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नियमित होने की आशा में रोजाना होती है शिक्षा मित्रों की मौतें, सरकार चुपचाप देख रही मौतों का तमाशा
उत्तर प्रदेश में शिक्षा मित्रों की हालत बड़ी दयनीय होती जा रही है। इस हालत के लिए शिक्षा मित्र किसको जिम्मेदार माने। क्योंकि समायोजन होने के बाद शिक्षा मित्र के परिववरों में खुशी की लहर दौड़ गई थी जो महज एक बिजली के झटके की तरह वापस चली गई, फाल्ट इतना बड़ा था कि आज तक उसका श्रोत ही नहीं मिल रहा है कि फाल्ट हुआ कैसे था जबकि जो काम वो तब कर रहा था आज भी कर रहा है।
प्रदेश में अब तक 8 हजार शिक्षा मित्रों की मौत की बात शिक्षा मित्रों के द्वारा बताई जा रही है। इस आँकड़े को लेकर स्पेशल कवरेज न्यूज जिम्मेदारी नहीं लेता है। लेकन लगातार हो रहे इन मौतों की ट्वीट ये साबित जरूर करते है कि मौतें रुक नहीं रही है। बीते 11 मार्च से अगर बात करें तो अब तक आधा दर्जन से ज्यादा मौतें हो चुकी है। ये मौतें हार्ट अटैक या बीमारी के चलते हो रही है जहां इलाज के लिए पैसा नहीं है।
न तो शिक्षा मित्र को इलाज के लिए कोई सुविधा मिलती है। अगर इनका एपीएफ भी कट जाता समय से तो कम से कम इनके इलाज का रास्ता खुल जाता। और मौत होने पर राहत राशि भी मिल जाती। लेकिन सरकार चाहे मायावती की रही या मुलायम सिंह यादव की सबने इन्हे केवल ठगा, बाद में अखिलेश यादव सरकार ने इनको 40000 हजार का वेतन देकर समायोजन किया। जिस प्र सुप्रीम कोर्ट ने इन्हे अयोग्य घोषित करते हुए इन्हे मूल पद शिक्षा मित्र पर भेज दिया।
अब अगर ये अयोग्य थे तो सरकार पिछले 20 वर्ष से अयोग्य शिक्षकों से प्राथमिक स्कूलों में करोड़ों बच्चों का भविष्य क्यों बरबाद कर चुकी है और लगातार बरबाद कर रही है। अब जब सरकार इन्हे योग्य अध्यापक मानकर विधानसभा में बात करती है तो फिर इनके साथ भेदभाव करने का नाटक क्यों करती है।
सरकार को इनकी मौतों प्र अफसोस जाहीर करते हुए इन्हे एक सम्मान जनक वेतन देते हुए इनके परिवार की सुरक्षित करने की गारंटी लेनी चाहिए। उत्तर प्रदेश के चारों और बसे प्रदेशों में शिक्षा मित्रों का मानदेय वेतन में तब्दील करते हुए 30000 हजार से 40000 हजार तक पा रहे है। जबकि राजस्थान सरकार ने 50000 हजार से ज्यादा वेतन देने की बात कही है। फिर यूपी में तो मौतें भी हो रही है तो सरकार को गंभीरता दिखाते हुए शिक्षा मित्रों की मांग मान लेनी चाहिए।