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खींचतान के चलते उच्च वर्ग परिवार के अभिभावक बच्चों को परिषदीय विद्यालय में दाखिला नहीं कराते
कौशाम्बी। सरकारी परिषदीय विद्यालयों के प्रधानाध्यापक शिक्षा समिति के सचिव होते हैं लेकिन वह अपने को शिक्षा समिति का तुर्रमखां समझने लगे और शिक्षा समिति के अध्यक्ष की बातों को मानने को तैयार नहीं है जिससे परिषदीय विद्यालयों की शिक्षण व्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो रही है शिक्षा समिति के अध्यक्ष को उनके अधिकार दिए जाने चाहिए और सचिव के अतिक्रमण पर रोक लगाए जाने की जरूरत है लेकिन शिक्षा विभाग के आला अधिकारी भी अध्यापकों के इस बर्ताव पर उन पर कठोर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं जिससे परिषदीय विद्यालय के प्रधानाध्यापक और शिक्षक बेलगाम है और शिक्षा समिति के अध्यक्षों को किनारे करके परिषदीय विद्यालय के शिक्षक और प्रधानाचार्य मनमानी तरीके से परिषदीय विद्यालयों की शिक्षा का संचालन करना चाहते हैं जिसके चलते परिषदीय विद्यालयों की पूरी शिक्षा व्यवस्था चौपट हो गई है।
परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य अंधकार में दिखाई पड़ रहा है जिसके चलते उच्च वर्ग परिवार के अभिभावक अपने बच्चों को परिषदीय विद्यालय में दाखिला नहीं कराते हैं अधिकतर परिषदीय विद्यालयों में अनुशासनहीन शिक्षकों के चलते पठान-पाठन का कार्य गुणवत्ता विहीन हो गया है समय से विद्यालय नहीं खुल रहे हैं समय से शिक्षक स्कूल नहीं पहुंच रहे हैं गुणवत्तापूर्ण मिड डे मील भोजन नहीं बन रहा है फर्जी तरीके से छात्रों की उपस्थिति दर्ज कर अधिकारियों को गुमराह कर मिड डे मील योजना संचालन के लिए मिलने वाली रकम पर डाका डाला जा रहा है ताजा मामला चायल तहसील क्षेत्र के रैया देह माफ़ी गांव में देखने को मिला है।
परिषदीय विद्यालय के शिक्षक और प्रधानाध्यापक पर अंकुश लगाने के लिए शिक्षा समिति के अध्यक्ष ग्राम प्रधान ने अधिकारियों से शिकायत की देर से आने वाले विद्यालय के शिक्षक और प्रधानाचार्य को समिति के अध्यक्ष ने फटकार लगाई शासन के निर्देशों का पालन न करने वाले शिक्षकों की शिकायत शिक्षा समिति के अध्यक्ष को महंगी पड़ गई जिससे प्रधानाचार्य और शिक्षक शिक्षा समित के अध्यक्ष से अंजिश मानने लगे और शिक्षण व्यवस्था को सुधार करने विद्यालय समय से आने गुणवत्तापूर्ण भोजन बनाने की पहल करने के बजाय शिक्षा समित के अध्यक्ष और उनके पुत्र पर ही गम्भीर आरोप लगा दिया मामले की जांच कराई गई जांच पूरी होने के पूर्व ही शिक्षा समिति के अध्यक्ष और उनके पुत्र के विरुद्ध प्रधानाध्यापक और शिक्षकों की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया है यह कहां का न्याय संगत है शिक्षा समिति के अध्यक्ष के ऊपर शिक्षा व्यवस्था में व्यवधान डालने का आरोप लगाया गया है विद्यालय के समान के तोड़फोड़ का आरोप भी शिक्षा समिति के सचिव ने अध्यक्ष पर लगाया जबकि यहां पूरी तरह से निराधार था।
संविधान में शिक्षा समिति के अध्यक्ष को ही सर्वोपरि माना गया है लेकिन शिक्षा समिति के सचिव तानाशाह दिखाई पड़ रहे हैं आखिर कौशांबी में कानून व्यवस्था कहां चली गई है देखने सुनने वाले मौन है परिषदीय विद्यालय के अध्यापक मनमानी पर उतारू है जिससे पूरे जिले की परिषदीय विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था चौपट है परिषदीय विद्यालय में बनाए जाने वाले भवन समय से पूर्व ध्वस्त हो रहे हैं रंग रोगन सजावट के नाम पर मिलने वाले भारी भरकम रकम पर शिक्षा समिति के सचिव प्रधानाध्यापक द्वारा डाका डाला जा रहा है लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारी शिक्षा को चौपट करने वाले शिक्षक और प्रधानाचार्य पर कार्यवाही करते नहीं दिख रहे हैं शासन प्रशासन को इस मामले को गंभीरता से लेना होगा और शिक्षा समिति के अध्यक्षों के अधिकार को बहाल करना होगा।
शिक्षा समिति के अध्यक्ष पर आरोप लगाने वाले सचिव के पद पर तैनात शिक्षक और प्रधानाध्यापक को नैतिकता और कानून का पाठ पढ़ना होगा शिक्षा समिति के निर्देशों के अनुसार काम करने की शिक्षा समिति के सचिव प्रधानाध्यापक और शिक्षकों की जवाब देही तय करनी होगी लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है और शिक्षा समिति के अध्यक्ष पर सचिव भारी पड़ चुके हैं जहां अनुशासन खत्म होगा वही व्यवस्थाएं चौपट होगी और परिषदीय विद्यालय में नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले शिक्षकों का अनुशासन खत्म हो गया है अनुशासनहीन शिक्षको पर कठोर कार्रवाई किए जाने की जरूरत है लेकिन अनुशासनहीन हो चुके शिक्षा समिति के सचिव प्रधानाध्यापक और शिक्षक पर कब कार्यवाही होगी इसका जवाब देने वाला कोई तैयार नहीं है।
सुशील केसरवानी वरिष्ठ पत्रकार