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भूख, बदहाली और मौत, शिक्षा मित्र के सामने तीन यक्ष प्रश्न, जबाब सरकार के पास!
उत्तर प्रदेश में बीते 23 वर्षों की अगर चर्चा करें तो शिक्षा मित्र की दुर्दशा ही होती नजर आ रही है। जहां उत्तर प्रदेश के प्रत्येक गाँव उस गाँव का जो सबसे टॉपर व्यक्ति या युवक था उसको इस पद पर ग्राम पंचायत समिति के द्वारा प्रस्ताव भेजकर नियुक्त किया गया। इस नियुक्ति के बाद ग्रामीण स्तर पर चर्चा बड़ी तेज हुई जैसा कि सभी विभागों के साथ होता आया है लगा कि जल्द है पूर्ण अध्यापक के रूप में तब्दील हो जाएगा। क्योंकि तब प्राइमरी में एजुकेशन इंटर मिडीएट और बीटीसी थी। चूंकि बीटीसी कई वर्षों पहले तत्कालीन नारायण दत्त तिवारी सरकार द्वारा बंद की जा चुकी थी। क्योंकि उस समय बीटीसी वालों को जॉब नहीं मिल पा रहा था तो सरकार ने इसको बंद करके प्रशिक्षित सभी अभ्यर्थियों को रोजगार मिल सके।
बस उसके बाद 2000 में भर्ती होने के बाद शिक्षा मित्र अपना काम करने लगा। उसके बाद बीजेपी और बसपा की सरकार बनी सीएम मायावती बनी फिर मुलायम सिंह यादव सरकार आई उसमें भी शिक्षा मित्रों का कुछ नहीं हुआ। 2007 में जब बसपा पूर्ण बहुमत में आई तब सीएम मायावती ने इनको लेकर अधिकारियों से बात की और इन्हे बीटीसी कराये जाने की बात की ताकि इनको कुछ प्रमोट किया जा सके। उसके बाद अखिलेश यादव सरकार ने इनको सहायक अध्यापक के पद पर तैनात किया।
क्या था पूरा मामला
यूपी के शिक्षामित्रों को सोमवार को सुप्रीमकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। 1.72 लाख शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक बनने पर रोक लगाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस मामले की अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी।
क्या था हाईकोर्ट का फैसला?
यूपी के प्राइमरी स्कूलों में तैनात एक लाख 72 हजार शिक्षामित्र टीचरों का अप्वाइंटमेंट हाईकोर्ट ने कैंसिल कर दिया था। हाईकोर्ट में 12 सितंबर 2015 को चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की डिविजन बेंच ने यह ऑर्डर दिया था। चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस दिलीप गुप्ता और जस्टिस यशवंत वर्मा बेंच के जज थे। इनके अप्वाइंटमेंट का आदेश बीएसए ने साल 2014 में जारी किया था।
क्यों कैंसिल हुई थी अप्वाइंटमेंट?
शिक्षामित्रों को अप्वाइंट करने को लेकर वकीलों ने कहा था कि इनकी भर्ती अवैध रूप से हुई है। जजों ने प्राइमरी स्कूलों में शिक्षामित्रों की तैनाती बरकरार रखने और उन्हें असिस्टेंट टीचर के रूप में एडजस्ट करने के मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष के वकीलों की कई दिन तक दलीलें सुनी थी।
किस ग्राउंड पर हुई थी ऑर्डर?
हाईकोर्ट ने कहा था, ''चूंकि ये टीईटी पास नहीं हैं, इसलिए असिस्टेंट टीचर के पदों पर इन्हें अप्वाइंट नहीं किया जा सकता।'' शिक्षामित्रों की तरफ से वकीलों ने कोर्ट को बताया था कि सरकार ने नियम बनाकर इन्हें एडजस्ट करने का फैसला लिया है। इसलिए इनके अप्वाइंटमेंट में कोई कानूनी दिक्कत नहीं है। यह भी कहा गया था कि शिक्षामित्रों का सिलेक्शन प्राइमरी स्कूलों में टीचरों की कमी दूर करने के लिए किया गया है।
रोक के बाद मौत और सुसाइड के मामले आए थे सामने
प्राइमरी स्कूलों में शिक्षामित्रों को एडजस्ट करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बद अलग-अलग जिलों में शिक्षामित्रों की सदमे से मौत या सुसाइड के मामले सामने आए थे। लगभग 7 शिक्षामित्रों की मौत हुई थी। इसे देखते हुए तब यूपी के चीफ सेक्रेटरी आलोक रंजन ने कहा था कि इन अस्वाभाविक मौतों के मामले में सरकार पीड़ित परिवारों को पांच-पांच लाख रुपए का मुआवजा देगी। सभी जिलों के डीएम से कहा गया था है कि इन मामलों की जांच कर मुआवजा दिया जाए।
लेकिन आज कोई भी शिक्षा मित्र किसी कारण से मौत के मुंह में चला जाए कोई कुछ देने वाला नहीं है। जबकि अभी बीते दिनों एक शिक्षा मित्र की मौत स्कूल में ड्यूटी के दौरान हुई उसको भी सरकार से कोई राहत नहीं मिली है। तो इस लिहाज से जब आप पूरी बात समझेंगे तो शिक्षा मित्र के सामने भूख, बदहाली और मौत, शिक्षा मित्र के सामने तीन यक्ष प्रश्न मुंह बाये खड़े हुए है। जबकि जबाब सरकार के पास है इनको नियमित करके इन्हे उचित मानदेय देकर पार्थमिक शिक्षा को और अधिक अच्छा बना सकते है।
अभी बीते दिनों प्रदेश के स्थाई शिक्षकों ने हड़ताल की तो अनुदेशक और शिक्षा मित्रों ने उस हड़ताल का असर नहीं होने दिया। इससे पहले प्रार्थमिक शिक्षक संघ अपनी मांग सरकार से मनवाता रहा है। फिलहाल उनकी हड़ताल का सरकार पर दबाब पड़ता नजर नहीं आ रहा है। इस बात को सोचकर भी सरकार को देखना चाहिए जो शिक्षा मित्र सरकार का काम वफादारी से कर रहे है उन्हे इनका पारितोष तो मिलना चाहिए।
उतर प्रदेश की सरकार मौत के मुंह में लगातार जा रहे शिक्षा मित्रों को नियमित करने के आदेश से एक दिन में रोक लगा सकती है। यह केवल सरकार में ताकत है बाकी मौतों का सिलसिला रोकना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है।
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