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लोकसभा संग्राम 80– यूपी में बसपा-सपा का गठबंधन बन रहा है मोदी की राह का सबसे बड़ा रोड़ा
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। जैसे ही चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनावों की तारीख़ों का एलान किया वैसे ही मोदी की भाजपा ने इस बात को लेकर ज़ोरदार तरीक़े से मंथन शुरू कर दिया है कि यूपी की संभावित हार से कैसे बचा जाए और उसके लिए क्या किया जाए। वैसे तो वो पहले से ही इस पर मंथन कर रही थी इसी के चलते उसका ये प्रयास था कि किसी भी तरह बसपा और सपा के बीच गठबंधन न हो इसके लिए उन्होने सरकारी तोते को भी दौड़ाया परन्तु कोई सफलता नही मिली और आख़िरकार गठबंधन हो ही गया बसपा और सपा के साथ पश्चिम के नेता चौधरी अजित सिंह के नेतृत्व वाला रालोद भी जुड़ गया जिसकी वजह से मोदी की भाजपा की नींद उड़ी हुई है उसके रणनीतिकारों के पास इन तीनों दलों के गठजोड़ की कोई काट नही मिल पा रही है और यूपी के लोगों पर गठबंधन का जादू सर चढ़कर बोल रहा है ऐसा दिखाई भी दे रहा है।
मोदी की भाजपा के रणनीतिकारों को ये भय सता रहा है कि अगर यूपी में सीट नही मिली तो केन्द्र में दोबारा सरकार बना पाना आसान नही होगा इसकी वजह पूरे देश से मोदी की भाजपा इतनी सीट नही ला पा रही है जितनी वो यहाँ गठबंधन की वजह से हार रही है ऐसा चुनाव से पूर्व महसूस दे रहा है कि मोदी की भाजपा यूपी में मात्र बीस से पच्चीस सीट ही जीतने में कामयाब हो सकती है और गठबंधन को 50 से 55 सीट मिलती दिख रही है क्योंकि गठबंधन के पास थोक में वोट माना जा रहा है जैसे दलित ,मुसलमान ,यादव व जाट वोटों को माना जा रहा है इससे हटकर भी पिछड़ी जातियों के जुड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है वैसे जाट जाति पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही मानी जाती है लेकिन पश्चिम में काफ़ी असर अंदाज समझी जाती है गठबंधन की स्ट्रेटेजी के चलते राष्ट्रीय लोकदल के नेता छोटे चौधरी के नाम से मशहूर चौधरी अजित सिंह को मुस्लिम बाहुल सीट मुज़फ्फरनगर से लड़ाया जा रहा है जहाँ मुसलमान वोटों की संख्या छह लाख पचास हज़ार है और दलितों की संख्या तीन लाख से अधिक है वही जाट जाति के वोटों की संख्या भी तीन लाख से अधिक है इस हिसाब से चौधरी अजित सिंह सबसे मजबूत प्रत्याशी के तौर पर देखे जा रहे है।यही हाल पश्चिम की आठ सीटों पर गठबंधन के प्रत्याशियों का है जहाँ पहले चरण में मतदान होना है उनमें सहारनपुर , बागपत , बिजनौर , मुज़फ़्फ़रनगर , कैराना , मेरठ , ग़ाज़ियाबाद व गौतमबुद्ध नगर ये वो सीटें है जहाँ गठबंधन के प्रत्याशियों के पास मुसलमानों ,दलितों व जाटों के वोटों की भरमार है अगर ये सब गठबंधन पर चढ़ गया जैसा माना भी जा रहा है और दिखाई भी दे रहा है तो मोदी की भाजपा को इन सीटों में से एक सीट भी मिलना मुश्किल हो जाएगी।
जहाँ तक मुसलमान और दलितों का सवाल है उसमें कोई टूट नज़र नही आ रही है और वह बड़ी शिद्दत से मोदी की भाजपा को यूपी में हराकर केन्द्र में उसकी सरकार बनने से रोकना चाहता है उसकी सोच सही भी है अगर मोदी की भाजपा यूपी में हारती है तो फिर केन्द्र में एक बार फिर मोदी सरकार बनना मुश्किल हो जाएगा क्यों जितनी सीट वह यूपी में हार रही है पूरे देश से भी वह इतनी सीट नही जीत के ला सकती है इसी लिए यूपी ही बन रहा है मोदी की राह में सबसे बड़ा रोड़ा इस रोड़े में दलितों और मुसलमानों , यादवों व जाटों की बड़ी भूमिका रहने वाली है इनकी एकजुटता ही मोदी के सपने को चकनाचूर करने वाली साबित हो सकती है जिसकी संभावना ज़्यादा है अब यह तो आने वाली 11 अप्रैल में मतदान के दिन और 23 मई को मतगणना के बाद तय होगा कि मोदी की भाजपा के खिलाफ विपक्ष की स्ट्रेटेजी कामयाब रहेगी या मोदी की भाजपा विपक्ष की स्ट्रेटेजी को भेदने में कामयाब रहती है जैसे मुसलमानों के वोटों में बिखराव कराकर अगर कांग्रेस गठबंधन से बाहर रहती है तो जैसे अभी तक है और बाहर ही रहने की संभावना लग रही है तो कांग्रेस उसमें मोदी की भाजपा की मदद करती दिखाई देगी।
वैसे मुसलमान कांग्रेस के उन तलवे चाटूओ की बात को सुनता नही दिख रहा और वह कांग्रेस के नेताओं की दलीलों को काट रहा है कि कांग्रेस के पास मुसलमान के अलावा वोट नही है और अकेले मुसलमान से चुनाव नही जीता जाता गठबंधन के पास दलितों का वोट है उसकी गिनती ही कम से कम तीन लाख से शुरू होगी और जब मुसलमान का वोट मिल जाएगा तो ये आँकड़ा पाँच से छह लाख हो जाएगा इस लिए गठबंधन ही मोदी की भाजपा को हराने में सक्षम है।
सियासी परिदृश्य में ऐसा कुछ नज़र नही आ रहा है कि गठबंधन का वोट बिखर रहा हो हमने कांग्रेस के नेताओं से ये बात जानने की कोशिश की कि गठबंधन में शामिल नही होने की वजह से कांग्रेस क्या करेगी तो यह बात निकलकर आई कि ये बात सच है कि हम जीतने नही लेकिन गठबंधन को हरा तो देंगे ही इसका मतलब हुआ कांग्रेस की यूपी में वोट कटवा की स्ट्रेटेजी है इस पर मुस्लिम सियासत के जानकारों का कहना है कि जनता को यह बात समझनी होगी कि हमें क्या करना चाहिए वैसे ये बात एक बार नही कई बार साबित हुई है कि ऐसे नेता चुनाव के बाद ये कहते है कि हमने अपने वजूद की लडाई लड़ी है जिसमें हम कामयाब रहे है इनकी नीति और नीयत ठीक नही होती है इस लिए ऐसे नेताओं से मुसलमानों को सावधान रहने की ज़रूरत है नही तो वक़्त हाथ से निकल जाएगा तो अफ़सोस के सिवा कुछ नही बचेगा इनमें ऐसे भी नेता शामिल है जो मुसलमानों के नाम पर अपना सियासी रोज़गार चलाते है जबकि मुसलमानों के गंभीर मसलों से उनका कोई सरोकार नही रहता है।