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- विधि का विधान,...
डॉ दिनेश चंद्र सिंह, आईएएस
किसी भी सभ्यता व संस्कृति का विकास, समय-समय पर उसके लोगों के समक्ष आए संकट और उससे उतपन्न परिस्थितियों से जूझने की उनकी व्यक्तिगत-सामूहिक क्षमता पर निर्भर करता है। वर्तमान वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के प्रकोप से उपजी हुई चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से निपटने के क्रम में भी हमें विधि के विधान के साथ साथ वैज्ञानिक अवदानों का भी कायल रहना चाहिए।
प्रसंगवश, महाकवि तुलसीदास जी रचित लोक महाकाव्य रामचरितमानस की एक चौपाई को यहां उद्धृत करना चाहूंगा। वह यह कि "सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलिख कहेउ मुनिनाथ। हानि-लाभु, जीवनु-मरनु, जसु-अपजसु विधि हाथ।।" सच कहूं तो काफी समय से मन इसी अंतर्द्वंद में उलझा हुआ था कि क्या यह जो ऊपर लिखित रामचरितमानस की पंक्तियां हैं, उसमें जीवन का बहुत बड़ा सार छिपा हुआ है।
वास्तव में, ये पंक्तियां सदियों से दु:खी, पीड़ित व वेदनायुक्त समाज में पुनः शक्ति धारण कर आगे बढ़ने का मार्ग सदा से प्रशस्त करती आई है, लेकिन यह यक्ष प्रश्न मेरे समक्ष समुपस्थित है कि आज भी इसकी प्रासंगिकता है अथवा नहीं! विचलित मन से ऐसा अनेकों बार सोचा और कभी-कभी विश्वास भी नहीं होता है, किंतु वर्तमान कोविड-19 की वैश्विक महामारी ने तो यह विश्वास और गहन कर दिया कि ऊपर की पंक्तियां सच नहीं है।
वजह यह कि, इस संक्रमण से कुछ ऐसे व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हुई है जिनकी जीवन की यात्रा का यदि अध्ययन करें तो वह किसी भी प्रकार के व्यसन से कोशों दूर थे एवं खान-पान की उच्च स्तरीय प्रवृत्ति का अनुसरण अपने जीवन में करते आये थे तथा स्वास्थ्य रूपी मानकों पर भी काफी हद तक ठीक थे। परंतु कोरोना के संक्रमण के प्रभाव से उनकी लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता यकायक जवाब दे गई और अकाल मृत्यु का ग्रास बनकर उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई।
यद्यपि, यह वैज्ञानिकों द्वारा तथा अनुभवी चिकित्सकों द्वारा प्रमाणित रुप से सिद्ध किया जा चुका है कि जिनको एक से अधिक प्रकार के विभिन्न रोग, जैसे- शुगर, फेफड़ों की बीमारी, कैंसर, न्यूरो, हार्ट से संबंधित डिजीज समेत एक या एक से अधिक प्रकार के रोग हैं, जिन्हें चिकित्सकीय भाषा में कोमोरबिलि कोमोरबीडीटी कहा जाता है, उन्हें बचाना बेहद मुश्किल है। वहीं, यह भी पाया गया है कि मधुमेह, हाइपरटेंशन, रक्त संबंधी रोग एचआईवी पॉजिटिव, कैंसर इत्यादि जैसे एक से अधिक रोग से प्रभावित व्यक्ति भी समुचित इलाज एवं देखभाल से कोरोना को मात देकर स्वस्थ हुए हैं।
कहने का अभिप्राय यह है कि समुचित चिकित्सा सुविधाएं एवं बेहतर प्रबंधन तो किसी की व्यवस्था का कारगर हथियार होते हैं, जिसके बल पर किसी भी चुनौती का मुकाबला करके हराया जा सकता है। परंतु कहीं-कहीं सामान्य नागरिकों की सोच दो हिस्सों में बट जाती है कि बेहतर प्रबंधन व उत्कृष्ट चिकित्सा व्यवस्था के अलावा अन्य कोई ईश्वरीय अनुकंपा से व्यक्ति इस रोग से ठीक नहीं हुआ। अपितु कुछ ऐसे वर्ग भी हैं जिनको समुचित चिकित्सा के अभाव में भी होम आइसोलेशन में घरेलू एवं पुरानी चिकित्सकीय व्यवस्था, योग, प्राणायाम आयुर्वेदिक काढ़ा इत्यादि के सेवन से घर पर ही ठीक हो गए हैं और वह अपनी जीवन शैली एवं ईश्वर की कृपा को अपने ठीक होने का कारण मानते हैं।
