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- यूपी की गैंगरेप...
यूपी की गैंगरेप पीड़िता मेरे सामने जलाई गई, मैंने सब देखा- पुलिसवाले ने क्या-क्या किया? पढिये पूरी दर्दनाक कहानी
"आह! वे लोग रात के अंधेरे में मृतक का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे. यह संभव नहीं है." हाथरस जाने के दौरान उस रात ये बात मैंने अपने कैमरामैन पवन कुमार के साथ कार में कही थी. कुछ ही घंटों बाद, मुझे यकीन नहीं हो रहा था, जो मैं वहां देख रहा था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक गांव की खेत में रात के अंधेरे में 2:30 बजे एक चिता जलाई गई, जहां केवल मुट्ठी भर पुलिसवाले मौजूद थे लेकिन परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं था. सामूहिक बलात्कार की शिकार 20 वर्षीय युवती का अधिकारियों द्वारा जबरन अंतिम संस्कार किया जा रहा था, जबकि परिवार के सदस्यों को उसके घर में बंद कर दिया गया था. यह उस दिन के नाटक का आश्चर्यचकित कर देने वाला अंत था, जिसमें दिल्ली से लगभग 200 किमी की दूरी तक गाड़ी चलाना शामिल था और अंत-अंत तक किसी को भी यह भनक नहीं लग पाई थी कि युवती की लाश कहां है?
मंगलवार को हमलोग रात में करीब 8 बजे दिल्ली से निकले थे और करीब 11.30 बजे रात में पुलिस की गाड़ी और लाश के पहुंचने से पहले ही हाथरस पहुंच चुके थे. पीड़िता के गांव जाने के रास्ते में आने वाले एक स्थानीय थाने में हमने देखा कि वहां पुलिस अधिकारियों की कई गाड़ियां खड़ी हैं. हमने वहां पुलिस कमिश्नर की कार देखी, तब लगा कि वहां थाने में कुछ अहम मीटिंग हो रही होगी. हमने वहां कुछ पुलिस अधिकारियों से पूछा कि क्या हम उनसे मिल सकते हैं? तब मुझे बताया गया कि वहां उच्च पदस्थ अधिकारियों की हाई लेवेल मीटिंग चल रही है.
हालांकि, एक छोटे से थाने में रात में इतनी अहम मीटिंग होना अस्वभाविक बात थी. उस समय तक, लाश और अधिकारियों के रुख को लेकर उहापोह की स्थिति थी. तब तक यह साफ नहीं हो सका था कि लाश दिल्ली में है या कानपुर में या हाथरस में. जब हम रास्ते में ही थे, तभी कुछ स्थानीय लोगों ने फोन पर बताया कि उनलोगों ने कुछ ऐसे लोगों को देखा है जो गांव में लकड़ी जमा कर रहे थे, शायद वह दाह संस्कार के लिए हो रहा होगा. मुझे लगा कि यह पुलिस के लिए ज्यादा कठिन कदम होगा कि रात के अंधेरे में किसी लाश का अंतिम संस्कार कर दिया जाय. लेकिन स्थानीय थाने में जो दृश्य दिखा, उसने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि संभवत: ऐसा ही हो. जब हम गांव की सीमा में पहुंचे तो गांव में प्रवेश करने से पहले ही हमारी कार रोक दी गई. पुलिस वालों ने कहा कि अगर आपलोग आगे जाना चाहते हैं तो पैदल ही जाना होगा.
इस मनमाने प्रतिबंध से जूझना बहुत मुश्किल था. पवन और मैंने करीब 1.5 किमी दूर युवती के घर की ओर अंधेरे में सूनसान खेतों से गुजरना शुरू कर दिया. जब हम आधे रास्ते में थे तब पीछे से एक लाल रंग की वैन अचानक गुजरी, उस पर फ्लड लाइट लगी थी. उसे देखकर हम चौंक गए, अचानक वह अंधेरे में कहीं गुम हो गई. जब हम रात में करीब 12.45 बजे युवती के घर के पास पहुंचे तो वहां कोई गाड़ी नहीं दिखी, हमलोग ढूंढ़ने लगे कि वो गाड़ी कहां गई?
