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- तो क्या पिछड़ों को लेकर...
तो क्या पिछड़ों को लेकर भाजपा के दांत खाने व दिखाने के अलग अलग हैं.....
भारतीय जनता पार्टी के नेता या देश के प्रधानमंत्री भले ही खुद को ओबीसी हितेषी बताते हों लेकिन कल पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर द्वारा लिखे गए इस्तीफे ने एक बार फिर साफ कर दिया कि 54 प्रतिशत वोट रखने वाले ओबीसी के लिए भाजपा व उसकी सरकार के खाने व दिखाने के दांत अलग अलग है।
उल्लेख करना जरूरी है कि उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने से पहले भाजपा के न सिर्फ राज्य स्तरीय नेता ओमप्रकाश राजभर का सम्मान करते थे बल्कि सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू करने के साथ-साथ पिछड़े वर्ग से आने वाले मंत्रियों को भी विशेष तरजीह मिलने की उम्मीद की जाती थी। जैसे ही उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने शपथ ली वैसे ही 327 सीटों की गलतफहमी में ओमप्रकाश राजभर जैसे नेताओं व ओबीसी मतदाताओं की अनदेखी शुरू करके पहले तो राजभर को पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्रालय जैसा महत्वहीन विभाग दिया गया। उसके बावजूद छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति अथवा आरक्षण का वर्गीकरण हर जगह उनकी मांग को अनदेखा किया गया। जिसका दर्द उन्होंने खुद मुख्यमंत्री को इस्तीफा सौंपने जाने पर दिखाया।
इत्तेफाक से मुख्यमंत्री मौजूद ना होने के कारण राजभर इस्तीफा नहीं दे सके, राजभर का कहना था कि भाजपा सरकार पिछड़े वर्ग से हर मौके पर धोखा कर रही है। मैं पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री हूं और पिछड़ा वर्ग आयोग में हुई नियुक्तियों में मेरा एक भी व्यक्ति नहीं रखा गया और ना ही मुझसे मशवरा लिया गया है। चाहे सामान्य जाति का हो या अल्पसंख्यक अनुसूचित जाति का हो या अनुसूचित जाति-जनजाति का छात्र अथवा छात्रा सभी को 58 - 58 हजार शुल्क प्रतिपूर्ति की जा रही है और पिछड़ा वर्ग के छात्र छात्राओं के लिए आठ दस हजार से ज्यादा नहीं है, ना ही सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू की जा रही है ऐसी स्थिति में मैं ओबीसी को क्या जवाब दूं, इसलिए मंत्री पद मुख्यमंत्री जी को सौंपने आया हूं वह खुद पिछड़े वर्ग के लोगों को जवाब देंगे।
जानकारों की माने तो केवल राजभर ही नहीं स्वामी प्रसाद मौर्य के पास श्रम विभाग है लेकिन 5 दिन पहले बनाई गई श्रमिक कल्याण परिषद हो या सन कर्मकार बोर्ड एक दो को छोड़ दें तो पूरी कमेटी को स्वामी प्रसाद मौर्य की सहमति बिना नियुक्त किया गया है। यही हाल सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह का बताया जा रहा है जो भाजपा के पुराने नेता हैं लेकिन कई बार मुख्यमंत्री कार्यालय ने उनके द्वारा स्थानांतरण को बनाई गई इंजीनियरों की सूची रोक दी।
जानकार बताते हैं कि यही हाल लोक निर्माण विभाग का है जहां स्थानांतरण को सूची बनाते समय सौ बार सोचना पड़ता होगा और कभी कभी तो उनका नाम भी सरकारी प्रेस नोट से हटा दिया जाता है। कुल मिलाकर मोदी जी या अमित शाह जो भी कहते हैं लेकिन सरकार या भाजपा में ओबीसी की अनदेखी की जाती है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। सत्ता का अहंकार और उपचुनाव की तरह भाजपा को भारी पड़ सकता है कुल मिलाकर कोई माने ना माने लेकिन ओमप्रकाश राजभर की माने तो भाजपा की सोच ओबीसी मतदाताओं की तो छोड़िए नेताओं के प्रति भी सही नहीं दिखाई पड़ रही है।
जिसको लेकर ओमप्रकाश राजभर जैसे जमीनी नेताओं में गहरा रोष है फर्क सिर्फ इतना है कि ओमप्रकाश राजभर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते अपनी बात खुले मंच से कह डालते हैं लेकिन अन्य ओबीसी के मंत्री पार्टी की नीतियों से बंधे होने के कारण खुलकर नहीं कह पाते और तो और भाजपा का ओबीसी प्रेम माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की नियुक्ति में देखा गया था और अभी सूचना आयुक्त की नियुक्ति में देखा जा सकता है। ऐसी स्थिति में ओबीसी नेताओं से जुड़े पिछड़े वर्ग के लोग भाजपा का साथ छोड़ सकते हैं जिसका असर 2019 में देखने को मिल सकता है।