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चँद्रयान के वैज्ञानिक- कानपुर की विनती भाटिया, रविश कुमार ने लिखी ये पोस्ट
यह कहानी कई असफलताओं के बीच से सफलता की एक डोर पकड़ लेने वाली विनती भाटिया की है। 90 के दौर में पैदा हुई इस लड़की के जीवन में पढाई चुनौती बनकर आती रही तो इसने भी उस चुनौती को स्वीकार किया। कम अच्छी छात्रा से बेहतर छात्रा के बीच की दूरी को केवल अपनी मेहनत और लगन से तय किया। हर परिवार की अपनी आर्थिक मुश्किलें होती हैं, तो इस परिवार की भी थीं। माँ ने उस छोर को संभाला तो विनती की पढ़ाई ने अपने सफ़र की शुरूआत की। किसे पता था कि चँद्र मोहिनी भाटिया की बेटी विनती एक दिन चँद्रयान अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
कानपुर कैंट स्कूल की टीचर रहीं चँद्र मोहिनी भाटिया ने अपने बच्चों को अच्छी तालीम देने का प्रण किया। तब विनती पढ़ाई में कमज़ोर थी। बहुत से बच्चे पढ़ाई में कमज़ोर होते ही हैं लेकिन माँ की ज़िद थी कि बेटी अच्छे स्कूल में पढ़ेगी। गुरु नानक पब्लिक सीनियर सेकेंड्री स्कूल में नामांकन करा दिया। इस सफ़र में पिता कृष्ण गोपाल भाटिया ने भी पूरा साथ दिया। आठवीं तक किसी तरह पहुंचने के बाद नौवीं से विनती ने पढ़ाई का सुर पकड़ लिया और किताबों में समा गईं। अपने प्रिय दादाजी को खोने के ग़म से बचने के लिए किताबों को सहारा बना लिया।
विनती जो कमज़ोर लड़की मानी जाती थी, अब क्लास में अच्छा करने लगी। उनकी टीचर को दिखने लगा कि बहुत पीछे रह जाने वाली यह लड़की धीरे-धीरे आगे आ रही हैं। टीचर ने क्लास की टॉपर को सतर्क किया कि विनती को देखा करो। दसवीं और ग्यारवहीं के दौरान वह पढ़ाई पर पकड़ बनाती गई और बारहवीं में बहुत अच्छा किया।
फिर पहुंची IMS इंजीनियरिंग कॉलेज ग़ाज़ियाबाद। मैकेनिकल इंजीयनियरिंग चुन लिया जिसमें कम लड़कियां पढ़ती थीं। मगर यहां एक सेमेस्टर में मन मुताबिक परिणाम नहीं आया तो दिल टूट गया । हार नहीं मानी। विनती ने अपने आप को संभाला और एक बार फिर से ख़ुद को कस लिया। अगरे चार साल तक वो सबसे आगे रही। इंजीनियरिंग के बाद आई टी सेक्टर में काम करने हैदराबाद गई, वहां मन नहीं लगा तो कानपुर लौट आई। और तय किया कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ही आगे पढ़ाई करेगी।
DRDO ज्वाइन किया।अब वह वैज्ञानिक बनने का सपना देखने लग गई। DRDO की तरफ से फेलोशिप पर IIT दिल्ली में पढ़ने का मौका मिला और नौकरी करने के साथ-साथ विज्ञान में मास्टर की पढ़ाई पूरी की।रात-रात भर लाइब्रेरी में पढ़ाई करने लग गई और एक बार फिर से गेट की परीक्षा दी। पहली बार में मन लायक सफलता नहीं मिली थी।दूसरी बार में 1000 के भीतर रैंक आ गया। सार्वजनिक क्षेत्र की कई कंपनियों से नौकरी का प्रस्ताव आया मगर अलग-अलग कारणों से टलता गया। 2015 में विनती सरकारी स्कॉलरशिप पर पीएचडी करने अपने शहर पहुंच गई। आई आई टी कानपुर। जहां उसने पढ़ने का सपना देखा था लेकिन कितनी लंबी दूरी तय कर वह आई आई टी कानपुर पहुंची।
विनती ने तय किया कि इसरो की परीक्षा देगी। जिस विषय से परीक्षा में बैठी, उसके लिए पूरे भारत में एक ही सीट थी। विनती सफल हो गई। जून 2016 को वह इसरो का हिस्सा हो गई। चँद्र मोहिनी की बेटी अब इसरो पहुंच चुकी थी। इन सात सालों में उसने अपनी लगन से वहां के वैज्ञानिकों में साख बना ली। उसे सबसे अच्छे ग्रेड मिलने लगे और प्रमोशन होने लगा। एक दिन चंद्र मोहिनी की बेटी विनती चँद्रयान की टीम का हिस्सा बन गई।
इसके आगे की कहानी मैं नहीं बता सकता। लेकिन जितनी कहानी बताई है, वह चँद्रयान की सफलता, असफलता और सफलता से कितनी जुड़ी हुई है। विनती का एक बहुत अच्छा भाई है। शशांक भाटिया। हर इम्तहान से पहले अपनी बहन को कलम देता था और इम्तहान के बाद उसका रिज़ल्ट देखने जाता था। उस भाई से अपने बहन की चर्चा सुनकर लगा कि ये कहानी सबके घरों में जानी चाहिए। जहां हम अपनी शुरूआत कई तरह की कमियों के साथ करते हैं, आगे चल कर उन्हें दूर भी करते हैं और फिर एक दिन मंज़िल पा जाते हैं। इस कहानी में कुछ भी बना-बनाया नहीं, किसी का वरदान नहीं है, बस समय-समय पर पिछड़ने और फिर से आगे बढ़ने की ज़िद से इस कहानी का सफ़र पूरा होता है।
विनती भाटिया आपको मेरी तरफ से सलाम। आप जैसे वैज्ञानिकों ने हम सभी को एक नया सपना दिया है। कम में शुरू करने का, जोड़-जोड़ कर सफ़र तय करने का सपना।
यह कहानी मैंने उस ज़िद में लिखी है कि इतनी बड़ी कामयाबी के वक्त हमारे मीडिया स्पेस में वैज्ञानिकों के लिए कितनी कम जगह है। हम सभी को ऐसी कहानी लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए। अगर आप किसी को जानते हैं, जिनका संबंध चँद्रयान अभियान से है, आप भी उनकी कहानी लिखिए और लोगों तक पहुंचाइये।