आशय यह है कि हम किसी भी दशा में उत्कृष्ट प्रबंधन एवं उत्कृष्ट चिकित्सकीय व्यवस्था, समुचित निगरानी, उत्तर प्रदेश की टेस्ट, ट्रेस व ट्रीट की वैज्ञानिक पद्धति को कोरोना को हराने एवं संक्रमण से प्रभावित व्यक्तियों को ठीक करने की व्यवस्था को ही उत्कृष्ट मान रहे हैं और मानना भी चाहिए। क्योंकि कर्म एवं मेधा के बल पर किया गया प्रयास सदैव विजयी बनाता है। परंतु कहीं न कहीं ऐसे युवकों, बच्चों एवं स्वस्थ व्यक्तियों की मृत्यु के रहस्य की तलाश करते हुए इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश, यह सब विधि के हाथ में ही है।
इस बात की प्रासंगिकता के लिए यह अवगत कराना चाहूंगा कि देश एवं दुनिया की 9 प्रतिष्ठित कंपनी जिनके वैज्ञानिकों ने रात-दिन प्रयास करके अपने परिश्रम एवं कर्तव्य परायणता से कोरोना महामारी की वैक्सीन की खोज की, जिससे इनकी कंपनियों को लाभ एवं यश के साथ मानवता की रक्षा का पुरस्कार व प्रशंसा मिली। अन्य तमाम कंपनी इस क्षेत्र में कार्य कर रही होंगी, परंतु लाभ एवं यश इन्हीं 9 कंपनियों को मिला। इससे स्पष्ट है कि कहीं न कहीं रामचरितमानस की उपरोक्त उपदेशात्मक पंक्तियां सार्थक होती है।
यह प्रमाणिक तथ्य है कि पीपुल्स एलायंस की रिपोर्टर, पीपुल्स एलायंस की रिपोर्ट के आधार पर 9 लोग इस संक्रमण में नए अरबपति बने। पहला, मॉडर्न के सीईओ स्टीफन बैंसल, दूसरा बायोनेट के सीईओ और संस्थापक उगुर साहीन, तीसरा इम्यूनोलॉजिस्ट और मॉडर्ना के संस्थापक निदेशक टिमोथी स्प्रिंगर, चौथा मॉडर्ना के चेयरमैन नौबार अफेयान, पांचवा मॉडर्ना के वैक्सीन के पैकेज व निर्माण के लिए कार्य करने वाली कंपनी आरओवीआई के चेयरमैन जुआन लोपेज वेलमोंट, छठा मॉडर्ना के संस्थापक निदेशक एवं विज्ञानी रॉबर्ट लैंगर, सातवां कैनसिनो बायोलॉजिक्स के मुख्य वैज्ञानिक झू ताओ, आठवां कैनसिनो बायोलॉजिक्स के सीनियर वी सी किउ डोंगकसू और नवम कैनसिनो बायोलॉजिक्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष व माओ हुइंहोआ।
इसी प्रकार, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के संस्थापक सारस पूनावाला, कैडिला हेल्थकेयर के प्रमुख पंकज पटेल व कई ऐसी संस्था है जिनको इस काल में लाभ ही लाभ हुआ और इन सबकी यश-पताका व यश-कीर्ति भी अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गई है। इसके साथ ही, कई ऐसे व्यवसाय भी हैं जिनको इस महामारी में लाभ और यश प्राप्त करने का अवसर मिला। जिनको पूर्व में इतनी ख्याति अर्जित नहीं थी और हानि की बैलेंस शीट बनाते-बनाते थक गए थे।
गोया, कुछ लोगों को उनकी नकारात्मक सोच, लोभ, छल, कपट एवं स्वार्थपरता के कारण दवाइयों, इंजेक्शन एवं ऑक्सीजन जैसी जीवनदायिनी औषधियों की कालाबाजारी के मोहपाश में पड़ने के कारण हानि के साथ साथ अपयश भी मिला और जेल की सलाखों के अंदर जाने का दंड भी मिला। ऐसे लोगों ने भविष्य में अपने परिवार की आने वाली पीढ़ियों को भी कलंकित करने का दाग लगाकर हानि और अपयश के ऐसे दलदल में फंस गए कि वह दाग उनके ऊपर से एवं उनकी नस्लों यानी परिजनों के ऊपर से कभी नहीं हटेगा।
