लखनऊ

कितनी ज़रूरी है यूपी में नई जनसंख्या नीति?

Yusuf Ansari
12 July 2021 6:15 AM GMT
कितनी ज़रूरी है यूपी में नई जनसंख्या नीति?
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इसे धर्म के चश्मे से देखने के बजाय गुण दोष के आधार पर इसकी समीक्षा विश्लेषण किया जाना चाहिए। अगर इसमें कोई ख़ामी है तो उसे सामने लाकर सरकार से उसे दूर करने की मांग करनी चाहिए।

उत्तर प्रदेश में बढ़ती आबादी पर रोक लगाने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार 2021-2030 के लिए नई जनसंख्या नीति लेकर आई है। अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या दिवस पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस नीति का प्रारूप जारी किया। गौरतलब है कि एक दिन पहले ही उत्तर प्रदेश विधि आयोग की तरफ से जनसंख्या नियंत्रण कानून का मसौदा पेश किया गया था आयोग ने इस पर 19 जुलाई तक आम लोगों से राय मांगी है आम लोगों की राय आने के बाद सरकार इसे लागू करने पर फैसला करेगी।

क्या है यूपी की नई जनसंख्या नीति?

यूपी की नई जनसंख्या नीति में दो या इससे कम बच्चे रखने वालों को प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसके साथ ही 2026 तक जनसंख्या वृद्धि दर को कम कर 2.1 और 2030 तक इसे 1.9 पर लाने का लक्ष्य रखा गया है। राज्य में फ़िलहाल कुल प्रजनन क्षमता यानी टीएफ़आर 2.7 है। प्रजनन क्षमता से मतलब है कि देश में हर जोड़ा औसत रूप से कितने बच्चे पैदा करता है। किसी देश में सामान्य तौर पर टीएफ़आर 2.1 रहे तो उस देश की आबादी स्थिर रहती है। इसका मतलब है कि इससे आबादी न तो बढ़ती है और न ही घटती है। फ़िलहाल भारत में टीएफ़आर 2.2 है।

आबादी रोकने के साथ संतुलन भी ज़रूरी

बढ़ती हुई आबादी को रोकने की कोशिशों में अक्सर यह देखा गया है कि आबादी का संतुलन बिगड़ जाता है कहीं बुजुर्गों की ताजा ज्यादा हो जाती है तो कहीं लड़कियों के भाग ले पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या कम रह जाती है उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि नई नीति बनाते समय इस बात का खास ध्यान रखा गया है की आबादी रोकने के साथ प्रदेश में संतुलन न बिगड़े।रविवार को नयी जनसंख्या नीति का ऐलान करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, 'जनसंख्या स्थिरीकरण की दिशा में प्रयास करने के साथ ही हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि देश की जनसांख्यिकी और संतुलन पर इसका कोई विपरीत प्रभाव न पड़े।'

ज़बरदस्ती से ज्यादा जागरूकता पर ज़ोर

उत्तर प्रदेश की नई जनसंख्या नीति की खास बात यह भी है कि इसमें लोगों पर आबादी रोकने के लिए दबाव बनाने के बजाय उन्हें कम आबादी के फ़ायदों की तरफ़ को लेकर जागरूक करने पर ज्यादा जोर दिया गया है। साथ ही कम बच्चे पैदा करने पर कई तरह के प्रोत्साहन और पुरस्कारों का ऐलान किया गया है। योगी ने कहा कि 'उत्तर प्रदेश जनसंख्या नीति 2021-30' का संबंध प्रत्येक नागरिक के जीवन में खुशहाली व समृद्धि लाने से है। उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण के संबंध में व्यापक जागरूकता अभियान चलाने की ज़रूरत पर भी जोर दिया और विकास के लिए इसे ज़रूरी बताया। मुख्यमंत्री ने कहा, दो बच्चों के बीच में अंतराल नहीं होने से उनके पोषण पर नकारात्मक असर तो पड़ेगा ही, साथ में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर को नियंत्रित करने में अत्यंत कठिनाई होगी।

