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नरम हिंदुत्व की राह पकड़ कर अखिलेश पार्टी का कितना भला कर पाएंगे
सुरेंद्र प्रताप सिंह
समाजवादी पार्टी बदल रही है. अब सपा मुसलमानों और यादव बिरादरी के साथ-साथ हिंदुओं को भी साधने में जुटी हुई है. सपा के जो नेता चुनाव आते ही मौलानाओ की चौखट पर दस्तक देने लगते थे,वह अब साधु संतों की परिक्रमा कर रहे हैं.मंदिर मंदिर घूम रहे हैं.
कभी सपा के पूर्व प्रमुख मुलायम सिंह यादव भले ही अपने आप को मुल्ला मुलायम कहलाने और 1990 में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने के लिए में गौरवान्वित महसूस करते थे, लेकिन सपा के नए प्रमुख अखिलेश यादव ने पिता मुलायम सिंह से इतर नरम हिंदुत्व की राह पकड़ी है. अखिलेश में यह बदलाव 2017 में सत्ता गंवाने के बाद देखने को मिल रहा है. अखिलेश अपने को सबसे बड़ा कृष्ण भक्त बताने में लगे हैं. भगवान परशुराम का मंदिर बनवाने की बात कह रहे हैं. भगवान परशुराम के बहाने अखिलेश ब्राह्मणों को पार्टी के पक्ष में लामबंद करना चाह रहे हैं.
यह भी उनका हिंदुत्व की तरह बढ़ता हुआ ही कदम है. हाल यह है कि अखिलेश के सपने में रोज भगवान श्रीकृष्ण आते हैं और कहते हैं कि उन्हें सत्ता मिलेगी. 2017 से पहले उन्हें ऐसे सपने नहीं दिखाई देते थे. कुल मिलाकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव उस भ्रम को तोड़ना चाहते हैं जिसके तहत भारतीय जनता पार्टी उनकी एंटी हिंदू वाली छवि बना रही है. इसके साथ ही सपा प्रमुख जनता के बीच यह मैसेज भी देना चाहते हैं अयोध्या में रामलला का मंदिर बनने से उन्हें खुशी है, लेकिन इसका श्रेय वह बीजेपी को नहीं सुप्रीम कोर्ट को दे रहे हैं,साथ ही यह भी कह रहे हैं कि अगर उनकी सरकार होती तो अभी तक अयोध्या में रामलला का मंदिर बन गया होता.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए अखिलेश विधानसभा का चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर चुके हैं. अखिलेश ने विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला योगी आदित्यनाथ के उस बयान के बाद लिया जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर पार्टी कहेगी तो वह मथुरा या कहीं से भी चुनाव लड़ सकते हैं.अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव लड़ते हैं तो यह पहला मौका होगा जब वह सांसद की जगह विधायक के रूप में अपनी पहचान बनाएंगे. 2012 में जब समाजवादी सरकार बनेगी तो अखिलेश यादव ने विधान परिषद का सदस्य यानी एमएलसी बनना ज्यादा सही समझा था.
खैर मुद्दे पर आया जाए तो अपने को बड़ा हिंदू दिखाने के लिए अखिलेश यादव अयोध्या में श्रीराम लला के दर्शन करने भी जाने वाले थे लेकिन कोरोना की बढ़ती रफ्तार के चलते उनका यह प्रोग्राम कैंसिल हो गया है.
लब्बोलुआब यह है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव इन दिनों 'नई हवा है, नई सपा है.' का नारा बुलंद करते मठ-मंदिरों का दौरा करने में जुटे हैं. ऊपर भाजपा चुनाव में अयोध्या के पुराने विवाद और इसमें समाजवादी पार्टी की भूमिका के सहारे अपनी प्रबल प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी के खिलाफ घेराबंदी करने में लगी है. बीजेपी के छोटे बड़े नेता और कार्यकर्ता तक अयोध्या में रामलला क़े मंदिर निर्माण के लिए अपनी पीठ थपथपाते हुए सपा को लगभग हर मंच पर घेर रहे हैं. पहले तो अखिलेश इस मुद्दे पर चुप रहे लेकिन अब बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं, इसीलिए अब वह सत्ताधारी दल के अयोध्या से जुड़े प्रश्नों का उत्तर खुलकर दे रहे हैं.
अब तो सपा प्रमुख यह भी कहने लगे हैं कि सपा की सरकार होती तो राम मंदिर अब तक बन चुका होता. बात उससे पहले की जाए तो 2017 से पहले अयोध्या से जुड़े घटनाक्रमों के एक सिरे पर भाजपा तो दूसरे पर सपा खड़ी रही. भाजपा खुलकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात कहती थी तब की सपा इसमें मुस्लिम तुष्टिकरण का तड़का लगाती रहती थी. अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण की राजनीति देश को काफ़ी प्रभावित करती रही हैं.बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष संगठन की कमान संभालने के बाद अखिलेश ने बीते कुछ सालों में अपनी रणनीति को पूरी तरह बदल दिया है.
बीजेपी के हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की धार को कुंद करने के लिए ही अखिलेश साफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़े हुए हैं, ताकि सपा की धर्मनिरपेक्षता वाली छवि को भी किसी तरह का नुकसान न पहुंचे. यही वजह है कि पिछले वर्ष जनवरी में चित्रकूट के लक्ष्मण पहाड़ी मंदिर गए और कामदगिरि की परिक्रमा भी की. पिछले महीने रायबरेली जाते समय हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना की और लखनऊ में भगवान परशुराम के मंदिर में पूजन किया. माना जा रहा है कि इसी रणनीति के तहत अब अयोध्या जा रहे हैं.