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- आपदा से जंग के लिये...
- ताकि कोरोना जैसी किसी भी महामारी, अकाल या युद्ध आदि आपदा के समय एक साथ तुरन्त ही जंग में उतर सके पूरा देश
- यदि हमारे पास होगा इसका एक सेंट्रल कमांड तो आपदा की आहट भांप कर बिना समय गंवाए की जा सकेगी लड़ने की तैयारी
- कोरोना की आपदा के समय हुई गलतियां ढूंढ कर खुद ही करना होगा ईमानदारी से आत्ममंथन, जिससे मिलेंगे अगली किसी भी आपदा में जीत के सूत्र
कोरोना हमारे लिए एक बहुत बड़ा सबक भी लेकर आया है... और वह सबक यह है कि महामारी, अकाल, प्राकृतिक आपदा, युद्ध आदि स्थिति से निपटने के लिए देश में एक आपदा कंट्रोल रूम या विभाग बनाया जाए ताकि ऐसी किसी भी आपदा के समय देश तुरंत ही मुकाबले के लिए तैयार हो सके। किस स्थिति से कैसे निपटना है और क्या क्या कदम उठाए जाने चाहिए, यह सब प्लानिंग और उसको लागू किये जाने का तरीका सोचने का जिम्मा इसी विभाग का होना चाहिए।
यही नहीं, जिस तरह हम अपने आसपास के देशों में इस महामारी के विकराल रूप धारण कर लेने के बावजूद समय से नहीं चेत पाए, उसके लिए इसी विभाग को यह पावर और जिम्मा भी दिया जाना चाहिए कि ऐसे किसी भी आसन्न संकट को पहचान कर देश में जल्द से जल्द उस बाबत कदम उठाए। फिलहाल कोरोना से हमारी लड़ाई बेहद मुश्किल दौर में है क्योंकि यह लॉकडाउन जहां हमें कोरोना से बचा रहा है, वहीं हमें आर्थिक रूप से मार भी रहा है।
ऐसे किसी अलार्म / अलर्ट सिस्टम के न होने और उस पर प्लानिंग के साथ एक्शन लेने के लिए जरूरी तंत्र की कमी से ही आज हम बहुत बड़ी मुसीबत में घिर चुके हैं। इसलिए यही प्रार्थना है कि ईश्वर करे कि हम अगले एक से दो महीने के भीतर पूरे देश में कोरोना के केसेज की लगातार बढ़ती संख्या को रोकने में कामयाब हो जाएं।
उधर कोरोना, इधर आर्थिक बर्बादी के इस दोराहे पर खड़े होकर हम जब थोड़ा पीछे पलटकर देखते हैं तो लगता है कि काश हम थोड़ा पहले अलर्ट हो जाते या मजबूत प्लानिंग के साथ कोरोना से निपटते तो आज सामने नजर आ रहीं बहुत सी मुश्किलों से तो बच ही जाते....
बहरहाल, कोरोना से लड़ाई जारी है और साथ ही जारी है हमारी माथापच्ची भी कि आखिर हमसे क्या गलती हुई। ताकि इस आपदा में ही नहीं बल्कि भविष्य में किसी भी आपदा के लिए हम किस - किस बातों पर सावधान रहें। मीडिया पर नजर डालते हैं तो वह कोरोना से आई सारी मुसीबत या इसके फैलने की सारी जिम्मेदारी जमातियों पर ही डालता दिख रहा है। जमातियों की जिम्मेदारी है, यह हर कोई मान भी रहा है मगर और भी बहुत सी गलतियां हमने इस आपदा के पहले और दौरान की हैं, जिन्हें जमातियों के साथ- साथ ही देश की मौजूदा मुसीबतों का जिम्मेदार माना जाना चाहिए। वरना हर बार हमें जमातियों की तरह हर आपदा में एक नया बकरा ही ढूंढना पड़ेगा। आइए देखते हैं कि हमारी क्या गलतियां थीं या हमने कोरोना में ऐसा क्या काम नहीं किया, जिसके चलते आज हम बर्बादी के इस दोराहे पर खड़े हैं-
- दुनियाभर के बाकी देशों की तरह ज्यादा से ज्यादा टेस्ट न करना, इतनी विशाल आबादी के बावजूद हमारा टेस्ट औसत दुनिया में सबसे फिसड्डी देशों में से एक रहा है
- सोशल मीडिया और मीडिया के जरिये मिली जानकारी के मुताबिक, देश के कई हिस्सों में लक्षण से ग्रसित कई लोगों की भरसक कोशिश के बावजूद उनका टेस्ट नहीं किया जाना या बेहद देर से किया जाना
