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हाथरस दोषियों का केस निर्भया के दोषियों का केस लड़ने वाले एपी सिंह लड़ेंगे
हाथरस. निर्भया कांड की तरह हाथरस में हुई घटना ने एक बार फिर पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक हाथरस की बिटिया को न्याय दिलाने की मांग हो रही है. अब यह इत्तेफाक ही है कि निर्भया मामले में जिन दो वकीलों ने केस की पैरवी कोर्ट में की थी वे एक बार फिर आमने-सामने हो सकते हैं. जहाँ इस केस में एपी सिंह दोषियों के और सीमा कुशवाहा पीडिता की वकील बन सकती है.
निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा दिलाने वाली अधिवक्ता सीमा समृद्धि कुशवाहा (Advocate Samriddhi Kushwaha) ने हाथरस कांड की पीड़िता का केस लड़ने की बात कही है. वहीं, निर्भया कांड के दोषियों का केस लड़ने वाले अधिवक्ता एपी सिंह (Advocate AP Singh) से हाथरस के आरोपियों के परिजनों ने संपर्क किया है.
अधिवक्ता एपी सिंह ने कहा है कि आरोपियों के परिवार ने उनसे मुकदमा लड़ने के लिए आग्रह किया है. इसके अलावा एपी सिंह ने कहा है कि अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री मानवेंद्र सिंह ने भी उनसे हाथरस मामले में आरोपियों का मुकदमा लड़ने की बात कही है. मानवेंद्र सिंह द्वारा जारी पत्र में कहा गया है कि अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा पैसे इकट्ठा कर वकील एपी सिंह की फीस भरेगी.
इस पत्र में कहा गया है कि हाथरस केस के माध्यम से एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग करके सवर्ण समाज को बदनाम किया जा रहा है, जिससे खासतौर से राजपूत समाज बेहद आहत हुआ है. ऐसे में इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए मुकदमे की पैरवी आरोपी पक्ष की तरफ से एपी सिंह के द्वारा कराने का फैसला किया गया है.
केस ट्रान्सफर करने की मांग
पीड़िता के परिवार की तरफ से निर्भया मामले से चर्चा में आईं अधिवक्ता सीमा कुशवाहा को नियुक्त किया गया है. उन्होंने वकालतनामा पर हस्ताक्षर भी कर दिया है. सीमा कुशवाहा ने कहा है कि वह जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर मुकदमे की सुनवाई दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग करेंगी. उन्होंने बताया कि जब तक मामला उत्तर प्रदेश से बाहर नहीं किया जाएगा, हाथरस की बेटी को इंसाफ नहीं मिलेगा. आरोपियों को सजा दिलाने के लिए वह पूरा प्रयास करेंगी. उन्हें पूराी उम्मीद है कि एक दिन हाथरस की बेटी को न्याय मिलेगा और दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलेगी.
कौन ही वकील एपी सिंह
राष्ट्रीय राजधानी में 16 दिसंबर 2012 की रात सड़क पर दौड़ती एक बस में छह लोगों ने पैरामेडिकल स्टूडेंट निर्भया का गैंगरेप (Nirbhaya Gangrape-Murder Case) किया और बुरी हालत में मरने के लिए सड़क पर छोड़कर फरार हो गए. छह दोषियों में एक नाबालिग (Minor) था. पूरा देश इस घटना के खिलाफ सड़क पर उतर आया था. सिंगापुर (Singapore) में इलाज के दौरान निर्भया की मौत हो गई. आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद वकीलों ने उनकी पैरवी करने से ही इनकार कर दिया. इसी बीच सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के वकील अजय प्रकाश सिंह ने तीन आरोपियों की ओर से पैरवी करने की हामी भर दी. एपी सिंह कानून की खामियों का फायदा उठाकर बार-बार दोषियों की फांसी टलवा रहे हैं. मुकदमा शुरू होने से अब तक अक्सर लोगों को एपी सिंह के बारे में कहते सुना गया है, 'इसी को टांग देना चाहिए.'
