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लखनऊ: 6 साल की मासूम को नही मिली तारीख पर तारीख, फैसला सुनाकर जज ने तोड़ी कलम
लखनऊ। जिले की विशेष पॉक्सो अदालत ने 6 साल की मासूम बच्ची के साथ दुराचार के बाद हत्या करने वाले अभियुक्त को फांसी की सजा सुनाई है। कोर्ट ने अभियुक्त पर 40 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। कोर्ट ने फैसले में कहा है कि दोषी की गर्दन में फांसी लगाकर उसे तब तक लटकाया जाए, जब तक कि उसकी मौत न हो जाए। विशेष जज ने अपने फैसले में यह भी जिक्र किया है कि यदि दोषी को फांसी की सजा नहीं दी गई तो समाज में गलत संदेश जाएगा। इसने क्रूरतम अपराध किया है।
पॉक्सो के विशेष जज अरविन्द मिश्र ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया। उन्होंने बबलू उर्फ अरफात के अपराध को दुर्लभतम से दुर्लभ करार दिया। कोर्ट ने बबलू को फांसी की सजा की पुष्टि के लिए इस मामले की समस्त पत्रावली अविलंब हाईकोर्ट को भेजने का आदेश भी दिया है। राजधानी की कोर्ट ने इस मामले में महज चार महीने सुनवाई पूरी कर निर्भया कांड के बाद गठित पॉक्सो एक्ट के मामले में पहली फांसी की सजा सुनाई है। यह बेटियों से दरिंदगी के मामले में राजधानी में सबसे कम समय में आने वाला पहला फैसला भी बताया जा रहा है।
जज ने अपने फैसले में लिखी यह बातें
जज ने 67 पेज के फैसले कहा- ''अभियुक्त बबलू उर्फ अरफात ने बेहद ही घृणित और नृशंस है। क्योंकि घटना में बच्ची के दोनों प्राइवेट पार्ट में तीन गंभीर और काफी गहरी चोंट पाई गईं हैं। बच्ची के शरीर पर 6 अन्य चोटें भी पाई गईं। हवस शांत करने के लिए उसने यह कुकर्म किया है। वह 6 साल की बच्ची को टाॅफी दिलाने के बहाने बहला-फुसलाकर ले गया था। इस घृणित अपराध को छिपाने के लिए पहले चाकू से गला रेतकर मारने का प्रयास किया। लेकिन, जब अबोध बच्ची की मौत नहीं हुई, तो उसने गला दबाकर मार डाला। बच्ची दोषी को मामू कहती थी।"
दोषी का आचरण अत्यंत क्रूर और निर्दयी प्रकृति का है
न्यायाधीश ने फैसले में कहा- "दोषी का आचरण अत्यधिक क्रूर और निर्दयी प्रकृति का था। उसके द्वारा यह घटना अत्यन्त सुनियोजित तरीके से की गई है। यदि टाॅफी नहीं दिलाता, तो संभव था कि बच्ची रोने लगती या वापस अपने घर आ सकती थी। लेकिन, घटना के दौरान मासूम बच्ची इस स्थिति में नहीं थी कि वो उसका प्रतिरोध कर सकती। अभियुक्त की इस निर्दयता ने बच्ची को ठीक ढंग से दुनिया भी नहीं देखने दी।"
दोषी को मौत की सजा न मिलने से समाज में गलत संदेश जाएगा
विशेष जज ने कहा कि "जिस तरह का अपराध अभियुक्त ने किया है, उसकी सभ्य समाज में कल्पना भी नहीं की जा सकती। यदि इस अपराध के लिए उसे मृत्यु दंड नहीं दिया गया, तो इसका समाज पर व्यापक रूप से गलत प्रभाव पड़ेगा। ऐसी ही घटना की वजह से समाज में लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों को स्वतंत्रतापूर्वक खेलने और व्यवहार करने की आजादी नहीं दे पा रहे हैं। जिसकी वजह से इस देश की नई पीढ़ी अर्थात छोटे-छोटे बच्चों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पा रहा है। क्योंकि वो खुलकर स्वतंत्र माहौल में अपना बचपन व्यतीत नहीं कर पा रहे हैं।"