- टेस्ट का फोकस केवल जमातियों और उनके कॉन्टैक्ट में आये लोगों पर करना और जनवरी के बाद से विदेशों से आये लाखों लोगों का आइसोलेशन, क्वारन्टीन या एयरपोर्ट पर अथवा बाद में ट्रैक करके टेस्ट नहीं किया जाना
- कोरोना ग्रसित लोगों या उनके संपर्क में आये लोगों के क्वारन्टीन करने या आइसोलेशन करने में चूक या उसके इंतजाम में लापरवाही किया जाना
- गंभीर दशा में पहुंच जाने वाले मरीजों के लिए बड़ी तादाद में ICU और वेंटिलेटर आदि का इंतजाम न कर पाना
- फ्रंट पर जाकर लड़ रहे मेडिकल स्टाफ को पर्याप्त सुरक्षा किट न मुहैया करा पाना
- कोरोना के मरीज भारत में बढ़ते जाने के बावजूद लॉकडाउन जनवरी या फरवरी में न करना और देशभर नमस्ते ट्रम्प जैसे सामूहिक राजनीतिक, धार्मिक आदि कार्यक्रमों पर रोक न लगाना
- लॉकडाउन बिना किसी प्लानिंग के महज चार घंटे के अंतराल पर करने के कारण राशन जमा करने के लिए बाजारों में मची आपाधापी और लाखों की भीड़ जुटने से न रोक पाना
- देशभर के हर बड़े औद्योगिक/ कमर्शियल शहर या प्रान्त में काम करने वाले श्रमिकों , टूरिस्ट, छात्र- छात्राओं या अन्य अप्रवासियों के अपने अपने घरों तक पहुंचने भर का समय या योजना अथवा जो जहां है , वही रहकर अपना पेट भर सके, इसकी पूरी योजना पहले से न बनाना
- कोरोना के अलावा, अन्य बीमारियों से ग्रसित लोगों या रेगुलर इलाज करा रहे लोगों के लिए देश में अलग से मेडिकल सुविधाओं की प्लानिंग न करना
- घरों में बंद लोगों तक जरूरी राशन आदि सामान पहुंचाने के लिये जरूरी सप्लाई लाइन और डोर टू डोर सप्लाई के तंत्र की प्लानिंग पहले न करना
- सभी तरह के कर्ज की EMI कम से कम छह माह तक नहीं टालना और इस छह माह की अवधि का ब्याज माफ न करना
- सभी राज्य सरकारों से अपने अपने यहाँ लॉक डाउन की अवधि में बिजली के बिल माफ न करवाना, मकान/दुकान/आफिस आदि के किराए माफ न कराना
-छोटे मझोले उद्योगों के कर्मचारियों व श्रमिकों को लॉक डाउन की अवधि तक सरकार की तरफ से हर महीने आर्थिक मदद सीधे उनके एकाउंट में न पहुंचाना
- बड़े उद्योगों के लिए, बैंकों के लिए या अन्य सेक्टरों के लिए आर्थिक पैकेज आदि की प्लानिंग न करना
- आवश्यक वस्तुओं के लिए जरूरी औद्योगिक उत्पादन एवं वितरण के तंत्र की प्लानिंग पहले न करना
- अकेले रह रहे बुजुर्गों, असहाय स्त्रियों के लिए किसी तरह की मदद या अन्य जरूरत के लिए विशेष हेल्पलाइन न बनाना
ऊपर जिन गलतियों पर मैंने ध्यान दिलाया है, इसमें जमाती शामिल नहीं हैं क्योंकि मीडिया और सोशल मीडिया तो पहले से ही इस आपदा की हर बर्बादी का जिम्मेदार एकमात्र उन्हें ही मान ही रहा है। जबकि मैंने तो यह बताया है कि जमाती जिम्मेदार हैं तो भी उनके साथ साथ खुद हमारी क्या गलतियां रही हैं.... और गलतियां हमसे सिर्फ इतनी ही नहीं हुई होंगी बल्कि तमाम अन्य क्षेत्रों में हमसे और भी गलतियां हुई होगीं। भविष्य में हम ये गलतियां न करें और हमारी लड़ाई पूरी प्लानिंग के साथ हो तो इसके लिए हमें अपनी सारी गलतियां खुद ही ढूंढ कर उस पर गंभीरता से आत्ममंथन करना होगा....फिर एक कंट्रोल रूम या विभाग बनाकर इन गलतियों से इतर एक चाक चौबंद सिस्टम बनाकर हमें हर आसन्न संकट के लिए खुद को तैयार भी करना होगा....