लखनऊ

यूपी में नए डीजीपी के चयन से पहले हुआ विवाद!

Shiv Kumar Mishra
23 Jan 2020 9:14 AM GMT
यूपी में नए डीजीपी के चयन से पहले हुआ विवाद!
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नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश में नौकरशाही में चल रहा विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है,उत्तर प्रदेश में डीजीपी के चयन के लेकर मामला कोर्ट पहुंच गया है. 1986 बैच के आईपीएस अधिकारी जवाहर लाल त्रिपाठी ने संघ लोक सेवा आयोग को भेजी गई लिस्ट में अपने नाम की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. ये पहला मामला है जब उत्तर प्रदेश में डीजीपी के चयन को लेकर मामला कार्ट पहुंच गया है.

क्या है पूरा विवाद

उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओपी सिंह का कार्यकाल 31 जनवरी को समाप्त हो रहा है, डीजीपी ओपी सिंह खुद अपने सेवा विस्तार की खबरों का खंडन कर चुके हैं. इसके पहले के डीजीपी सुलखान सिंह को सरकार ने तीन महीने का सेवा विस्तार दिया था लेकिन वर्तमान डीजीपी ओपी सिंह को सेवा विस्तार न मिलने के बाद अब उत्तर प्रदेश में नए डीजी की तलाश तेज हो गई है. सूत्रों की मानें तो सरकार ने अपने पांच अधिकारियों के नाम का एक पैनल संघ लोक सेवा आयोग को भेजा है. इन अफसरों के पैनल पर संघ लोक सेवा आयोग की हां के बाद सरकार इनमें से नया डीजीपी चुनेगी. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद राज्य सरकारों को अपना डीजीपी चुनने से पहले वरिष्ठताक्रम को देखते हुए संघ लोक सेवा आयोग से स्वीकृति लेनी पड़ेती है. हालांकि कुछ राज्य अभी भी इस आदेश को लागू नहीं कर रहे हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने नए डीजीपी के चुनाव में इस बार संघ लोक सेवा आयोग को अपने अधिकारियों का पैनल भेजा है. इसकी चर्चा तब सामने आई जब डीजी स्तर के एक अधिकारी जवाहर लाल त्रिपाठी ने अपना नाम ना भेजे जाने को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और इसके बाद नए डीजीपी का पूरा चयन विवादों में आ गया है.

उत्तर प्रदेश में नौकरशाही का स्वरूप इतना बड़ा है कि जब भी इसके मुखिया का चुनाव होता है तो विवाद तेज हो जाता है चाहे वो चयन मुख्य सचिव का हो या डीजीपी का. मुख्य सचिव का पद तो पिछले पांच महीने से कार्यवाहक मुख्य सचिव आर के तिवारी के पास है. इन दोनों पदों पर सरकार हमेशा अपने विश्वसनीय अधिकारी को बिठाना चाहती है जिसके कारण इसके चयन के पहले राजनीतिक उठापटक भी होती रहती है. इसके पहले वर्ष 2018 में ओपी सिंह को डीजीपी बनाने के समय भी यह फैसला अंतिम समय में हुआ था, और केंद्र सरकार ने तब सीआईएसएफ के डीजी रहे ओपी सिंह को रिलीव करने में करीब 50 दिन का वक्त दिया था. ऐसे में सरकार इस बार नए डीजीपी का चुनाव समय रहते कर लेना चाहती है. शायद इसीलिए सरकार ने समय रहते ही अपने अधिकारियों का पैनल संघ लोक सेवा आयोग को भेज दिया है.

पैनल में किसका-किसका नाम

डीजीपी के चयन का विवाद उस समय शुरू हुआ जब डीजीपी स्तर के अधिकारी जवाहर लाल त्रिपाठी ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई और कहा कि उनका नाम राज्य सरकार ने यूपीएससी के पैनल में नहीं भेजा है, जबकि वरिष्ठता क्रम के हिसाब से उनका नाम जाना चाहिए था. हालांकि राज्य सरकार ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया है. सूत्रों की मानें तो उत्तर प्रदेश सरकार ने जिन पांच अधिकारियों के नाम पैनल में भेजे हैं उसमें 1985 बैच के हितेश अवस्थी, 1986 बैच के सुजानवीर सिंह, 1987 बैच के आरपी सिंह और 1988 बैच के आरके विश्वकर्मा और आनंद कुमार का नाम शामिल है.

कैसे तय हुए पैनल में नाम

उत्तर प्रदेश के आईपीएस अधिकारियों की वरिष्ठता सूची को देखें तो वर्तमान में 18 अधिकारी डीजीपी वेतनमान में हैं. इनमें से तीन अधिकारी- वर्तमान डीजीपी ओपी सिंह, वर्तमान डीजी इंटेलिजेंस भावेश कुमार सिंह और और डीजी विशेष जांच महेंद्र मोदी 31 जनवरी को रिटायर हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार डीजी बनने वाले अधिकारी के पास कम से कम छह महीने का कार्यकाल बचा होना चाहिए, ऐसे में पूर्व डीजीपी जावीद अहमद, डीजी सीबीसीआईडी विरेंद्र कुमार, डीजी मानवाधिकार डी लुकारत्नम 31 मार्च को रिटायर हो रहे हैं, यानी इन 18 अधिकारियों में से तीन इसी महीने रिटायर हो रहे हैं जबकि तीन अधिकारी मार्च में रिटायर हो रहे हैं. डीजीपी ओपी सिंह के रिटायर होन के बाद सबसे वरिष्ठ अधिकारी एपी माहेश्वरी अभी-अभी डीजी सीआरपीएफ बनाए गए हैं, 1985 बैच के अरुण कुमार रेलवे सुरक्षा बल के महानिदेशक हैं, जबकि 1986 बैच के नासिर कमाल बीएसएफ डीजी स्तर पर तैनात हैं. स्पष्ट है कि वरिष्ठता सूची के 18 अफसरों में से नौ अपने आप रेस से बाहर हो गए हैं क्योंकि सरकार ने केंद्र में तैनात किसी अधिकारी को वापस बुलाने के लिए अभी पत्र नहीं भेजा है.

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