निर्भया की मां को एडवोकेट सिंह ने दी चुनौती
निर्भया की मां आशा देवी ने हाल में बताया था कि 31 जनवरी को पटियाला हाउस कोर्ट की सीढ़ियों पर एपी सिंह ने दोषियों को अनिश्चितकाल तक फांसी नहीं होने देने की चुनौती दी थी. एपी सिंह उस दिन दोषियों की ओर से अपने बचाव में सभी कानूनी विकल्पों के इस्तेमाल तक फांसी टलवाने में सफल हो गए थे. वह चार में तीन दोषियों पवन गुप्ता, अक्षय कुमार सिंह और विनय शर्मा की ओर से पैरवी कर रहे हैं. चौथे दोषी मुकेश कुमार की पैरवी इसी मामले में न्यायमित्र रहीं वृंदा ग्रोवर कर रही हैं. बता दें कि छह में एक नाबालिग दोषी अपनी सजा पूरी कर बाहर आ चुका है. वहीं, एक दोषी ने कथित तौर पर जेल में ही आत्महत्या कर ली थी.
दोषियों की फांसी टालने को आजमाया हर दांव
लखनऊ यूनिवर्सिटी से लॉ ग्रेजुएट एपी सिंह ने क्रिमिनोलॉजी में डॉक्टरेट की हुई है. वह 1997 से सुप्रीम कोर्ट में वकालत कर रहे थे. लेकिन, उन्हें 2012 में तब पहचान मिली, जब वह निर्भया गैंगरेप-मर्डर केस में साकेत कोर्ट में सुनवाई के दौरान आरोपियों की ओर से पेश हुए. तब से अब तक वह अपने क्लाइंट्स को बचाने के लिए हर कानूनी दांव आजमा रहे हैं. एपी सिंह ने बताया था कि उन्होंने अपनी मां के कहने पर ये केस हाथ में लिया था. उन्होंने बताया कि अक्षय की पत्नी अपने पति से मिलने के लिए बिहार से तिहाड़ जेल पहुंची थी. इसी दौरान किसी ने उसे मेरा मोबाइल नंबर दिया था. वह मेरे घर आई और मेरी मां से मिली.
अपनी मां के कहने पर की दो दोषियों की पैरवी
एपी सिंह ने बताया, 'जब मैं घर पहुंचा तो मेरी मां ने कहा कि तुम्हें इस महिला को न्याय दिलाने के लिए मुकदमा लड़ना चाहिए. इस पर मैंने अपनी मां से इस मामले में पैरवी करने के नतीजों के बारे में बात की, लेकिन उन्होंने मुझे मुकदमा लड़ने को कहा.' एपी सिंह ने कहा कि मेरी मां टीवी नहीं देखती हैं. इसलिए उन्हें विरोध-प्रदर्शन, जंतर-मंतर, रामलीला मैदान, मोमबत्ती, धूपबत्ती, अगरबत्ती कुछ नहीं पता है. एपी सिंह ने निर्भया गैंगरेप केस के दोषियों को बचाने का सिलसिला साकेत से शुरू किया. शुरुआत में उन्होंने अक्षय और विनय की ओर से पैरवी की. हालांकि, वह दोनों को आरोपों से छुटकारा दिलाने में नाकाम रहे. उन्होंने अपने क्लाइंट्स को बचाने के लिए निर्भया की छवि खराब करने की भी कोशिश की.
निर्भया की छवि को खराब करने की कोशिश की
निर्भया केस को शुरू हुए 7 साल हो चुके हैं, लेकिन एपी सिंह को दोषियों की पैरवी करने का कोई अफसोस नहीं है. जब News18 ने उनसे पूछा कि उन्हें अपने क्लाइंट्स को बचाने के लिए निर्भया की छवि खराब की क्या जरूरत थी. इस पर उन्होंने उलटा सवाल पूछ लिया, 'क्या मुझे ये नहीं पूछना चाहिए था कि इतनी रात में लड़की एक लड़के के साथ क्या कर रही थी? ये भी सबूत का ही हिस्सा है. मैंने नहीं कहा था कि वे भाई-बहन थे या राखी का त्योहार मनाने के लिए बाहर घूम रहे थे. मैंने कहा कि वे दोनों दोस्त थे. उनके समाज में बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड रिलेशन की तारीफ होती होगी, लेकिन मैं जिस समाज से आता हूं, वहां ऐसा नहीं होता है.'
फैसला गलत बताकर साकेत कोर्ट में जज पर चिल्लाए
साकेत कोर्ट में फैसला दोषियों के खिलाफ आने पर एडवोकेट एपी सिंह ने कोर्टरूम में ही जज पर चिल्लाना शुरू कर दिया था. उन्होंने 13 सितंबर, 2013 को एडिशनल सेशन जज योगेश खन्ना से कहा कि आपने सच का साथ नहीं दिया. आपने ये फैसला राजनीतिक और वोटबैंक की राजनीति के दबाव में लिया है. कोर्ट के बाहर वह मीडिया से भिड़ गए थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि अगर मेरी बेटी या बहन इस तरह के संबंधों में होती तो मैं उसे अपने फार्महाउस ले जाता और पूरे परिवार के सामने उस पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा देता. इसके बाद उनकी जबरदस्त आलोचना हुई थी. बता दें कि एडवोकेट एपी सिंह के एक बेटी और बेटा है. बेटी कॉलेज में पढ़ती है.
