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- बाबा साहेब जयंती के...
बाबा साहेब जयंती के मायने, वास्तविक अधिकार व सर्वसमाज के नेता थे डा0 अम्बेडकर
गोरखपुर | स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्री भारतीय संविधान सभा समिति के अध्यक्ष एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक डा0 भीमराव अम्बेडकर का आज जन्मदिन है | बीते कुछ सालों में धीरे- धीरे सभी राजनीतिक पार्टियां भारत रत्न बाबा साहेब को अपनी विचारधारा मे फिट कर अपना वोट बैंक बढाने पर जोर दे रहें है | ऐसा लगता है समय-समय पर अतीत के नेताओं के बीच कोई माप- तौल बना रखी है जिसमे समय - समय पर उन महापुरुषों को पूरे जोरशोर से लांच करते हैं | कहने का मतलब है कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा मे कहीं हम अपने महापुरुषों का सम्मान के बदले अपमान तो नहीं कर रहे ! बाबा साहेब बीते कुछ सालों से अग्रणी हैं | कदाचित यह दलित वोट की ही माया है |
एक तरफ समाजवादी पार्टी इस दिवस पर दलित दिवाली मनाने की ठानी है तो सत्ताधारी भाजपा सर्वजन टीका उत्सव मना रही है | कांग्रेस ने दलितों के बीच बस्तियों में जाकर उन्हें जगाने के उद्देश्य से गोष्ठी का आयोजन किया | बसपा की ओर से परम्परागत अपने पार्टी के लोगों को इकठ्ठा कर फूल माला अर्पित करते हुये डा0 अम्बेडकर को जयंती पर याद किया गया | जिले में छोटे- बड़े दबाव समूहों ने भी बाबा साहेब को याद किया | सवाल वही का वही है कि इतने ब्यापक रूप से सभी डा0 अम्बेडकर को अपना बनाकर वोटबैंक साध रहे है | अम्बेडकर तो अब पूरे देश के हैं | उन्हें अपने हिस्से मे ही रख पाने वाले संकिर्ण मानसिकता वाले हैं | बहुजनदलित मे हजारो जाति है उनमे से किसी एक विशेष को आगे आने का मतलब बाकियों को पीछे छोड़ देना है , ऐसा तो विचार नहीं रहा न बाबा साहेब का ! गोरखपुर जिले में आज पंचायत चुनाव मे पिछड़ी का नेतृत्व दो जातियाँ कर रहीं हैं यादव व निषाद | जहा सीट आरक्षित है वहा किसी न किसी प्रभावशाली की छत्रछाया मे उनके कृपापात्र ही चुनाव लड़ रहे हैं | निषाद वोट व उनके नेताओं की बहुतायत ने निषाद समाज को तो आगे कर दिया लेकिन उनके साथ की अन्य जातियाँ पिछे रह गई ं | यह भी एक प्रकार का भेद- भाव छूआछूत ही है | अपनी ही जाति के दूसरे भाई से धन दौलत या शिक्षा के प्रभाव मे नीचा दिखाना ही तो भेदभाव- स्पृष्यता है |
कांग्रेस की जिलाध्यक्ष निर्मला पासवान के नेतृत्व में कांग्रेस जन- जन तक फैलने का दावा तो कर रही है पर साथ चलने के लिये पुराने सहयोगियों के अलावां युवा चेहरे नहीं मिल रहे | अब तक कांग्रेस का जनपद में कमजोर समाज के साथ कोई ऐसा प्रदर्शन नहीं रहा जो लोगों में सराहा जाय | यह अब बंद कमरे की पार्टी बन गई है | यहा अम्बेडकर जयंती पर विचार रखने वालों का अभाव देखा गया | भाजपा की जिला इकाई हो या बूथ लेवल उन्हें ये पता हो चला है कि वोट कहा से कैसे आयेगा | इसलिए अब संविधान शिल्पी बाबा साहेब के बारे में लम्बे भाषण गाव मे जाकर देने व उसे वोट मे बदलने का सतत प्रयास उनके द्वारा जारी है | हाल के कुछ वर्षों से जाति के भरोसे अपनी राजनीति की नाव को दिल्ली तक ले जाने की अति महत्वाकांक्षा पाले निषाद पार्टी के अध्यक्ष डा0 संजय भी बाबा साहेब को पूजते हैं | यह और बात है कि भाजपा से राजनीतिक सौदेबाजी करके जिलापंचायत अध्यक्ष पर बकोध्यान जमाये बैठे हैं |
वहीं समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष अपने भाई को जिला पंचायत सदस्य जितवाने के लिये एड़ी चोटी एक किये हैं | सम्भव है उन्हें भी जिले की पंचायत कुर्सी अपने घर में चाहिये | बसपा जिलाध्यक्ष घनश्याम राही अपने पार्टी मे अति महत्वाकांक्षी लोगों पर दोष मढ़ते हुये कहते हैं कि जीत व सत्ता प्राथमिक है | विचारधारा की बात पर उन्हें ऐसा लगता है कि जो दलित है वह अम्बेडकरवादी है |भाजपा मे भी जिला पंचायत चुनाव मे प्रभावी लोग जोर आजमा रहे हैं | जाति व पौरूष का प्रभाव यहा भी दिखता है| जहा विधायक अपने परिवार में इस कुर्सी की दावेदारी चाहते हुये चहेतों को लड़ा रहे हैं वही सीएम के करीबी का जिला पंचायत सदस्य के लिये मैदान मे उतरना काफी महत्वाकांक्षी खेल बन जाता है |
आज बाबा साहेब डा0 भीमराव अम्बेडकर के विचार इन राजनीतिक लोगों से बिल्कुल उलट हो गये हैं | जबकि सभी उनके ही अनुयायी होने का दावा करते हैं | लब्बेलुआब अब कोई भी महापुरुष हो अगर वह वोट नहीं दिला सकता तो उसका नाम व पूजन करनेवाला कोई नहीं है | अफसोस ,आज सभी राजनीतिक पार्टी के नेता रेडिमेड भाषण पिला रहे हैं | बाबा साहेब के समानता व सभी को सम्मान की विचारधारा नेतृत्वकर्ता अपने स्वार्थ की चासनी में डुबो कर लोगों को वोट का महत्व बता रहे हैं | काश ! बाबा साहेब को सही मायने में आमजन समझ पाता और सड़क से सदन तक एक राय हो जाती , तो बाबा साहेब को यह देश व समाज की ओर से सच्ची श्रद्धाजलि होगी | फिलहाल दिल खोल कर जाति- धरम से ऊपर उठ कर योग्य को चुनिये !