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लोकसभा संग्राम 68– यूपी में प्रियंका गांधी और कांग्रेस के लिए करो या मरो की स्तिथि बनी ये सीटें जिनको अच्छा मानती है पार्टी
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2019 का बिगुल लगभग बज चुका है सभी सियासी दल अपने-अपने पक्ष में माहोल बनाने में जुट गए है यूपी में बसपा और सपा के बीच हुए गठबंधन ने जहाँ मोदी की भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर दी वही कांग्रेस के लिए भी करो या मरो की स्तिथि पैदा कर दी।2014 के लोकसभा संग्राम में मोदी की भाजपा ने झूट की बुनियाद पर जो सियासी महल तैयार किया था जिसकी वजह से सभी सियासी दलों के सियासी महल भरभरा कर ढह गए थे क्योंकि नरेन्द्र मोदी और RSS ने देश को एक अलग सियासी ट्रैक दिया था उसमें धर्म आधारित उन्माद भी शामिल था जो सत्ता की चकाचौंध को प्राप्त करने लिए था जिसमें उसे सफलता भी मिली लेकिन अब वही उन्माद उसके गले की फाँस बन रही है।
ये बात तो अपनी जगह है हम बात कर रहे है यूपी में कांग्रेस किस तरह मज़बूत हो इसकी ज़िम्मेदारी गांधी ख़ानदान की बेटी प्रियंका गांधी को दी गई है और वह इस काम में जुट भी गई है कि किसी तरह यूपी में कांग्रेस मज़बूत हो जाए लेकिन उसके लिए समय की ज़रूरत है जो उनके पास नही है मुश्किल से लोकसभा चुनाव 2019 में दो महीने भी नही है इतने ही समय में उनको कांग्रेस में जान डालकर खड़ी करनी है और लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन भी दिखाना जिसकी संभावना कम ही लगती है उसकी सबसे बड़ी वजह यूपी में कांग्रेस के पास वोटबैंक नही है जिसके आधार पर आगे बढ़ा जा सके उनको वोटबैंक भी बनाना है और कांग्रेस को पहले वाली कांग्रेस भी बनानी है पर उसके लिए उन्हें वक़्त की ज़रूरत है जो कम से कम इस चुनाव में तो नही है हाँ ये कहा जा सकता है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी कांग्रेस को इतना ताक़तवर बना देगी कि उसके बिना यूपी में सरकार बनाने की बात न हो सके जैसे आज उसे बसपा और सपा ने अलग-थलग कर दिया 2022 में यह करना शायद आसान न हो ये बात तो समझ में आ रही है और ये बात वो कह भी रही है कि मेरे से अभी ज़्यादा उम्मीदें पालना ठीक नही है कांग्रेस का आलाकमान भी यही मानकर चल रहा है कि हमने प्रियंका को 2019 के चुनाव में कमाल करने के लिए नही भेजा हमने प्रियंका को 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए भेजा है लोकसभा चुनाव में जो भी होगा वह 2014 से बेहतर ही होगा और ये सच भी है
।बसपा-सपा के गठबंधन हो जाने के बाद कांग्रेस के लिए चुनावी मैदान में रेस लगाने के लिए जगह नही है इस लिए प्रियंका गांधी भी कुछ करने में सफल होती नही दिख रही है हालाँकि कांग्रेस को मोदी की भाजपा समर्थक मीडिया मुसलमानों को बरगलाने का प्रयास करेगी जैसे 2017 के विधानसभा चुनाव में संघी मीडिया ने भ्रम फैलाया था कि कांग्रेस और सपा के बीच हुए गठबंधन की सरकार बन रही है जिसके बाद मुसलमान भ्रमित हो गया और उसने मोदी की भाजपा को हराने के अपने लक्ष्य को छोड यह कहना शुरू कर दिया कि अगर कांग्रेस और सपा के गठबंधन का प्रत्याशी हार भी गया तो क्या सरकार तो गठबंधन की बन रही है हार जाने पर भी मंत्री बनने की पूरी संभावना है इस लिए कांग्रेस और सपा के गठबंधन को ही वोट दिया था जो सियासी एतबार से ठीक नही था क्योंकि उसके पास एक ही वोटबैंक था और वह था मुसलमान जिसके आधार पर चुनाव नही जीता जा सकता था वही हुआ कांग्रेस और सपा का गठबंधन बुरी तरह हार गया इसके हारने की एक और वजह थी RSS ने एक