर प्रदेश गन्ना उत्पादन करने वाला प्रमुख राज्य है। 2017 से भाजपा के सत्ता में आने के बाद केवल 10 रूपए गन्ना मूल्य बढाया गया? इस बात को भी चार साल हो गए। महंगाई रोज बढ रही है, लेकिन गन्ने का रेट नहीं बढा। गन्ने की फसल आधी से ज्यादा मिलों में पहुंचने के बाद सरकार ने पुराने ही रेट की घोषणा कर दी है। अब तक गन्ने की पर्चियों पर रेट वाले कॉलम में शून्य-शून्य लिखा आ रहा था। गन्ना मिलें भुगतान समय से नहीं कर रहीं, जबकि 14 दिन में भुगतान न होने पर किसान को ब्याज दिलाने का दावा किया गया था। यह बातें सोमवार को भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहीं।
राकेश टिकैत ने कहा कि खाद के दाम बढ रहे हैं, डीजल के दाम बढ रहे हैं, गैस सिलेंडर के दाम बढ रहे हैं, बच्चों की फीस बढ रही है, हर चीज पर महंगाई की मार है। सरकार ने खाद का कट्टा 50 किलो से कम करके 45 किलो का कर दिया, और उसकी कीमत बढ गई। पेस्टीसाइड महंगे हो रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में चार वर्षों से गन्ने के भाव में एक पाई नहीं बढाई, जबकि गन्ना संस्थान ने पिछले साल के मुताबिक गन्ने का लागत मूल्य 10 रूपए बढ जाने की बात की है। गन्ना संस्थान ने वर्ष 2019-20 के लिए जहां गन्ने का लागत मूल्य जहां 287 रूपए प्रति क्विंटल बताया था वहीं वर्ष 2020-21 के लिए 297 रूपए होने की बात कही है। लेकिन गन्ना संस्थान की बात भी सरकार नहीं मानती।
राकेश टिकैत ने कहा कि गन्ना किसानों का 12 हजार करोड़ रूपए बकाया हैं। पहले तो गन्ना किसानों को भाव नहीं मिल रहा और फिर जो पैसा बनता है उसके भुगतान का भी कुछ पता नहीं रहता। ऐसे में गन्ना किसान फांके के कगार पर हैं। बच्चों के ब्याह शादियां तक करने के लिए उसे कर्ज लेना पड़ रहा है। सरकार समय से भुगतान कराने के बजाय किसानों को कर्ज देने में ज्यादा दिलचस्पी ले रही है।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री क्या मायावती और अखिलेश यादव से भी कमजोर मुख्यमंत्री हैं? जो किसानों के लिए उनके बराबर भी नहीं कर पा रहे हैं। टिकैत ने कहा कि एक ओर भारत सरकार स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने का झूठा दावा कर रही है दूसरी ओर गन्ना किसानों को उनका लागत मूल्य तक नहीं मिल पा रहा। लागत मूल्य पर टिकैत ने कहा कि गन्ना संस्थान, शहाजहांपुर ने माना है कि गन्ने का लागत मूल्य 297 रूपए आ रहा है। ऐसे में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में दिए गए सी-2+50 के फार्मूले से गन्ने का रेट तय क्यों नहीं किया जाता? उन्होंने कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा आंदोलन गन्ना किसानों का भी आंदोलन है। श्री टिकैत ने कहा कि हरियाणा और राजस्थान में लगातार हमारी पंचायतें हो रही हैं। महाराष्ट्र और कनार्टक के साथ हम देश के सभी राज्यों में जाएंगे। यूपी में गन्ना किसान का आंदोलन है तो महाराष्ट्र में यह आंदोलन कपास के किसानों का है।