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देश का एक ऐसा तहसील जो 8 अगस्त 1942 को आजादी के 5 वर्ष पूर्व ही ,युवा क्रांतिकारियों द्वारा आजाद करा दिया गया था ।
देश का एक ऐसा तहसील जो 15 अगस्त 1947 से पहले ही आजाद हो गया था, इस आजादी के लिये 8 लोगों ने अपनी शहादत दी थी। इन लोगों ने अपनी शहादत देकर 18 अगस्त 1942 को ही तहसील पर तिरंगा लहराकर उसे आजाद करा दिया था। गाजीपुर के मोहम्मदाबाद तहसील को महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के आहवान पर 18 अगस्त 1942 को 8 वीर शहीदों ने भारतीय स्वतंत्रता दिवस से 5 साल पूर्व ही आजाद करा तिरंगा लहरा दिया था। 11 अगस्त 1942 को जब गांधी जी ने आह्वान किया तो शेरपुर गांव के उत्साही युवकों ने भी आजादी का सपना देखा और गांधी जी के आंदोलन में शामिल हो गये।
18 अगस्त की सुबह हजारों की संख्या मोहम्मदाबाद तहसील पर डॉ. शिवपूजन राय की अगुवाई में तहसील पहुंच तिरंगा हाथों मे लेकर उसे फहराने के लिए चल दिये। उस वक्त अंग्रेज तहसीलदार ने उन्हें रोका लेकिन आजादी के दीवाने जिन्हे मां भारती को आजाद कराना था, उनकी परवाह किये बिना ही आगे बढ़ते रहे। अंग्रेजों ने उन पर गोली चलाना शुरू कर दिया। शहीद एक-एक कर आगे बढ़ते रहे और गोलियों से गिरते रहे लेकिन तिरंगे को गिरने नहीं दिया और अंत मे 8 शहीदों के बलिदान ने रंग दिखाया और शाम होते होते तहसील मुख्यालय पर तिरंगा लहरा दिया गया।
इन 8 शहीदों में शिवपूजन राय, श्रृषेश्वर राय, वंशनारायण राय पुत्र ललिता राय, वशिष्ठ नारायण राय, वंशनारायण राय पुत्र रघुपति राय, नारायण राय, राजदयाल राय,रामबदन उपाध्याय शामिल थे। इन 8 शहीदों में आजतक मात्र 2 ही शहीद शिवपूजन राय और वंशनारायण राय का ही तस्वीर उपलब्ध हो पाया है, जिनकी मूर्ति शहीद पार्क मे लगी है। शेष 6 लोगों की तस्वीर उपलब्ध नही होने के कारण इन शहीदो का सिर्फ नाम ही लोग जान पाये ये कैसे थे इसे कोई आज तक नहीं जान पाया। जिसका मलाल आज भी लोगो के जहन मे है।
इन शहीदों में एक शहीद जिनको जिंदा शहीद के नाम से लोग जानते हैं उनका नाम सीताराम राय था और उस वक्त अंग्रेजों ने उन्हें मरा हुआ समझकर बेस नदी में फेंक दिया था लेकिन उनकी सांसे चल रही थी और वह जिंदा बचे थे और बहुत दिनों तक 18 अगस्त के कार्यक्रम में शामिल भी होते रहे हैं
आजादी से 5 साल पूर्व आजाद हुए इस शहीद स्थल जहां आजाद भारत में भी तहसील चलता था। जब 1980 में कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जनपद के दौरे पर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्रा के साथ आये तो यहां पर शहीद परिवार और अन्य लोगों ने उक्त तहसील और अाठ शहीदों के बलिदान की कहानी बताई, तो तत्काल उन्होंने मुख्यमंत्री को इसे शहीद भवन घोषित करने और तहसील को अन्यत्र करने की बात कही।
1992 में तत्कालीन राज्यपाल मोती लाल बोरा ने इस शहीद भवन का लोकार्पण किया, लेकिन आज यह अष्ठ शहीदों का शहीद भवन बदहाली पर आंसू बहा रहा है। तमाम सरकारें आई और गई, लेकिन शहीदों के नाम पर कुछ नहीं किया और जिसने कुछ किया भी तो निर्माणदायी संस्थाओं ने कागजों मे इसका सौन्दर्यीकरण कर लाखों का घोटाला कर डाला।
इस शहीद पार्क की देखरेख समिति के माध्यम से की जाती है लोगों की मांग है कि इसका देख ले यदि नगरपालिका के द्वारा की जाती तो इसकी साफ-सफाई और अन्य व्यवस्थाएं दुरुस्त रात ही लेकिन मौजूदा समय में बजट में होने के कारण शहीदों के बनाए गए मूर्ति के जमीन की टाइल्स भी टूट चुकी है और शहीद स्तंभ के कुछ पत्थर भी उखड़ चुके हैं लेकिन इसका कोई पोषाहार लेने वाला नहीं है।
शहीद स्मारक समिति के सदस्यों के द्वारा शहीद पार्क के दो कमरों में यहां के ग्रामीण इलाकों के छात्रों के लिए पुस्तकालय की व्यवस्था की है जिसमें छात्र प्रतिदिन गांव से आकर यहां पर पुस्तकालय के माध्यम से अपने पढ़ाई और कंपटीशन की तैयारी करते हैं जो हमारे कैमरे में भी कैद हुआ।