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- क्या अजीत सिंह भी...
माजिद अली खान राजनीतिक संपादक
राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन में शामिल हो गया है और उसे तीन सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। राष्ट्रीय लोकदल जाट राजनीति करने के तौर पर जानी जाती है और पार्टी के अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह देश में जाटों के सबसे बड़े नेता के रूप में पहचान रखते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत के मालिक उनके पुत्र अजीत सिंह और पौत्र जयंत चौधरी ने जाट राजनीति को ज़िंदा रखते हुए अपना अस्तित्व बनाए रखा। रालोद की राजनीति सिर्फ जाटों के सहारे ही आगे नहीं बढ़ी बल्कि मुसलमानो का बड़ा सहयोग इस पार्टी को हमेशा से मिलता रहा। चौधरी चरण सिंह भी जाट मुस्लिम एकता के सहारे बहुत मजबूत नेता के रूप में स्थापित हुए थे।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ बन रहे गठबंधन में रालोद भी शामिल हो चुका है। तीन सीटों पर लोकदल के उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगे। इनमें दो सीटों पर तो चौधरी अजीत सिंह और जयंत चौधरी का लड़ना तय है लेकिन तीसरी सीट पर अभी कोई नाम फाइनल नहीं है। मुस्लिम तबका रालोद के ऊपर नज़र रखकर यह देख रहा है कि क्या अजीत सिंह किसी मुसलमान को अपना प्रत्याशी बनाते हैं या नहीं। वर्तमान लोकसभा में मोदी लहर और मुजफ्फरनगर दंगों के चलते रालोद का कोई सांसद नहीं जीत पाया और पार्टी के वजूद पर ही संकट खड़ा हो गया। लेकिन कैराना के मध्यवधि चुनाव में लोकदल के टिकट पर मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम ने जीत हासिल की और लोकदल के वजूद को बचा लिया। मुसलमानो के आधार पर फिर इस पार्टी को संजीवनी मिल गई।
मुसलमानो का कहना है कि चौधरी अजीत सिंह और जयंत चौधरी को मुसलमानो से बचना नहीं चाहिए बल्कि तीसरी सीट पर किसी मुसलमान को चुनाव लड़ाना चाहिए। राष्ट्रीय लोकदल के पास शाहिद सिद्दीकी जैसे नाम है ऐसे ही बागपत ज़िला में प्रोफेसर लुकमान खां और शामली में अशरफ अली खां जैसे नाम हैं जिन्हें उम्मीदवार बनाया जा सकता है। देखना यह है कि क्या रालोद भी मुसलमानो से दामन बचाएगा या मुसलमानो को हिस्सेदारी देगा।