उत्तर प्रदेश

अच्छे दिनों की आस छोड़ रहे अनुदेशक, जीविका चलाने के लिए खोल रहे हैं दुकान, लगा रहे ठेला

Satyapal Singh Kaushik
14 Dec 2022 8:30 PM IST
अच्छे दिनों की आस छोड़ रहे अनुदेशक, जीविका चलाने के लिए खोल रहे हैं दुकान, लगा रहे ठेला
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अनुदेशकों के लिए अच्छे दिनों का सपना बस सपना बनकर रह गया है,स्थिति यहां तक हो गई है की अनुदेशकों को जीविका चलाने के लिए ठेला तक लगाना पड़ रहा है

अनुदेशकों के अच्छे दिन कब आयेंगे। यह ख्वाब बस अब ख्वाब बनकर रह गया है। बदहाली की जिंदगी जी रहे अनुदेशक अब बस सरकार की हाथ की कठपुतली बनकर रह गए हैं।

जीविका चलाने के लिए खोल रहे हैं परचून की दुकान

अनुदेशकों की हालत अब ऐसी हो चली है की उन्हें अपना पेट पालने के लिए परचून, किराना आदि भी कई तरह की दुकानें खोलनी पड़ रही है। दुकान खोलने के लिए पैसे नहीं हैं तो उधार पर पैसे लेकर दुकान खोलनी पड़ रही है।

जानिए अनुदेशकों का दर्द

एक अनुदेशक बताते हैं कि,पहले 7000 मिलते थे अब 9000 मिलने लगे। इतने में क्या होगा? मां जी और मेरी वाइफ का स्वास्थ्य सही नहीं रहता। इतनी भी सैलरी नहीं कि उनका सही से इलाज करवा सकूं। दूसरी तरफ महंगाई इतनी बढ़ गई है कि स्कूल जाने के लिए पेट्रोल भरवाने पर पैसे कम पड़ जाते हैं। उधार लेना पड़ता है।

बीवी तलाक के लिए अर्जी लगा चुकी है

गोरखपुर के पिपराइच के एक अनुदेशक ने कहा कि, ''9 साल की नौकरी में न सिर्फ मैं बल्कि मेरे जानने वाले कई अनुदेशक कर्ज में डूब चुके हैं। मेरा तो परिवार टूटने के कगार पर आ चुका है। कम सैलरी के कारण ही बीवी ने तलाक की अर्जी लगा दी है। 2000 रुपए बढ़ गया तो हमारी परेशानियां कम नहीं हुई।


Satyapal Singh Kaushik

Satyapal Singh Kaushik

न्यूज लेखन, कंटेंट लेखन, स्क्रिप्ट और आर्टिकल लेखन में लंबा अनुभव है। दैनिक जागरण, अवधनामा, तरुणमित्र जैसे देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। वर्तमान में Special Coverage News में बतौर कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं।

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