गोरखपुर

'तरकुलहा देवी मंदिर,जहां मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालु बांधते हैं घंटी'

Satyapal Singh Kaushik
3 April 2022 10:00 AM IST
तरकुलहा देवी मंदिर,जहां मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालु बांधते हैं घंटी
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भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है इतिहास।

गोरखपुर से करीब 20 किलोमीटर दूर देवीपुर गाँव में तरकुलहा देवी माँ का मंदिर (Tarkulha devi mandir)पूर्वान्चल में आस्था का एक प्रसिद्ध केंद्र है। कभी घना जंगल रहा यह क्षेत्र अब माँ के आशीर्वाद से पूरी तरह आबाद है। यहां हजारों लोग अपनी मन्नत पूरा करने के बाद प्रसाद के रूप में मीट ग्रहण करते हैं। तरकुलहा माई का यह दरबार अब हर साल आने वाले हजारो लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का तीर्थ बन चुका है। तरकुल के पेड़ के नीचे विराजी माता का भव्य मंदिर सबकी मुरादें पूरी कर रहा। हर साल लाखों श्रद्धालु मां का आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं। नवरात्रि में हजारों की भीड़ रोज आशीर्वाद लेने और मन्नत मांगने आती है।

*बकरे का मीट मिलता है प्रसाद में*

तरकुलहा देवी मंदिर (Tarkulha Devi mandir) में बकरा चढ़ाने की परम्परा है। लोग मन्नते मांगने आते हैं और पूरी होने के बाद यहां बकरे की बलि चढ़ाते हैं। फिर वहीं मिट्टी के बर्तन में उसे बनाते हैं और प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते हैं। दूर-दूर से लोग यहां मन्नत पूरी होने पर प्रसाद चढाने आते हैं।

*मन्नत पूरी होने पर बांधी जाती है घंटी*

इस मंदिर के महात्म के बारे में लोग बताते हैं कि मन से जो भी मुराद मांगी जाए वह पूरी होती है। दूर दराज से आए भक्त मां से मन्नतें मांगते हैं। जब पूरी हो जाती है तो यहां मंदिर में घंटी बांधने की परम्परा है। मंदिर परिसर में चारों ओर घंटियां देखने को मिल जाएगी। मन्नतें पूरा होने पर लोग अपनी क्षमता के अनुसार घंटी बांधते हैं। वर्ष पर्यंत यहाँ आने वालों का ताँता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि में विशेष रूप से आस्थावान यहाँ आते है।

*स्वतंत्रता सेनानीयों की रक्षा करती थीं देवी मां.जानिए क्या है इतिहास*

मां अपने भक्तों की रक्षा हर जगह करती हैं। आजादी की लड़ाई से भी इस मंदिर का इतिहास जुड़ा है। अंग्रेज भारतीयों पर बहुत अत्याचार करते थे। डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे। वह अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंके हुए थे। बंधु सिंह मां के भी बहुत बड़े भक्त थे। 1857 के आसपास की बात है। जब पूरे देश में आजादी के लिए युद्ध का ऐलान हुआ। गुरिल्ला युद्ध में माहिर बाबू बंधू सिंह भी उसमें शामिल हो गए। वह घने जंगल में अपना ठिकाना बनाए हुए थे। जंगल में घना जंगल था। जंगल से ही गुर्रा नदी गुजरती थी। उसी जंगल में बंधू एक तरकुल के पेड़ के नीचे पिंडियों को बनाकर मां भगवती की पूजा करते थे। अंग्रेजों से गुरिल्ला युद्ध लड़ते और मां के चरणों में उनकी बलि चढ़ाते। इसकी भनक अंग्रेजों को लग गई। उन्होंने अपने गुप्तचर लगाए। अंग्रेजों की चाल कामयाब हुई और एक गद्दार ने बाबू बंधू सिंह के गुरिल्लाा युद्ध और बलि के बारे में जानकारी दे दी। फिर अंग्रेजों ने जाल बिछाकर वीर सेनानी को पकड़ लिया।

*छह बार टूटा फांसी का फंदा*

तरकुलहा देवी के भक्त बाबू बंधू सिंह पर अंग्रेजों ने मुकदमा चलाया। अंग्रेज जज ने उनको फांसी की सजा सुनाई। फिर उनको सार्वजनिक रूप से फांसी देने का फैसला लिया गया ताकि कोई फिर बगावत न कर सके। 12 अगस्त 1857 को पूरी तैयारी कर बाबू बंधू सिंह के गले में जल्लाद ने जैसे ही फंदा डालकर लीवर खींचा फंदा टूट गया । छह बार जल्लाद ने फांसी पर उनको चढ़ाया लेकिन हर बार मजबूत से मजबूत फंदा टूटता गया। अंग्रेज परेशान हो गए। जल्लाद भी पसीनेे पसीने होने लगा। जल्लाद गिड़गिड़ाने लगा कि अगर वह फांसी नहीं दे सका तो उसे अंग्रेज फांसी पर चढ़ा देंगे। इसके बाद बंधू सिंह ने मां तरकुलहा देवी को गुहार लगाई और प्रार्थना कर कहा कि उनको फांसी पर चढ़ जाने दें। उनकी प्रार्थना के बाद सातवीं बार जल्लाद ने जब फांसी पर चढ़ाया तो उनकी फांसी हो सकी। इस घटना के बाद मां तरकुलहा देवी का महात्म दूर दराज तक पहुंचा और मन्नत मांगने वालों की संख्या लाखों में पहुंच गई।

Satyapal Singh Kaushik

Satyapal Singh Kaushik

न्यूज लेखन, कंटेंट लेखन, स्क्रिप्ट और आर्टिकल लेखन में लंबा अनुभव है। दैनिक जागरण, अवधनामा, तरुणमित्र जैसे देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। वर्तमान में Special Coverage News में बतौर कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं।

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