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सवाल: मनोविज्ञान से क्या खुद को बदल पाएगी पुलिस ?
कौशांबी पुलिस लाइन में एक कार्यक्रम आयोजित कर मनोरोगी पुलिस जनों के स्वभाव में बदलाव लाने का प्रयास प्रदेश की योगी सरकार कर रही है. इस मौके पर आयोजित कार्यक्रम में मनोविज्ञान विशेषज्ञ आए और सामूहिक तौर से मनोविज्ञान पर कार्यशाला आयोजित कर उपदेश देकर चले गए. क्या सामूहिक तौर से इस उपदेश से पुलिस की मनोदशा में कोई बदलाव होगा. शायद इस सवाल का उत्तर ना में होगा.
मनोविज्ञान विशेषज्ञों को एक एक पुलिस जनों से अलग अलग मनो की स्थित समझना चाहिए और उनकी मनोदशा परिवर्तन करने का प्रयास करना चाहिए. लेकिन सवाल यह है कि पुरानी विज्ञान व्यवस्था से पुलिस चल रही है और इस मनोदशा के आयोजन के बाद क्या पुलिस बदल पाएगी और पुलिस अपने कार्यशैली में सुधार लाएगी.
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पुलिस की मनोदशा बदलने के लिए कोई भी संजीवनी पिलाएं. लेकिन उत्तरप्रदेश की पुलिस की मनोदशा बदलती नहीं दिख रही है अपनी सोच और चिंतन को पुलिस को बदलना होगा. निर्दोष सभ्य समाज के साथ बदसलूकी करने वाले पुलिस जन अपने घर पहुंचने के बाद क्या परिजनों से भी बदसलूकी करते हैं. शायद ऐसा नहीं है.
अपने घर में कोई कदाचार करें. बदसलूकी करें. तो वह मनोरोगी है. एक योजना के तहत सभ्य समाज के साथ बदसलूकी करें तो वह मनोरोगी नही कहा जा सकता है. इसके पहले मनोरोग पर कार्यशाला आयोजन करने के पूर्व ऐसे पुलिसकर्मियों को आगरा भेजकर उनकी जांच कराई जाए और मनोरोगी कार्यशाला के बजाय पहले पुलिसकर्मियों की संस्कारशाला का आयोजन किया जाए. पुलिसकर्मी आम जनमानस के साथ अच्छा व्यवहार करना सीख जाए तो इस मनोयोग कार्यशाला की जरूरत ही नहीं है.