मृतक युवती के घर के बाहर बड़ी संख्या में पुलिसवाले और स्थानीय मीडिया के लोग जमा थे. वहां मौजूद ज्वाइन्ट मजिस्ट्रेट, प्रेम प्रकाश, से हमने पूछा- लाश कहां है? उन्होंने जवाब दिया, "मुझे नहीं जानकारी, जैसे ही सूचना मिलती है, आपको बताएंगे." इसके दो-तीन मिनट बाद ही लाश और पीड़ित परिजनों को लेकर एक एम्बुलेन्स युवती के घर तक पहुंची. एम्बुलेन्स के पीछे हमने युवती के पिता और भाई को एक स्कॉर्पियो में देखा. एम्बुलेन्स घर के पास नहीं रुकी और वह आगे बढ़ गई. ग्रामीण और परिजन इसे देखकर विरोध करने लगे. लोग कहने लगे कि पहले लाश घर पर लाओ, वरना इस जगह से आगे लाश नहीं ले जाने देंगे. वे लोग एम्बुलेन्स के पीछे-पीछे दौड़े और कहते रहे, "एम्बुलेन्स नहीं जाएगी आगे."
मैंने भी एम्बुलेन्स का पीछा किया और दौड़ पड़ा. "बॉडी आगे नहीं जाएगी" की चीख तेज हो रही थी. इस हल्ला-गुल्ला के बीच हमने देखा कि पुलिस के अधिकारी गण और ज्वाइन्ट मजिस्ट्रेट ने हेलमेट पहन लिया था. ज्वाइन्ट मजिस्ट्रेट ने आकर स्थानीय लोगों से कहा, 'डीएम साहब आ रहे हैं." थोड़ी ही देर में जिलाधिकारी सुरक्षात्मक ड्रेस और हेलमेट पहने वहां पहुंच गए. युवती के पिता ने कहा, "मैं दाह संस्कार की जिम्मेदारी लेता हूं. सुबह में कोई भी समस्या नहीं होगी." जिलाधिकारी ने उनसे कहा, "आपको सुबह करनी है या अभी करनी है..अभी ही कर-धर दीजिए."
डीएम ने कहा, "आप तो रास्ते में कह रहे थे कि रात में ही कर देंगे." अब तक लोगों ने एम्बुलेंस और इसकी खिड़कियों को पीटना शुरू कर दिया था. उसे घर के पास वापस लाया गया और बाहर पार्क कर दिया गया. तभी एक अधिकारी ने कहा, 'लाश बाहर निकाल देते हैं' लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं. ताबूत को देखते हुए, मेरे मन में ये विचार दौड़ा कि कैसे उस युवती ने 14 दिनों से भी ज्यादा अपनी जिंदगी के लिए संघर्ष किया होगा और उसके इस दुनिया से चले जाने के बाद भी उसके संघर्ष का अंत नहीं हुआ. रात के करीब 2 बजे जैसे ही मृतक युवती के पिता और कुछ परिजन घर के अंदर गए, अधिकारियों ने उन्हें जल्द से जल्द दाह संस्कार करने के लिए मनाने के प्रयास तेज कर दिए.
तभी पवन के कैमरे की लाइट जल उठी, मैं उसके पीछे खड़ा था. डीएम भी उस घर के अंदर गए. डीएम ने पवन को कैमरा बंद करने और वहां से चले जाने को कहा. मैं चुपचाप घर के अंदर जाकर एक परिजन के पीछे बैठ गया. मैंने अपनी माइक चुपचाप वहां छुपा दी ताकि उनकी बातचीत सुन सकूं. मुझे लगा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं रही होगी कि कोई मीडियावाला भी उनकी बातचीत सुन रहा है. डीएम ने फिर से समझाने की कोशिश की. उन्होंने कहा, "मैं सिर्फ पिता से बातचीत करूंगा." तभी एक पुलिस वाला भी उस बातचीत में शामिल हुआ. वो पिता को भावुक होकर समझाने लगा. उसने कहा, "यह एक बहुत ही नाजुक स्थिति है. यहां तक कि मैं भी यहां सामान्य परिस्थितियों में नहीं होता." तभी इंडिया टुडे की पत्रकार तनुश्री पांडेय घर में प्रवेश करने लगीं. उन्हें देखकर डीएम ने कहा, "मैम, आपके सामने हम बात नहीं कर सकते." उन्होंने बहादुरी से जवाब दिया, "मैंने अपने कैमरे और माइक स्विच ऑन नहीं किया है. मैं यहां क्यों नहीं खड़ी हो सकती?"
