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कांसीराम परिनिर्वाण दिवस: कांसीराम की विरासत को बचाएँ मायावती
भारत में बहुत से राजनेता हुए हैं और बहुत से नेताओ ने अपने समाज की बेहतरी के लिए बहुत मेहनत की. भारत में प्राचीन समय से पिछड़े चले आ रहे दलित समुदाय को सिधारने के लिए भी बहुत से नेताओ ने काम किया. डॉ भीम राव आंबेडकर, ज्योतिबा फुले, और बहुत से नाम ऐसे हैं जो दलित समाज के उत्थान के लिए जाने जाते हैं. दलितों के उत्थान के लिए काम करने वालो में कांशीराम का नाम भी अग्रणी है. कांसीराम ने दलितों के लिए जो म्हणत की है उसका उदाहरण उनसे पूर्व कही नहीं मिलता. कांसीराम से पहले जितने भी दलित समाज सुधारक रहे हैं उनके काम और कांसीराम के काम में सबसे बड़ा फ़र्क़ यही रहा है की कांसीराम ने सत्ता को विकास का दरवाज़ा समझकर काम किया जिसके परिणाम स्वरुप कांसीराम की राजनितिक पार्टी बहुजन समाज पार्टी देश में राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने में सफल रही और दुसरे राज्यों में भी उसका वजूद क़ायम रहा.
कांसीराम ने बड़ी मेहनत और लगन से निस्वार्थ होकर दलित आंदोलन खड़ा किया. और सही दिशा में चलते हुए उसे राजनितिक रूप से दलित आंदोलन को राजनीतिक आंदोलन में बदला. दलितों को सत्ता में भागीदार बनाने का अवसर दिया जिसके अच्छे परिणाम सामने आये. कांसीराम की इस विरासत को उनकी मृत्यु के बाद मायावती ने संभाला. वैसे तो मायावती भी खुद यही बात कहती रही हैं की वह कांसीराम के मिशन को आगे बढ़ा रही हैं लेकिन आलोचक कहते हैं की मायावती कांसीराम के मिशन को आगे नहीं बढ़ा रही बल्कि सत्ता और पैसे के लालच में मिशन को खत्म कर रही हैं. आज दलित समाज मजबूरी में बसपा के साथ जुडी हुई है लेकिन मायावती को लेकर वह संतुष्ट नहीं है. कांसीराम के साथ काम करने वाले बहुत से दलित नेताओ का कहना है की मायावती को सत्ता और पैसे के लालच ने घेर लिया जिसकी वजह से वह मज़बूती से फैसले नहीं ले पा रही है.
यदि हम कांसीराम और मायावती के काम करने का जायज़ा ले तो हमें बिलकुल साफ़ नज़र आएगा की कांसीराम के जीवन में समाज के लिए त्याग था आउट त्याग के मामले में वह भीम राव आंबेडकर से भी आगे बढ़ गए थे. लेकिन मायावती का तरीक़ा बिलकुल कांसीराम से मेल नहीं खाता. कांसीराम ने राजनीतिक मज़बूती के लिए दुसरे समाजो को अपने साथ लगाया था और खासतौर से मुस्लिम समुदाय को अपने मिशन में हिस्सेदार बनाया थालेकिन मायावती ने इस मिशन को बदल कर सिर्फ पैसे तक समेत दिया है. मायावती ने पैसो की बुनियाद पर दूसरे समाज के लोगो को इकट्ठा किया. अक्सर बसपा पर पैसे को एवज़ टिकट बेचने के इलज़ाम लगता रहा है. लोगो का कहना है की पैसे के ज़रिये बसपा ऐसे लोगो को टिकट देती है जिनकी समाज में कोई पकड़ नहीं होती और वह टिकट पाने वाले चुनाव हार जाते हैं. मायावती की इस नीति से बसपा बेहद कमज़ोर हो गयी और इस लोकसभा में एक भी सांसद नहीं बेज सकी.
मायावती को कांसीराम के मिशन को बचाना होगा नहीं तो आने वाला वक़्त मायावती को कांशीराम के दलित आंदोलन को तबाह करने का ज़िम्मेदार ठहराएगा. इस वक़्त मायावती को सोच समझ कर पिछली नीतियों से अलग चलना होगा. लेकिन इस बार भी यही शोर लोगो में सुनाई दे रहा है की लोकसभा के चुनाव के लिए टिकटों की बिक्री शुरू हो गयी है. लोगो का कहना है की पैसे देकर टिकट हासिल करने वाले लोग समाज में कोई पकड़ नहीं रखते जिसकी वजह से लोग पार्टी को वोट नहीं दे पाते. इसका नुक्सान पार्टी को होता है और मिशन को होता है. मायावती के लिए ये नाज़ुक वक़्त है, अगर मायावती ने सोच समझ कर फैसले न किये तो बसपा गुज़रे वक़्त की दास्तान बन कर रह जाएगी.