फांसी की सजा देने की मांग की गई थी
इससे पहले सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से अभियुक्त बबलू उर्फ अरफात को फांसी की सजा देने की मांग की गई। अपर जिला शासकीय अधिवक्ता नवीन त्रिपाठी और विशेष लोक अभियोजक अभिषेक उपाध्याय का तर्क था कि अभियुक्त का अपराध सामान्य अपराध नहीं है।
फैसला सुनाकर जज ने तोड़ी कलम
कोर्ट ने सजा सुनाते हुए आरोपी को किसी प्रकार की रियायत देने से इनकार करते हुए कहा कि दिल्ली के निर्भया कांड में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के मृत्युदंड की पुष्टि की है। निर्भया कांड के बाद देश की जनता के द्वारा दुराचार के मामले में आरोपियो को फांसी दिए जाने का प्रावधान करने की मांग को लेकर बड़े स्तर पर जान आंदोलन चलाया गया था। जिसके फलस्वरूप यौन अपराधों के लिए कानून में संशोधन करते हुए 12 वर्ष से कम आयु की बालिका के साथ बलात्कार करने पर मृत्युदंड दिए जाने का प्राविधान किया गया।
कोर्ट ने अपने आदेश में हैदराबाद की घटना में बलात्कार और हत्या कर शव जलाने की घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि इस घटना के बाद भी बलात्कारियों को मृत्युदंड दिए जाने की मांग हुई थी जिससे स्पष्ट है कि बच्ची के साथ दुराचार और हत्या के मामले में समाज भी आरोपियों को मृत्युदंड दिए जाने का पक्षधर है जबकि इस मामले में आरोपी ने 6 साल की बच्ची के साथ दुराचार के बाद निर्दयता से उसकी हत्या की है। कोर्ट ने आरोपी को गर्दन में फंसी लगाकर तब तक लटकाने का आदेश दिया जब तक अरफात उर्फ बबलू की मौत न हो जाये इसके बाद जज ने अपनी कलम को तोड़ दिया।
छह दिन में चार्जशीट, चार महीने में सजा
बतादें कि 15 सितंबर, 2019 को बच्ची के पिता ने थाना सआदतगंज में एफआईआर दर्ज कराई थी। पिता के मुताबिक शाम 5 बजे उसके पास चाचा का फोन आया कि उसकी बच्ची नहीं मिल रही है। वह घर आकर बच्ची को ढूढंने लगा तो पता चला कि बच्ची को आखिरी बार बबलू के साथ देखा गया। वह पुलिस के साथ बबलू के घर गया, तो उसके घर पर बिस्तर के नीचे बच्ची का गला रेता हुआ शव मिला। डॉक्टरों ने बेटी को मृत घोषित कर दिया। विवेचना में अभियुक्त बबलू के द्वारा बच्ची के साथ बलात्कार व हत्या की पुष्टि हुई।
पुलिस ने इस मामले की विवेचना के बाद महज 6 दिन के अंदर 21 सितंबर को बबलू के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी। जिसके चार दिन बाद 25 सितंबर को कोर्ट ने संज्ञान ले लिया और 22 अक्तूबर को आरोपी के ऊपर आरोप तय करते हुए गवाही शुरू करा दी। वहीं इसी बीच एडीसीपी पश्चिम विकासचंद्र त्रिपाठी के निर्देशन में पुलिस टीम ने 11 अक्तूबर को आरोपी के खिलाफ रासुका भी लगा दिया। अभियोजन ने इस मामले में कुल 14 गवाहों की गवाही करवाई। कोर्ट ने मामले में चार महीने के अंदर सुनवाई पूरी करते हुए आरोपी को हत्या के मामले में मृत्युदंड और 20 हजार रुपये जुर्माना, पॉक्सो एक्ट और मासूम के साथ दुष्कर्म के आरोप में मृत्युदंड, मासूम को अगवा करने के आरोप में आजीवन कारावास और 20 हजार रुपये के जुर्माने से दंडित किया है।