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आईपीएस अमिताभ ठाकुर की सुशांत मामले में दलील पर हाईकोर्ट के वकील बोले ये बात!

चंदन श्रीवास्तव
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने सुशांत सिंह की मृत्यु मामले में जांच को लेकर चल रहे बिहार और महाराष्ट्र पुलिस के विवाद पर लिखा है कि तकनीकी रूप से बिहार पुलिस को जांच का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। सुशांत के पिता द्वारा दी गई तहरीर में पूरी घटना मुम्बई और बहुत थोड़ी दिल्ली व हरियाणा में दर्शायी गई है। उन्होंने तहरीर की प्रति भी साझा की है।
जिस पर मैनें उनके पोस्ट पर लिखा कि सीआरपीसी की धारा 177 से 184 के बावत आपकी बात सही है लेकिन आपने तहरीर के दो बिंदुओं पर ध्यान नहीं दिया है। पहला मृतक के अकाउंट में हेराफेरी का भी आरोप है और यदि मृतक का कोई भी अकाउंट पटना का है तो पटना पुलिस का क्षेत्राधिकार उत्पन्न होता है। इसके अलावा मृतक के मेंटल इलनेस की भी बात सामने आ रही है और अभियुक्तों पर शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि उन्होंने बिना परिवार से सम्पर्क किये मनमाने तरीके व जानबूझकर मृतक को नुकसान पहुंचाने वाले इलाज करवाए।
मेंटल हेल्थ केयर एक्ट के अंतर्गत यदि मृतक ने अभियुक्तों को इलाज के लिए अपना representative नही नियुक्त किया था और फिर भी वे उसके इलाज को कंट्रोल करते रहे तो उनके इस कृत्य से मृतक का परिवार प्रभावित हुआ। और जब परिवार प्रभावित हुआ तब वे पटना में थे, इस लिहाज से भी पटना पुलिस का क्षेत्राधिकार उतपन्न होता है।
तो क्षेत्राधिकार के बिन्दु पर मेरा यही मानना है। अब दूसरी बात, सर्वोच्च न्यायालय अपने अनेक निर्णयों व आदेशों में यह जाहिर कर चुका है कि अभियुक्त अपनी पसन्द की जांच एजेंसी का चयन नहीं कर सकता। आशय है कि अभियुक्त जांच एजेंसी अथवा जांच अधिकारी बदलने की मांग नहीं कर सकता। लेकिन शिकायतकर्ता या अपराध से प्रभावित व्यक्ति जांच के निष्पक्ष न होने पर जांच बदलने की मांग कर सकता है।
पटना में दर्ज एफआईआर में इस मामले की अभियुक्त रिया चक्रवर्ती ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर पटना में दर्ज एफआईआर को मुम्बई ट्रांसफर करने व मुम्बई पुलिस से जांच कराने की मांग की है। देखा जाए तो उपरोक्त सिद्धांत के अनुसार रिया चक्रवर्ती की यह मांग पोषणीय ही नहीं है अर्थात इसे पहले दिन ही खारिज हो जाना चाहिए। क्योंकि उन्हें जांच चुनने का अधिकार ही प्राप्त नहीं है। अब सवाल है कि अभियुक्त चाहती है कि बिहार पुलिस इस मामले की जांच न करे और यही मुम्बई पुलिस और महाराष्ट्र सरकार भी चाहती है। अर्थात मुम्बई पुलिस वही चाहती है जो अभियुक्त रिया चक्रवर्ती चाहती है। मुम्बई पुलिस वह नहीं चाहती जो शिकायतकर्ता चाहता है, वह शिकायतकर्ता की ओर न खड़ी हो के अभियुक्त की ओर खड़ी है। यह असामान्य बात है।
टीवी पर आ रहे समाचारों के मुताबिक पुलिस के आने से पहले उस कमरे का दरवाजा तोड़ दिया गया था जिसमें सुशांत सिंह की मृत्यु हुई। बावजूद इसके बाहर खड़े अधिकारी ने उसी पल मृत्यु को आत्महत्या करार दे दिया। यह दूसरी असामान्य बात है।
बिहार के डीजीपी बता रहे हैं कि जांच करने गए उनके अधिकारियों को मुम्बई पुलिस ने मेस में जगह तक नहीं दी, जबकि बाहर के प्रदेश से आए पुलिस अधिकारियों की व्यवस्था स्थानीय पुलिस लाइंस और इसी प्रकार के अन्य पुलिस प्लेसेज पर की जाती है। तो यह तीसरी असामान्य बात है कि मुम्बई पुलिस इतनी चिढी हुई क्यों है? या किस बात की पर्देदारी करना चाहती है?
बिहार के आईपीएस अधिकारी के हाथ पर मुहर लगाकर क्वारंटीन कर दिया गया। जबकि लोग बता रहे हैं कि बीएमसी द्वारा ही बनाए गए नियमों के मुताबिक सात दिन से अधिक मुम्बई में स्टे करने पर क्वारंटीन में रखने का प्रावधान है। यानि एक और असामान्य बात।
कहने की आवश्यकता नहीं कि इतनी सारी असामान्य बातें संयोग नहीं होतीं।
लेखक लखनऊ हाईकोर्ट में अधिवक्ता है