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कासगंज का कादरवाडी गांव सदियों से बना हुआ हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक
कावंड़ मेला शुरू होने से पूर्व दो -तीन माह से तैयारियों में जुटते हैं मुस्लिम करीगर,कासगंज जनपद का कादरवाडी गांव हिंदू, मुस्लिम एकता का प्रतीक है, क्योंकि हिंदुओं की सबसे बड़ी कांवड़ यात्रा बिना मुस्लिम समुदाय के सहयोग के पूरी ही नहीं हो सकती, भले ही कांवड़िए सावन शुरू होने से कुछ दिन पहले यात्रा की तैयारी करते हों, लेकिन मुस्लिम समाज के लोग इस यात्रा के लिए महीनों पहले से तैयारी करते हैं।मुस्लिम समाज के द्वारा बनाई गई कांच की शीशी में कांवड़िए गंगा जल भरते हैं और बम बम भोले के जयघोष के साथ रवाना होते हैं। जिससे मुस्लिम समाज के लोगों काम मिलता है और इस हिंदुओ के कावंड़ मेले से कमाई का एक अच्छा खासा श्रोत होता है।
आपको बतादें कि राजनीतिक मंचों से भले ही हिंदू-मुस्लिम नेता एक दूसरे के खिलाफ और अपनी कट्टरता को लेकर बड़े-बड़े दावे करते हों, लेकिन कासगंज जनपद की सोरों धर्मनगरी में कावड़ मेले में हिंदू मुस्लिम एकता की जो मिसाल देखने को मिलती है, वह इन नेताओं की जुबान बंद करने के लिए काफी है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि मुस्लिम-हिन्दू यहां एकता का संदेश देते रहे हैं। गंगा को अपनी कमाई का श्रोत बनाकर प्रतिवर्ष लाखों रुपये जुटा लेते हैं।
सोरों विकास खण्ड कादरवाड़ी में हिन्दू परंपरा के तहत लगने वाले श्रावन मास में कांवड़ मेले में कारीगर मुस्लिम हैं और खरीदारी करने वाले ज्यादातर हिंदू हैं। यहां कांवड़ के लिए कांच की शीशी यानि कांच की गंगाजली मुस्लिम परिवार बनाकर बेचते हैं। उन्हें यह काम विरासत में मिला है। जैसे ही कांवड़ यात्रा शुरू होती है, वैसे ही कई मुस्लिम परिवार हिन्दू भाइयों के लिए गंगाजली बनाते हैं। इस गंगाजली को कांवड में जल भरकर ले लाते हैं। मुस्लिम मजहब के लोगों ने बताया कि सैकडो वर्षो से गांव में गंगाजल भरने के लिए कांच की शीशी तैयार होती रही हैं।यह देश में कहीं नहीं तैयार की जाती ।
कावंड़ मेले में मुस्लिम समाज के कई परिवार कांच की शीशी तैयार कर एक वर्ष तक अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं।गंगा मैया सभी का बेडा पार करती हैं। जिससे उनके परिवार का पालन पौषण चलता है, लेकिन बच्चों की पढाई नही हो पाती । सरकार द्वारा मुस्लिम कारीगरों को आज तक सरकार द्वारा कोई सुविधा मुहैया नहीं मिली है।
इरफान हुसैन सिद्दीकी कांच के गंगा जली कारीगर बताते हैं कि हम गंगा जी पर कावंड लेने आते हैं भोले बाबा के भक्त उनके लिए कांच की शीशी तैयार करते हैं उनके लिए बनाते हैं हमें सरकार से कोई सुविधा नहीं मिलती ।मजदूरी करके बनाते हैं। एक साल में दो बार काम चलता है। शार्दियों में तीन महीना गर्मियों में दो महीना पूरे आँल वर्ल्ड में कांच की शीशी कहीं भी तैयार नहीं होती सिर्फ कादरवाडी गांव में ही बनाई जाती हैं। यहां गंगा मैया की कृपा है । जिससे हमे रोजगार मिलता है।
मध्य प्रदेश के मुरैना से कावड़ भरने लहरा गंगा घाट आए कावंडिये नरेंद्र रावत ने बताते हैं हम कावंड भरने आते हैं। यहां से कावंड़ भरकर ले जाते हैं और अपने भोले बाबा पर चढाते हैं।जिससे हमारी मनोकामना पूर्ण होती है। आठ वर्षों से कावड़ भरने के लिए यहां आते हैं। यहां से हमारा गांव साढे तीन सौ किलोमीटर दूर है।