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तीनों कृषि कानूनों की वापसी झूठ पर सत्य की विजय का प्रतीक
ग़ाज़ियाबाद। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान झूठ पर सत्य की विजय का प्रतीक है। यह काले कानूनों में विरोध में किसानों की ऐतिहासिक एकजुटता की जीत है और उन लोगों के मुंह पर एक करारा तमाचा है, जो तीनों कृषि कानूनों की पुरजोर हिमायत कर रहे थे। यह उन लोगों के गाल पर करारा तमाचा है जो आंदोलनकारी किसानों को आतंकवादी जैसे शब्दों से नवाज रहे थे। आज गुरुपर्व और देव दिवाली के दिन तीनों किसी कानूनों की वापसी आंदोलन में शहीद हुए उन किसानों की पुन्य आत्माओं के लिए गंगा में दीप दान करने के समान हैं जिन्होंने इन काले कृषि कानूनों के खातिर अपनी प्राणों की आहुति सड़कों पर दे दी। कृषि प्रधान देश भारत के किसानों की यह ऐतिहासिक जीत सदैव के लिए इतिहास की पन्नों में दर्ज गई है।
देर से ही सही आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी किसान की पीड़ा को समझा और उन्होंने किसानों के विरुद्ध बनाए गए काले कानूनों को वापस लेने का काम किया। मैंने तीनों कृषि कानूनों को लेकर किसानों के पक्ष में खुलकर समर्थन इसीलिए किया था क्योंकि तीनों कृषि कानून किसानों के हित में कतई नहीं है। इसी वजह से तमाम यातनाएं, परेशानियां, आरोप-प्रत्यारोप और उत्पीड़न झेलते हुए किसान पिछले एक साल से आंदोलन कर रहे थे। आखिरकार किसानों का आंदोलन रंग लाया है।
तीनों कृषि कानूनों की वापसी किसानों की एकता की ऐतिहासिक जीत है, यह गलत पर सही की विजय है। इस ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने गांधीवादी तरीके से लोकतंत्र की नई इबारत लिखी है आखिरकार जिसके आगे केंद्र सरकार को झुकना पड़ा है।