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कोरोना में कैसे मिले मृत प्राणी को मोक्ष, कैसे करें अस्थि विसर्जन और अंतिम संस्कार
मोक्ष का मतलब दुनिया से मुक्ति पर आज मोक्ष भी लॉकडाउन में फंस गया है। देश में कोरोना की महामारी के चलते देशभर में जनता कर्फ्यू की बजह से मरे हुए लोगों की अस्थियां श्मशानघाटों के लॉकरों में बंद हैं,लॉकडाउन खुलने पर ही यह गंगा में विसर्जित हो सकेंगी। कुछ जगह लोग अपनी जान जोखिम में डालकर उनका विसर्जन भी कर रहे हैं, श्राद्ध कर्म में और भी कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं। 13 दिन में कराया जाने वाला ब्राह्मण भोज अब 10 दिन में कराया जा रहा है। दरअसल लॉकडाउन ने परिस्थितियां ही ऐसी बना दी हैं कि नियम के मुताबिक 10 दिन में विसर्जित होने वाली अस्थियां अब 1 महीने से लॉकर में बंद हैं या परिजनों के भी कोरोना संक्रमित होने की बजह से उनका विसर्जन नहीं हो पा रहा है, परिजन विवश हैं कि कब लॉकडाउन खुले और कब वो अपने इन मृतकों की अस्थियां विसर्जित करके उन्हें मोक्ष के द्वार तक पहुंचा सके।
शूकर क्षेत्र सोरों जी गंगा जी घाट के ज्योतिष पंडित गौरव दीक्षित शास्त्री ने कहा कि शास्त्रों के मुताबिक मौत पर क्रियाक्रम पूरा किया जाता है। अस्थियों को 10 दिन में गंगाजी में विसर्जित करने का विधान है। ऐसा न होने पर आत्मा को शांति नहीं मिलती। लोग लॉकडाउन के चलते अस्थि विसर्जन नहीं कर पा रहे और लॉकर में भी जगह नहीं मिलती तो वे पीपल के पेड़ पर लाल कपड़े से बांध सकते हैं। लेकिन यहां हर रोज धूप आदि जलाना आवश्यक होता है इसके अलावा खेत या बाग़ आदि में भी एक निश्चित जगह पर गाढ़ कर रखा जा सकता हैं, पुराने समय में भी लोग अस्थि विसर्जन के लिए काफी समय बाद तीर्थ जाते थे, समय पर अस्थि विसर्जन न हो तो एक अस्थि किसी भी बहती नहर में विसर्जित की जा सकती है, जिसके बाद 10 दिन में विसर्जन का बंधन आवश्यक नहीं रहता।
हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद भी व्यक्ति की सूक्ष्म आत्मा उसी स्थान पर रहती है, जहां उस व्यक्ति की मृत्यु हुई। आत्मा पूरे 13 दिन अपने घर में ही रहती है। उसी की तृप्ति और मुक्ति के लिए तेरह दिन तक श्राद्ध और भोज आदि कार्यक्रम किए जाते हैं। अस्थियों को मृत व्यक्ति का प्रतीकात्मक रूप में माना गया है। जो व्यक्ति मरा है, उसके दैहिक प्रमाण के तौर पर अस्थियां का संचय किया जाता है।अंतिम संस्कार के बाद देह के अंगों में केवल हड्डियों के अवशेष ही बचते हैं, जो लगभग जल चुके होते हैं। इन्हीं को अस्थियां कहते हैं। इन अस्थियों में ही व्यक्ति की आत्मा का वास भी माना जाता है। जलाने के बाद ही चिता से अस्थियां ली जाती हैं, क्योंकि मृत शरीर में कई तरह के रोगाणु पैदा होते हैं, जिनसे बीमारियों की आकांक्षा होती है। जलने के बाद शरीर के ये सारे जीवाणु और रोगाणु खत्म हो जाते हैं और बची हुई हड्डियों भी जीवाणु मुक्त होती हैं। इनके छूने या इन्हें घर लाने से किसी प्रकार की हानि का डर नहीं होता है। इस अस्थियों का श्राद्ध कर्म आदि क्रियाओं के बाद किसी गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। अगर आप गंगा किनारे बसे शहरों में रहते हैं तो उसी दिन अस्थि विसर्जित कर दे अन्यथा घर के बहर किसी पेड़ पर अस्थि कलश लटका देना चाहिए और दस दिन के भीतर गंगा में विसर्जन करना चाहिए, मृत प्राणी की अस्थि को सोरों जी गंगाजी, हरिद्वार, प्रयागराज संगम में विसर्जन करने पर प्राणी को गंगा घाट पर मरने का फल मिलता है।
यदि कोरोना में किसी की मृत्यु की बजह से रीति रिवाज से अंतिम संस्कार नहीं हो पाया हैं तो उनके परिजन श्रीमद भागवत गीता का 7वां अध्याय या मार्कण्डेय पुराणांतर्गत 'पितृ स्तुति' करें इसके अलावा मे श्राद्ध पक्ष में अपने पित्रों का अच्छे से श्राद्ध कर्म करें.
पं0 गौरव दीक्षित शास्त्री ज्योतिष, तीर्थ पुरोहित शूकर क्षेत्र, सोरों जी मोबाईल - 07452961234