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बीजेपी सरकार के मंत्री को थाने में घुसकर मारी थी गोली, बड़े-बड़े नेताओं का है इस डॉन पर हाथ
जिलानी लियाकती
कानपुर : उसने होश संभालते ही आराराम-गयाराम की दुनिया में कदम रख दिया। दो दर्जन युवकों के सथ अपना खुद का गैंग बना, लूट, डकैती मर्डर जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने लगा। आलम ये था कि कानपुर नगर से लेकर देहात तक में इसकी सल्तनत कायम थी। पंचायत, निकाय, विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनाव के वक्त राजनेताओं को बुलेट के दम पर बैलेट दिलवाना इसका पेशा बन गया। इसी दौरान इसके संबंध सपा, बसपा, भाजपा के बड़े नेताओं से हो गए। 2001 में इसने भाजपा सरकार के दर्जाप्राप्त मंत्री को थाने के अंदर घुसकर गोलियों से भून डाला था। हाई प्रोफाइल मर्डर के बाद शिवली के डॉन ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया और कुछ माह के बाद जमानत पर बाहर आ गया। इसके बाद इसने राजनेताओं के सरंक्षण से राजनीति में इंट्री की और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीत गया था।
हम बात कर रहे हैं शिवली क्षेत्र के बिकरू गांव निवासी विकास दुबे इसके खिलाफ 52 से ज्यादा मामले यूपी के कई जिलों के थानों में चल रहे हैं। इस पर पुलिस ने हजारो का इनाम रखा हुआ था। हत्या व हत्या के प्रयास के मामले पर पुलिस इसकी तलाश कर रही है । विकास दुबे पुलिस से बचने के लिए कई पैतरे अपनाता रहता है । हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे की यूपी के चारों राजनीतिक दलों में अच्छी पकड़ थी। 2002 के वक्त तब मायावती सूबे की सीएम थीं, तब इसका सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में चलता था। इस दौरान इसने जमीनों पर अवैध कब्जे के साथ अन्य गैर कानूनी तरीके से संपत्ति बनाई। जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से नगर पंचयात अध्यक्ष का चुनाव जीत गया। बसपा सरकार के एक कद्दावर नेता से इसके गहरे संबंध थे। चुनाव की आहट मिलते ही इसने पैर बाहर निकाले और इसी के बाद इसकी गिरफ्तारी का आदेश आ गया था । जानकारों का कहना है कि भाजपा के एक विधायक से इसका छत्तीस का आकड़ा था और बिल्हौर, शिवराजपुर, चौबेपुर नगर पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर अपने खास लोगों को जिताने के लिए लगा रखा था।
जीत के जश्न के बाद संतोष शुक्ला से हुआ था विवाद
1996 के विधानसभा चुनाव के दौरान चौबेपुर विधानसभा सीट से हरिकृष्ण श्रीवास्तव और भाजपा के संतोष शुक्ला के बीच तगड़ा मुकाबला हुआ। विकास दुबे ने श्रीवास्तव को जिताने का फरमान जारी कर दिया। इस दौरान संतोष शुक्ला और विकास के बीच कहासुनी हुई। इलेक्शन हरिकृष्ण श्रीवास्तव जीत गए। विकास और इसके गुर्गे जश्न मना रहे थे। इसी दौरान संतोष शुक्ला वहां से गुजर रहे थे। विकास ने उनकी कार को रोक कर गाली-गलौज शुरू कर दी। दोनों तरफ से जमकर हाथा-पाई हुई। इसी के बाद से विकास ने संतोष शुक्ला को खत्म करने की ठान ली। पांच साल तक संतोष शुक्ला और विकास के बीच जंग जारी रही और इस दौरान दोनों तरफ के कई लोगों की जान भी चली गई।
लॉकप तोड़कर उतारा था मौत के घाट
2001 में यूपी में भाजपा सरकार बनी तो संतोष शुक्ला को दर्जा प्राप्त मंत्री बनाया गया। इसी के बाद से विकास दुबे की उल्टी गिनती शुरू हो गई। उसी वक्त विकास बसपा के साथ ही भाजपा नेताओं के संपर्क में आ गया। भाजपा नेताओं ने संतोष शुक्ला और विकास के बीच सुलह करानी की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं रहे। उसी दौरान संतोष शुक्ला ने सत्ता की हनक के बल पर इसका एनकाउंटर कराने का प्लान बनाया। जिसकी भनक विकास को हुई तो ये संतोष को मारने के लिए अपने गुर्गो के साथ निकल पड़ा। 2001 में संतोष शुक्ला एक सभा को संबोधित कर रहे थे, तभी विकास अपने गुर्गों के साथा आ धमका और संतोष शुक्ला पर फायरिंग शुरू कर दी। वो जान बचाने के लिए शिवली थाने पहुंचा, लेकिन विकास वहां भी आ धकमा और लॉकप में छिपे बैठे संतोष को बाहर लाकर मौत के घाट उतार दिया था।
भाजपा नेताओं ने बचाकर करवाया था सरेंडर
दर्जा प्राप्त मंत्री संतोश शुक्ला के मर्डर के बाद पुलिस इसके पीछे पड़ गई। कई माह तक ये फरार रहा और तब सरकार ने इसके सिर पर पचास हजार का इनाम घोषित कर दिया। पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के डर के चलते ये अपने खास भाजपा नेताओं की शरण में गया। जहां उन्होंने अपनी कार में बैठाकर इसे लखनऊ कोर्ट में सरेंडर करवाया। कुछ माह जेल में रहने के बाद इसकी जमानत हो गई और बाहर आते ही फिर इसने अपना आंतक शुरू कर दिया। संतोश शुक्ला केस में इसके खिलाफ जितने गवाह थे वो डर के चलते मुकर गए और कोर्ट ने इसे बरी कर दिया। विकास दुबे वर्तमान में भाजपा के साथ ही जुड़ा था, लेकिन इसी दल के एक विधायक से इसकी नहीं पट रही थी। विकास बिल्हौर, चौबेपुर, शिवराजपुर में अपने लोगों को टिकट दिलाने के लिए लगा था। इसी के बाद भाजपा के एक खेमे ने इसकी शिकायत सीएम से कर दी। इसी के बाद विकास दुबे की गिरफ्तारी का फरमान जारी हुआ था ।
चेत जाती पुलिस तो ना होती इतनी बड़ी घटना
जिस तरीके से पुलिस और अपराधियों के मुठभेड़ में सीओ समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए कहीं ना कहीं देखा जाए तो वह सभी अपराधी विकास दुबे के मामले में सही से प्लानिंग के तहत उसके लिए जाते तो शायद इतनी बड़ी घटना ना होती ।