तभी मैं बाहर आ गया. देखा कि युवती की मां एम्बुलेन्स के आगे जमीन पर अपना सिर पटक-पटक कर, चीख-चीखकर रो रही थी. तभी एक पुलिसवाला मेरे पास आया और मुझे घर के अंदर ले गया, यह कहते हुए कि साब ने सभी को बुलाया है. उसने कहा, "सभी पत्रकारों को वहां बुलाया गया है. हमारे सर आपलोगों से बात करेंगे."
मुझे पता था कि वहां कोई नहीं होगा, हमलोगों की नजर से एम्बुलेंस हटाने की यह एक कोशिश थी. मैं वापस चला गया, तब तक एम्बुलेन्स का इंजन गड़गड़ाया और गाड़ी दूर चली गई. मैं एम्बुलेंस और पीछे दौड़ रहे लोगों का एक शॉट लेने में कामयाब रहा. हमलोग भी उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे. जब हम खुले मैदान में पहुंचे तो वहां हमने दो बड़े फ्लड लाइट देखे. तब मैंने अपने संदेह की सारी कड़ियों को जुड़ते पाया. रास्ते में जो वैन हमने देखी थी, वह इसी समय के लिए लाई गई थी ताकि वहां रोशनी की जा सके.
हालांकि, रोशनी के बावजूद, हम अंधेरे में रहे. तब तक पुलिसवालों ने रोड पर ही एक मानव श्रृंखला बना ली थी और मीडिया वालों को आगे नहीं जाने दे रहे थे. हमने कारण जानने की कोशिश की लेकिन कुछ जानकारी नहीं मिली. रात के करीब 2.30 बजे हमने देखा कि चिता को आग लगा दी गई. हम तभी खेतों में जा पहुंचे, ताकि साफ-साफ देख सकें. वहीं से मैंने पीस-टू-कैमरा 'पी2सी' रिकॉर्ड किया. मैं यह देखकर आश्चर्यचकित था कि कैसे पुलिसवाले ने ही वहां सबकुछ किया. मैं लगातार वहां ढूंढ़ता रहा, देखता रहा कि पीड़िता के पिता वहां मौजूद हैं या नहीं?
तभी पवन ने हमें सुझाव दिया कि घर चलकर देखते हैं कि कहीं परिवार घर पर तो नहीं है. जब हमलोग घर पर पहुंचे तो देखा कि घर अंदर से बंद है. मैंने पिता के बारे में पूछा. परिजनों ने बताया कि उनकी हालत ठीक नहीं है और वो आराम कर रहे हैं. उनलोगों ने बताया कि अधिकारियों ने उन्हें शव नहीं सौंपा. तब मैंने उन लोगों को बताया कि उसका दाह संस्कार कर दिया गया. रात करीब 4 बजे मैं होटल पहुंचा. तब मैंने ज्वाइन्ट मजिस्ट्रेट का समाचार एजेंसी एएनआई को दिया एक बयान देखा, जिसमें अधिकारी कह रहे थे कि दाह संस्कार कर दिया गया है, और वहां सबकुछ नियंत्रण में है. उन्होंने कहा कि पुलिस और अन्य अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि पीड़ित को न्याय दिलाया जाए. उस रात मेरी अंतरात्मा को भावनाएं चुनौती दे रही थी. मैंने इस तरह के दाह संस्कार की उम्मीद नहीं की थी लेकिन मन-मस्तिष्क में चिता को आग देने वाली दृश्यों के उमड़ने-घुमड़ने के साथ ही सोया था. क्या इस देश में एक गरीब को गरिमा के साथ मरने का भी सौभाग्य नसीब नहीं है?