पवन के पिता को भरोसा, नहीं होगी बेटे को फांसी
इसी दौरान रेडियो सिटी ने एक कैंपेन चलाया, जिसमें एडवोकेट एपी सिंह को जनभावनाओं का खयाल रखते हुए मामला छोड़ने की अपील की गई थी. लेकिन उन्होंने पवन सिंह की ओर से भी मामले में पैरवी शुरू कर दी. जहां आशा देवी न्याय के लिए जजों से आग्रह कर रही हैं, वहीं पवन के माता-पिता एपी सिंह की पूजा कर रहे हैं. पवन के पिता हीरा लाल ने News18 से भरोसा जताया कि उनके बेटे को फांसी नहीं होगी. उन्होंने कहा, 'तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने मुझसे कहा कि ये आपकी बेटे से आखिरी मुलाकात हो सकती है. मैं फिर भी उससे मिलने नहीं गया. मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे बेटे ने कुछ भी गलत नहीं किया और कोर्ट हमारी बात सुनेगा.'
बार काउंसिल ने भेज दिया कारण बताओ नोटिस
पवन को 1 फरवरी को फांसी दी जानी थी, लेकिन 30 जनवरी को ही एपी सिंह ने तारीख आगे बढ़वा ली. उन्होंने फांसी टलवाने के लिए एक के बाद एक कई याचिका दायर कीं. उन्होंने हाईकोर्ट में दलील दी कि पवन घटना के समय नाबालिग था. जब हाईकोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने 20 जनवरी को कहा कि कोर्ट एडवोकेट की ओर से अपनाए जा रहे तरीकों की निंदा करता है. ये ऐसा मामला नहीं है, जिसमें वकील याची के निर्देश पर याचिका दायर कर रहा है. ना ही ये ऐसा मामला है, जिसमें साक्ष्य याची के पक्ष में है. इस मामले में एक ऐसा वकील है, जो कानून और प्रक्रिया के बारे में सब कुछ जानता है. वह मामले को खींच रहा है. इसके बाद बार काउंसिल ने कोर्ट के आदेश पर एपी सिंह को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया.
'सिंह बचाव पक्ष के वकील का अपना काम कर रहे हैं'
निर्भया की मां आशा देवी ने कहा था कि कोर्ट में भी सब तनकर खड़े रहते हैं. ऐसा लगता है मैंने गलती की है. हम हाथ जोड़े 7 साल पहले भी इंसाफ मांग रहे थे, आज भी मांग रहे हैं. हालांकि, कानून के जानकारों का कहना है कि एपी सिंह बचाव पक्ष के वकील के तौर पर अपना काम कर रहे हैं. वह कानून जहां तक अनुमति देता है, अपने क्लाइंट्स की फांसी को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. ए. राजा की ओर से 2जी घोटाला मामले में पैरवी करने वाले वकील मनु शर्मा का कहना है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के मुताबिक कोई वकील सिर्फ इसलिए किसी आरोपी का बचाव करने से इनकार नहीं कर सकता क्योंकि लोगों को वह व्यक्ति दोषी लगता है.
सुप्रीम कोर्ट के वकीलों का कहना है कि एडवोकेट एपी सिंह बचाव पक्ष के वकील के तौर पर अपना काम कर रहे हैं.
अनुच्छेद-21 का पालन कराना वकील की जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट के वकील मनु शर्मा कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत किसी भी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक जीवन का अधिकार है. वहीं, अनुच्छेद-22 के तहत वकीलों की यह जिम्मेदारी है कि अनुच्छेद-21 का पूरी तरह पालन किया जाए. ऐसे में अगर किसी मामले में किसी आरोपी के लिए कोई कानूनी प्रक्रिया बाकी है तो यह वकील की जिम्मेदारी है कि वह उसका इस्तेमाल करे. लिहाजा, आम भारतीयों को किसी भी मामले में बचाव पक्ष के वकीलों पर गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी करने से बचना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के वकील मीत मल्होत्रा का भी कहना है कि लोगों के नजरिये को कानूनी प्रावधानों के ऊपर नहीं रखा जा सकता है.