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योगी सरकार को हाईकोर्ट से झटका, जौनपुर में दलित बस्ती में लगी आग के आरोपी से रासुका हटाई तत्काल रिहा करने के दिए आदेश
यूपी : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जौनपुर में दलितो की बस्ती में आगजनी व दंगा करने के आरोपी जावेद सिद्दीकी की रासुका के तहत निरूद्धि को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है और अन्य केस में वांछित न होने की दशा में तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जौनपुर की दलितो की बस्ती में आगजनी व दंगा करने के आरोपी जावेद सिद्दीकी की रासुका के तहत निरूद्धि को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है और अन्य केस मे वांछित न होने की दशा मे तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है।
इनपर 75 से 80लोगो की भीड के साथ भदेठी मलिन बस्ती को आग के हवाले करने ,दंगा फसाद ,मार पीट कर अफरा तफरी फैलाने का आरोप है । जिसमे कई लोग घायल हुए और जल कर जानवरों की मौत हो गयी थी।
कोर्ट ने जिलाधिकारी के 10जुलाई 20के याची को जेल मे निरूद करने के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि अधिकारियों ने निरूद्धि के विरुद्ध याची के प्रत्यावेदन को तीन हफ्ते तक सलाहकार परिषद के समक्ष पेश नही किया। और समय से पेश न करने का सही कारण भी नही बतायी सके।कोर्ट ने इसे याची को सुनवाई के अधिकार से वंचित रखना माना और कहा कि ऐसा करना संविधान के खिलाफ है।
यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति पी के श्रीवास्तव की खंडपीठ ने दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता दया शंकर मिश्र व चंद्रकेश मिश्र ने याची की तरफ से बहस की।
मालूम हो कि 9जून 20को मलिन बस्ती के रवि पवन अतुल भैंस बकरी चरा रहे थे।आरोपियों ने जाति सूचक गालियां दी। कहा सुनी के बाद भीड गाव में घुस आयी और दंगा फसाद करने लगे ।गाव के 10घर जला दिया। लोग जान बचाकर दूसरे गाव को भागे।कई लोग घायल हुए,कई मवेशी जलकर हर गये।
घटना के बाद भारी पुलिस बल तैनात की गयी।राजेश की शिकायत पर सराय ख्वाजा थाने में एफ आई आर दर्ज करायी गयी है। जिसमे याची को भीड के साथ दंगा करने का आरोप लगाया गया है।
याची को विशेष न्यायाधीश कोर्ट ने 20जून को जमानत दे दी ।इसके बाद 10जुलाई को जिलाधिकारी जौनपुर ने रासुका के तहत निरूद्धि आदेश दिया। कोर्ट ने सलाहकार परिषद मे वकील के मार्फत पक्ष रखने की अनुमति न देने को गलत नही माना।जिलाधिकारी की रासुका आदेश पारित करने मे संतुष्टि के प्रश्न पर कहा कोर्ट इसका परीक्षण नही कर सकता है।
रासुका छः माह बढाने को भी गलत नही माना। किन्तु याची के प्रत्यावेदन को सलाहकार परिषद के समक्ष नही रखना और परिषद द्वारा निरूद्धि का अनुमोदन करने के बाद प्रत्यावेदन निरस्त करने को विधि विरूद्ध करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कर अनुच्छेद 21की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल अधिकार का हनन किया गया है। जिसका पालन किया जाना चाहिए।