दरअसल, मेरी छोटी-सी बुद्धि से, या फिर यों कहें कि अनुभव ने यह विश्लेषण करने का प्रयास किया है कि रामचरित मानस के उद्धरण- "सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलिख कहेउ मुनिनाथ। हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ।।," आज भी प्रासंगिक है और आने वाले समय में भी प्रासंगिक रहेंगे। क्योंकि काम, क्रोध, अहंकार, स्वार्थ के वश में आकर व्यक्ति अपना वात, कफ, पित्त के संतुलन को बिगाड़ लेता है और उसी त्रिदोष के कारण अनेक व्याधियों की चपेट में आकर अकाल मृत्यु, हानि तथा अपयश का भागी बन जाता है।
यहां पर मैं यही कहना चाहूंगा कि इस क्रूर कालखंड में हम सभी यदि अच्छे ढंग से मानवता की रक्षा के लिए, एकजुट होकर, संगठित होकर, सामाजिक सरोकार की भावना से पीड़ित, दु:खी एवं संक्रमित व्यक्तियों की सेवा करेंगे तो निश्चित ही आप यश प्राप्त करेंगे। क्योंकि सरकारी तंत्र अपने स्तर से उत्कृष्ट कार्य कर रहा है एवं काउंटर करने की कोई ऐसी प्रक्रिया को नहीं छोड़ रहा है जिससे उनके नागरिकों को लाभ ना हो और इस अदृश्य रूपी वायरस के संक्रमण का विनाश ना हो।
मसलन, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कुछ पंक्तियां मेरे विश्वास को और अधिक मजबूती प्रदान करती हैं:- "प्रभु रथ रोको! क्या प्रलय की तैयारी है, बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है।...कितने परिचित, कितने अपने, आखिर यूं ही चले गए, जिन हाथों में धन-संबल, सब काल से छले गए।...हे राघव-माधव-मृत्युंजय, पिघलो, यह विनती हमारी है, ये बिना शस्त्र का युद्ध है जो, महाभारत से भी भारी है।"
कहना न होगा कि भूत, वर्तमान व भविष्य के त्रिकालदर्शी कवि रामधारी सिंह दिनकर की यह कविता भी इस बात की ओर इशारा कर रही है कि इस लोकतंत्र में बिना शस्त्र के अदृश्य शत्रु कोविड-19 कोरोना वायरस अब प्रलय-सा दृश्य लेकर मानवता के अस्तित्व के प्रति खतरा उत्पन्न किए हुए है। लिहाजा, सभी राजनीतिक दल, सभी उद्योगपति, सभी सक्षम नागरिक, देश की युवा शक्ति, बिना आरोप-प्रत्यारोप के सामूहिकता का भाव लेकर अपनी सामर्थ्य के अनुसार, देश के समक्ष उतपन्न इस अप्रत्याशित चुनौती का सामना करने के लिए संबल बनें। क्योंकि, समाज में उत्पन्न निराशा व हताशा के माहौल को आपकी सामूहिक सकारात्मकता व सर्जनात्मकता, इस विस्मयकारी माहौल से निपटने में मददगार होगी एवं निश्चय ही यादगार रहेगी। निर्विवाद रूप से आप भी अपनी सकारात्मकता के माध्यम से यश के भागी बनेंगे, अन्यथा इतिहास हमें कभी नहीं बख्शेगा, माफ करेगा।
पुनश्च:, लाभ-हानि और यश-अपयश की श्रृंखला में एक नाम ऐसा है जिनका उल्लेख मैं आवश्यक समझता हूं। दरअसल, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर एवं बनारस विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त भारतीय वैज्ञानिक डॉ अनिल कुमार मिश्रा, जिन्होंने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित 2 डीजी दवा के निर्माण में अभिनव भूमिका निभाई एवं उनके सह-अनुसंधानकर्ता भारतीय वैज्ञानिक डॉ अनंत नारायण भट्ट ने भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। आप लोगों की इस खोज के लिए देश आपका सदैव आभारी रहेगा। बेशक, आप एक शासकीय सेवा के अंतर्गत वैज्ञानिक पद पर आसीन हैं, इसलिए आपको मौद्रिक लाभ शायद ना हो, परंतु आपकी यश-कीर्ति, यश-पताका, मानव की रक्षा हेतु किये गए उपायों की खोज में हासिल की गई उपलब्धियों के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित होगी।