जनसंख्या नियंत्रण क़ानून का प्रस्ताव

गौरतलब है कि एक दिन पहले ही राज्य के विधि आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण कानून का मसौदा जारी किया है। इसके तहत दो से ज़्यादा बच्चे वालों को न तो सरकारी नौकरी मिलेगी और न ही वो स्थानीय निकायों, ग्राम पंचायत और ज़िला पंचायत का कोई चुनाव लड़ पाएगा। वहीं एक बच्चे की नीति अपनाने वाले माता-पिता को कई तरह की सुविधाएँ दी जाएंगी। विधि आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण क़ानून का मसौदा तैयार करके आम लोगों से इस पर सुझाव मांगे हैं। यूपी विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एएन मित्तल ने कहा है कि बढ़ती जनसंख्या की वजह से कई तरह की दिक़्कतें पैदा हो रही हैं।

क्या वाकई जनसंख्या समस्या है?

उत्तर प्रदेश की जनसंख्या नियंत्रण कानून के मसौदे और नई जनसंख्या नीति को लेकर कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं। हमें यह देखना होगा कि क्या उत्तर प्रदेश में वाकई जनसंख्या विस्फोट की तरफ बढ़ रही है? क्या यह एक बड़ी समस्या है? दरअसल उत्तर प्रदेश देश के उन राज्यों में शामिल है जहां जनसंख्या वृद्धि राष्ट्रीय औसत के मुक़ाबले कहीं ज्यादा है। टोटल फर्टिलिटी रेट यानी टीएफआर राष्ट्रीय औसत 2.2 है। जबकि उत्तर प्रदेश में यह 2.9 है। टीएफआर से यह पता चलता है कि एक एक महिला औसतन कितने बच्चे पैदा कर रही है। इस हिसाब से देखें तो राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर जहां एक महिला 2 बच्चे पैदा कर रही है वहीं उत्तर प्रदेश में एक महिला 3 बच्चे पैदा कर रही है। इस हिसाब से देखें तो उत्तर प्रदेश में हालात वाकई चिंताजनक है। नई जनसंख्या नीति में टीएफआर को 2026 तक 2.1 का लक्ष्य रखा गया है और 2030 तक 1.9 तक लाने का।

यूपी में घट रहा है टीएफआर

अच्छी बात यह है कि उत्तर प्रदेश में 2011 की जनगणना के बाद से टीएफआर घट रहा है लेकिन इसमें कमी बेहद मामूली है। 2009 में बिहार में सबसे ज्यादा टीएफआर 3.9 था। जबकि उत्तर प्रदेश में 3.7 था। यूपी में 2013 में यह घटकर 3.1 रह गया था लेकिन 2014 में बढ़कर 3.2 गया। 2015 में फिर 3.1 हुआ। 2017 में 3.0 हुआ तो 2020 में यह 2.9 पर आ गया है। बिहार में अभी भी टीएफआर 3.0 है। इस हिसाब से देखें तो टीएफआर के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे निचले पायदान से सिर्फ़ एक क़दम ही ऊपर है। यूपी सरकार टीएफआर को इस दशक के आखिर तक अगर 1.9 के स्तर पर लाना चाहती है।

उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ सरकार नई जनसंख्या नीति और जनसंख्या नियंत्रण कानून को वक्त की जरूरत मानती है। हालांकि ऐसी शुरुआत पहले क़रीब दस राज्यों में हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में यह अब किया जा रहा है। कुछ महीने बाद ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। इस कारण इसे ध्रुवीकरण की राजनीति से भी जोड़ कर भी देखा जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि दक्षिणपंथियों की ओर से ऐसा प्रचार किया जाता है कि एक ख़ास समुदाय के लोग ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं। समाजवादी पार्टी के संभल से सांसद शफ़ीक़ उर रहमान रहमान बर्क़ ने योगी सरकार की नई जनसंख्या नीति पर सवाल उठाए हैं। उनके अलावा किसी भी बड़े मुस्लिम संगठन ने इसका विरोध अभी तक नहीं किया है इस एक अच्छा संकेत माना जाना चाहिए। जनसंख्या नियंत्रण जैसे मुद्दे पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को रोका जा सकता है। इसे धर्म के चश्मे से देखने के बजाय गुण दोष के आधार पर इसकी समीक्षा विश्लेषण किया जाना चाहिए। अगर इसमें कोई ख़ामी है तो उसे सामने लाकर सरकार से उसे दूर करने की मांग करनी चाहिए।



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