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- शिक्षामित्रों में भारी...
शिक्षामित्रों में भारी रोष, आखिर सरकार हमें अपना मानती क्यों नहीं?
उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्कूलों में कार्यरत शिक्षामित्र लगभग 22 साल से ज्यादा समय से कार्य करते आ रहे है। लेकिन उन्हे न तो सम्मान मिला न ही उन्हे शिक्षक होने का तमगा हासिल हुआ हाँ इतना जरूर हुआ जब सरकार को जरूरत पढ़ी तो इन्हे शिक्षक माना और जब जरूरत पड़ी तो इन्हे शिक्षा मित्र बताकर इनका अपमान करने में भी देर नहीं की।
लोकसभा 2019 के चुनाव से पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने शिक्षा मित्र और अनुदेशकों को निश्चिंत रहने की बात कही थी लेकिन अब इस बात को कहे हुए भी लगभग पाँच साल बीत गए लेकिन अब तक कोई सरकार की ओर से बड़ी खबर नहीं मिली। लेकिन अब बाजी फिर से शिक्षा मित्र के हाथ में है और 2024 का लोकसभा चुनाव है तो कहीं न कहीं अब केंद्र सरकार शिक्षा मित्र को कोई सौगात दे सकती है।
चूंकि लोकसभा के मुखिया के तौर पर निर्वाचित प्रधानमन्त्री की कुर्सी का रास्ता यूपी से ही जाता है। देश में सबसे ज्यादा सांसद यूपी से चुनकर सदन में जाते है, 80 सांसद को चुनकर भेजने वाला यूपी लगभग 15 प्रतिशत सांसद देता है जबकि बाकी के 28 राज्यों से 85 प्रतिशत संसद सदस्य आते है।
बीजेपी के सबसे ज्यादा सांसद पिछले दो चुनाव से यूपी में है। 2014 में जहां 73 सांसद बीजेपी को इस राज्य से मिले थे तो 2019 में 63 संसद सदस्य चुने जाते है। बाद में दो लोकसभा क्षेत्र से उप चुनाव भी जीत जाती है जो सपा के गढ़ थे जिसमें रामपुर और आजमगढ़ शामिल है। तो राज्य के सभी शिक्षा मित्र और अनुदेशक बीजेपी को वोट करते है।
अब अगर 2024 में बीजेपी को शिक्षा मित्रों का वोट लेना होगा तो इनकी समस्या का भी समाधान करना होगा क्योंकि डेढ़ लाख परिवार अकेले नहीं होते है उनसे इसके चार चुने परिवार और जुड़े होते है अगर ये शिक्षा मित्र अपने मित्रों से मिलकर चुनाव में नाराज रहे तो बीजेपी को नुकसान हो सकता है। लिहाजा बीजेपी कोई भी घाटे का काम मुश्किल ही करेगी।
इस लिहाज से शिक्षा मित्रों के हाथ में 2024 से पहले एक बड़ा हथियार हाथ में होगा। उसका एक कारण भी देश के कई राज्यों में इस साल संविदा कर्मियों को नियमित भी किया गया है। अगर यूपी में यह खबर शिक्षा मित्रों और अनुदेशकों को नियमित करने की आती है तो बीजेपी का परचम एक बार यूपी में फिर से लहराएगा।
वहीं शिक्षा मित्रों से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि सरकार हमें अपना मनाती क्यों नहीं जब हम सरकार के कर्मचारी है तो हम किसी पार्टी सदस्य कैसे हो सकते है हम पर किसी पार्टी विशेष का ठप्पा लगाना गलत बात है हम सरकार के कर्मचारी है और हमेशा सरकार के साथ है। हम नीतिगत फैसले से नाराज है सरकार से नहीं नहीं तो यूपी में दुबारा बीजेपी की सरकार की वापसी नहीं होती दुबारा बीजेपी के लगभग उतने ही संसद सदस्य नहीं चुने जाते। हा इस बार सरकार से हम सवाल जरूर करेंगे कि आखिर हमसे सौतेला व्यवहार क्यों? जब एक छत के नीचे एक ही काम फिर वेतन और काम जमीन आसमान का अंतर क्यों?