यही नहीं, आपको एवं आपकी भावी पीढ़ी एवं परिजनों को इस यश-कीर्ति एवं यश-पताका की मिसाल को प्रदर्शित करने का सौभाग्य मानव इतिहास के हर कालखंड में मिलेगा। यही विधि का विधान है और पुनः लाभ-हानि, जन्म-मरण, यश-अपयश, विधि के विधान को कहते हुए अपनी लेखनी को इस प्रतिबद्धता के साथ विराम देता हूं कि किसी भी दशा में कर्म के प्रति अपनी आस्था को न छोड़ना, क्योंकि कर्म का फल मनुष्य को अवश्य मिलता है। कर्मठतापूर्वक किए गए कर्म का फल आपको सुख-चैन तथा लाभ-यश अवश्य दिलाएगा। आप इस युद्ध में अपना कुछ कुछ करने का संकल्प लेकर सरकार की लड़ाई जो कोरोना जंग जीतने की है, उसमें एक सैनिक बनकर कार्य करें।
पुनश्च:, इस महामारी में हमने बहुत कुछ खोया। अपने निजी रिश्ते-नातेदार, दोस्तों, सहपाठियों, महान एवं देश के यशस्वी वैज्ञानिकों, डॉक्टर (मानवता के रक्षक), पत्रकार, राजनैतिक क्षेत्र की महान विभूति, लोकतंत्र के चारों स्तंभ- कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका एवं प्रेस, सभी स्तंभ के विशेष उल्लेखनीय व्यक्तियों के खोने का दु:ख सभी को है। साथ ही ऐसे नागरिक जो अपनी आजीविका एवं रोजगार के लिए संघर्ष करने वाले मजदूर, श्रमिक, किसान सभी को खोया है, अपूरणीय क्षति है, परंतु निरंतर शोक करने से कर्म की गति प्रभावित होती है। अतः उनकी सेवा एवं त्याग को बल मान कर पुनः कर्म करने की प्रेरणा लेकर आगे और कर्मठता से लड़ाई करने का संकल्प लें।
निराला जी की यह पंक्ति सदैव शक्ति देती है और निराशा एवं अवसाद के क्षणों में जीतने की कला में माहिर बनाती है- रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय स्वर।.... वह एक और मन रहा, राम का जो न थका, जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय। छोड़ दो समर जब तक न हो विजय।.... होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन, कई महाशक्ति राम वंदन में हुई लीन।..... हमारे भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक जिनके अथक एवं भागीरथ प्रयास से कोविड-19 के संक्रमण से लड़ने के लिए वैक्सीन की खोज की गई है, अथवा और पुष्ट और प्रमाणिक खोज में लगे हैं, वह इस युग के 'राम' से कम नहीं, क्योंकि उन्होंने मानवता की रक्षा के लिए संक्रमण से उत्पन्न भयावह, भयाक्रांत परिस्थितियों के आलोक में सृष्टि पर, भूलोक पर देश की सीमाओं की अनदेखी कर वैक्सीन की खोज में इसी प्रकार लगे हैं जिस प्रकार राम जी ने रावण को हराया था और असत्य पर सत्य की जीत को स्थापित किया था। आज भी वैज्ञानिक इसी मनोभाव से इसकी वैक्सीन की खोज में लगे हैं, यह है आधुनिक राम के प्रतिबिंब, इनकी भक्ति शक्ति एवं त्याग को नमन।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि इस भयाक्रांत कालखंड में हम सबकी पुरातन युग प्रेरित अंतश्चेतना ही हमें सदैव ऊर्जान्वित बनाये रखती है और सबके हित के वास्ते एक से बढ़कर एक लोकहितकारी कदम को उठाने को अभिप्रेरित करती रहती है। हमारे साहित्य भी इन्हीं भावनाओं से ओतप्रोत हैं। 'बीती ताहि बिसारी दे, आगे की सुधी लेहु...से मानव समुदाय को कर्म पथ पर जीवटता व बुद्धिमत्ता पूर्वक निरंतर आगे बढ़ते रहने की जो प्रेरणा मिलती है, वही युग धर्म है, हर कालखंड का मर्म है। जय हिंद, जय भारत, जय मानवता।
(लेखक उत्तरप्रदेश संगीत नाटक अकादमी के सचिव हैं। )