रणनीति के तहत मुस्लिम क्षेत्रों में अपने कुछ लोगों को भेजकर यह प्रचार कराती थी कि कांग्रेस और सपा के गठबंधन को हिन्दु वोट भी मिल रहा जो बिलकुल ग़लत था वो सिर्फ़ इस लिए किया गया ताकि मुसलमान कांग्रेस और सपा के साथ ही खड़ा रहे वह मोदी को हराने के लिए बसपा के पास सीधे न जाए और मोदी की भाजपा आसानी से जीत गई हिन्दु वोट मोदी की भाजपा के साथ चला गया यूपी में सिर्फ़ बसपा ही है जो मोदी की भाजपा को हरा सकती है अगर मुसलमान सही दिमाग़ से वोट करे RSS अब भी यही करेगा कि प्रियंका गांधी की वजह से हिन्दु वोट कांग्रेस के साथ आ गया है ताकि मुसलमान गठबंधन से भटक जाए और कुछ गठबंधन के साथ चला जाए और कुछ कांग्रेस के साथ और मोदी की भाजपा जीत जाए।मुस्लिम सियासी जानकार मानते है कि मुसलमानों को इस चुनाव में गठबंधन से नही हठना चाहिए तभी मोदी की भाजपा को आसानी से हराया जा सकता है यह गठबंधन कांग्रेस और सपा जैसा गठबंधन नही है उसमें सिर्फ़ मुसलमान ही मुसलमान था और इस गठबंधन में मुसलमान और दलित है जिसकी बड़ी तादाद होती है इस लिए मुसलमान को चाहिए कि वह गठबंधन को मज़बूती से पकड़े रहे तो यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि मोदी की भाजपा को हराया जा सकता है भाजपा की स्ट्रेटेजी रहेगी की मुसलमानों को बाँटकर गठबंधन को कमज़ोर किया जाए उससे मुसलमानों को बचना होगा नही तो फिर मुसलमानों के पास पछताने के अलावा कुछ नही रहेगा।
कांग्रेस यूपी की इन सीटों पर ज़ोर लगाएगी जिन सीटों पर वह 2009 में जीती थी उनमें श्रावस्ती से विनय कुमार, कुशीनगर से आर पी एन सिंह, महाराजगंज से हर्शवर्धन, डूमरियागंज से जगदंबिका पाल जो अब भाजपा में है, गोंडा से बेनी प्रसाद वर्मा जो अब सपा में है, बहराइच से कमल किशोर , फ़ैज़ाबाद से निर्मल खत्री , बाराबंकी से पी एल पुनिया ,झाँसी से प्रदीप जैन आदित्य, अकबरपुर से राजा रामपाल ,कानपुर नगर से श्री प्रकाश जयसवाल, फ़र्रूख़ाबाद से सलमान ख़ुर्शीद ,प्रतापगढ़ से राजकुमारी रत्ना सिंह, सुल्तानपुर से संजय सिंह ,उन्नाव से अन्नू टंडन,धौरहरा से कुँवर जितिन प्रसाद ,खीरी से ज़फ़र अली नकवी , बरेली से प्रवीण सिंह ऐरन, फ़िरोज़ाबाद से राजबब्बर , मुरादाबाद से क्रिकेट से सियासत में आए मौहम्मद अजहरूद्दीन , रायबरेली व अमेठी तो है ही सोनिया गांधी और राहुल गांधी ये वो सीटें है जहाँ कांग्रेस अपने लिए जगह मान रही है लेकिन अगर समीक्षा के तौर पर देखा जाए तो रायबरेली और अमेठी के अतिरिक्त पाँच सीटें ऐसी है जहाँ कांग्रेस मज़बूत मानी जा रही है उनमें उन्नाव ,बाराबंकी ,धौरहरा कानपुर नगर, कुशीनगर व सहारनपुर भी मानी जाती है लेकिन वहाँ इमरान मसूद की वजह से हिन्दू मोदी की भाजपा के पक्ष में लामबंद हो जाते है मुसलमान पूरा वोट देता है लेकिन फिर भी हार जाते है क्योंकि हिन्दू वोट इनको मिलता नही यह एक नही तीन बार साबित हो चुका है तो इसबार वहाँ मुसलमान गठबंधन के साथ जाने का मन बना चुका है इस लिए सहारनपुर को नही माना जा रहा है मज़बूत स्तिथि में बस सिर्फ़ पाँच ही सीट है जिन्हें मज़बूत कहा जा सकता है ये ही सीटें है बस इसके अतिरिक्त कोई बात करना बेईमानी समझा जाए।
कांग्रेस ये भूल रही है या जानबझकर ऐसा प्रचार कर रही है कि हम 2009 में किए गए प्रदर्शन को दोहरायेंगे अब सवाल उठता है कि कांग्रेस ये बातएगी कि जिस 2009 की बात कर रही क्या जब भाजपा इतनी मज़बूत थी जितनी आज धर्म का चौला पहनकर हो गई है तो यह प्रचार बिलकुल निराधार है कि कांग्रेस 2009 दोहराने जा रही है ऐसा कुछ नही होने जा रहा है यह सिर्फ़ मोदी की भाजपा को जिताने के लिए कहा जा रहा है।